India-US Tariff War: जयशंकर मॉस्को, चीनी मंत्री दिल्ली... अमेरिका को जलाने के लिए क्या-क्या कर रहा भारत?

India-US Tariff War - जयशंकर मॉस्को, चीनी मंत्री दिल्ली... अमेरिका को जलाने के लिए क्या-क्या कर रहा भारत?
| Updated on: 14-Aug-2025 07:20 PM IST

India-US Tariff War: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत को टैरिफ की धमकियों से दबाने की कोशिश में जुटे हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखेगी। भारत न केवल ट्रंप की धमकियों के सामने सीना तानकर खड़ा है, बल्कि रूस और चीन के साथ रणनीतिक संबंधों को मजबूत करके वैश्विक मंच पर एक मजबूत संदेश भी दे रहा है। यह कदम न सिर्फ भारत की कूटनीतिक स्वायत्तता को दर्शाता है, बल्कि ट्रंप की नीतियों को चुनौती देने का भी प्रतीक है।

रूस के साथ अटूट दोस्ती

ट्रंप भारत को रूस से दूर करने की कोशिश में हैं, लेकिन भारत ने इसके उलट मॉस्को के साथ अपनी दोस्ती को और गहरा किया है। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की हालिया रूस यात्रा के बाद अब विदेश मंत्री एस. जयशंकर 21 अगस्त 2025 को रूसी विदेश मंत्री से मुलाकात करने वाले हैं। इस मुलाकात के कुछ ही दिनों बाद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन सितंबर 2025 में भारत का दौरा करेंगे। यह दौरा डोभाल की यात्रा के दौरान तय हुआ था।

भारत ने रूस से तेल आयात को भी निर्बाध रूप से जारी रखा है, जो ट्रंप को नागवार गुजर रहा है। ट्रंप ने भारत पर 25% और फिर 50% टैरिफ लगाकर दबाव बनाने की कोशिश की, लेकिन भारत ने स्पष्ट कर दिया कि वह अपनी ऊर्जा सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों के लिए रूस से तेल खरीदना जारी रखेगा। रूस ने भी भारत का समर्थन करते हुए कहा है कि भारत को अपने हित में स्वतंत्र निर्णय लेने का पूरा अधिकार है।

चीन के साथ बढ़ती नजदीकियां

भारत न केवल रूस के साथ अपनी दोस्ती को मजबूत कर रहा है, बल्कि चीन के साथ भी संबंधों को बेहतर करने की दिशा में कदम उठा रहा है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी 18 अगस्त 2025 को नई दिल्ली का दौरा कर सकते हैं, जहां उनकी मुलाकात अजीत डोभाल से होने की संभावना है। यह दौरा ऑपरेशन सिंदूर के बाद किसी चीनी नेता की पहली भारत यात्रा होगी। इसके अलावा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अगस्त से 1 सितंबर 2025 तक तियानजिन में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे, जो उनकी सात साल बाद पहली चीन यात्रा होगी।

इससे पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, अजीत डोभाल और एस. जयशंकर भी 2025 में विभिन्न अवसरों पर चीन का दौरा कर चुके हैं। इन यात्राओं से भारत और चीन के बीच कूटनीतिक तालमेल बढ़ रहा है। बीजिंग रूस-भारत-चीन (RIC) त्रिपक्षीय ढांचे को पुनर्जनन देने के लिए दबाव बना रहा है, हालांकि भारत ने अभी इस पर कोई स्पष्ट रुख नहीं अपनाया है। फिर भी, यह स्पष्ट है कि भारत और चीन ट्रंप की टैरिफ नीतियों के खिलाफ एकजुट होकर जवाब दे रहे हैं।

ट्रंप की नीतियों का भारत का जवाब

भारत ने ट्रंप की कई मांगों को सिरे से खारिज कर दिया है, जो उनकी नाराजगी का प्रमुख कारण है।

  1. टैरिफ पर अडिग रुख: ट्रंप चाहते हैं कि भारत रूस से तेल आयात बंद कर दे और अपने डेयरी व कृषि क्षेत्र को अमेरिकी कंपनियों के लिए खोल दे। हालांकि, भारत ने इन मांगों को ठुकराते हुए रूस से तेल खरीद जारी रखी है और अपने बाजारों को संरक्षित करने का फैसला किया है। ट्रंप ने पहले 25% और फिर 50% टैरिफ लगाए, लेकिन भारत ने इन धमकियों के सामने झुकने से इनकार कर दिया।

  2. सीजफायर का श्रेय: ट्रंप ने कई बार दावा किया है कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच शांति स्थापित की और युद्ध को परमाणु स्तर तक पहुंचने से रोका। पाकिस्तान ने इस दावे का समर्थन किया, लेकिन भारत ने ट्रंप को इस मामले में कोई श्रेय नहीं दिया। यह ट्रंप की नाराजगी का एक बड़ा कारण है।

  3. नोबेल पुरस्कार की अनदेखी: ट्रंप शांति का नोबेल पुरस्कार पाने की ख्वाहिश रखते हैं और दावा करते हैं कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान, इजराइल-ईरान, और अजरबैजान-आर्मेनिया जैसे संघर्षों को सुलझाया। कई देशों ने उन्हें नोबेल के लिए नामित भी किया, लेकिन भारत ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया, जिससे ट्रंप की निराशा और बढ़ी है।

वैश्विक मंच पर भारत की रणनीति

भारत की रणनीति न केवल ट्रंप को जवाब देना है, बल्कि वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को मजबूत करना भी है। रूस और चीन के साथ बढ़ती नजदीकियां, SCO जैसे मंचों पर सक्रिय भागीदारी, और BRICS देशों के साथ समन्वय भारत की स्वतंत्र विदेश नीति को दर्शाते हैं। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी भी देश के दबाव में नहीं झुकेगा और अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देगा।

चीन ने भी ट्रंप की टैरिफ धमकियों का कड़ा जवाब देते हुए अपने रूस के साथ व्यापार को "वैध और कानूनी" बताया है। यह दिखाता है कि भारत और चीन, ऐतिहासिक मतभेदों के बावजूद, अमेरिकी दबाव के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं। रूस-भारत-चीन (RIC) ढांचे की संभावित वापसी वैश्विक भू-राजनीति में एक नया समीकरण बना सकती है, जो ट्रंप की नीतियों के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है।

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