Trump-Putin Meeting: ट्रंप का बड़ा दावा, बोले- 'भारत पर लगे टैरिफ की वजह से रूस बातचीत के लिए तैयार हुआ'

Trump-Putin Meeting - ट्रंप का बड़ा दावा, बोले- 'भारत पर लगे टैरिफ की वजह से रूस बातचीत के लिए तैयार हुआ'
| Updated on: 15-Aug-2025 03:20 PM IST

Trump-Putin Meeting: 15 अगस्त 2025 को अलास्का के जॉइंट बेस एलमेंडॉर्फ-रिचर्डसन में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच एक महत्वपूर्ण बैठक होने जा रही है। यह बैठक रूस-यूक्रेन युद्ध के समाधान और वैश्विक भू-राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करने के लिहाज से अहम मानी जा रही है। बैठक से पहले ट्रंप ने दावा किया है कि भारत पर लगाए गए टैरिफ ने रूस को बातचीत की मेज पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

ट्रंप का दावा: भारत पर टैरिफ ने रूस को मजबूर किया

फॉक्स न्यूज के एक साक्षात्कार में डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, "हर चीज का असर होता है। जब हमने भारत से कहा कि रूस से तेल खरीदने पर हम आप पर शुल्क लगाएंगे, तो भारत को रूसी तेल खरीदना बंद करना पड़ा। इसके बाद रूस ने फोन किया और मुलाकात के लिए तैयार हुआ।" ट्रंप ने भारत को रूस का दूसरा सबसे बड़ा तेल खरीदार बताते हुए कहा कि इस टैरिफ के कारण मॉस्को को आर्थिक दबाव का सामना करना पड़ा। उन्होंने आगे कहा, "जब आप अपना दूसरा सबसे बड़ा ग्राहक खो देते हैं, और शायद पहला भी खोने की कगार पर हों, तो यह बातचीत की दिशा में एक बड़ा कदम होता है।"

अमेरिका ने भारत पर 25% बेस टैरिफ और रूसी तेल खरीदने के लिए 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाया है, जिससे कुल टैरिफ 50% तक पहुंच गया है। ट्रंप का मानना है कि इस आर्थिक दबाव ने रूस को अलास्का में बातचीत के लिए प्रेरित किया।

भारत का रुख: तेल खरीद में कोई बदलाव नहीं

भारत ने अमेरिकी दबाव के बावजूद रूस से तेल खरीदने की अपनी नीति में बदलाव से इनकार किया है। विदेश मंत्रालय ने गुरुवार को स्पष्ट किया कि भारत का रूसी तेल आयात पूरी तरह से आर्थिक और रणनीतिक हितों पर आधारित है। भारत ने कहा कि वह रूस से तेल खरीदना बंद नहीं करेगा और यह निर्णय अमेरिकी टैरिफ की धमकी से प्रभावित नहीं है। भारत ने यह भी बताया कि रूस के साथ उसका व्यापारिक संबंध ऊर्जा सुरक्षा और दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण है।

ट्रंप की चेतावनी और पुतिन की प्रतिक्रिया

ट्रंप ने अलास्का बैठक से पहले रूस को कड़ी चेतावनी दी है। उन्होंने कहा कि यदि पुतिन यूक्रेन में युद्धविराम के लिए सहमत नहीं हुए, तो रूस को "बेहद गंभीर परिणाम" भुगतने होंगे। दूसरी ओर, व्लादिमीर पुतिन ने संयम बरतते हुए ट्रंप के शांति प्रयासों की सराहना की है। पुतिन ने कहा कि अमेरिका युद्ध समाप्ति और वैश्विक स्थिरता के लिए गंभीर प्रयास कर रहा है, और वह इस बैठक को एक रचनात्मक अवसर के रूप में देखते हैं।

बैठक का वैश्विक महत्व

अलास्का में होने वाली यह बैठक कई मायनों में ऐतिहासिक है। यह 2021 के बाद पहली बार है जब अमेरिका और रूस के राष्ट्रपति आमने-सामने मिलेंगे। जॉइंट बेस एलमेंडॉर्फ-रिचर्डसन, जहां यह बैठक हो रही है, शीत युद्ध के दौरान सोवियत गतिविधियों पर नजर रखने का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। यह स्थान प्रतीकात्मक रूप से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि 1867 में रूस ने अलास्का को अमेरिका को बेच दिया था।

बैठक का मुख्य एजेंडा रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने की संभावनाओं पर चर्चा करना है। हालांकि, विश्लेषकों का मानना है कि तत्काल किसी बड़े समझौते की संभावना कम है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने स्पष्ट किया है कि कोई भी शांति समझौता यूक्रेन की सहमति के बिना स्वीकार्य नहीं होगा।

भारत के लिए क्या है दांव पर?

भारत के लिए यह बैठक कई मायनों में महत्वपूर्ण है। अमेरिकी टैरिफ के कारण भारत के निर्यात पर भारी दबाव पड़ रहा है। ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स के अनुसार, यदि टैरिफ की दरें इसी तरह जारी रहीं, तो अमेरिका को होने वाले भारतीय निर्यात में 60% तक की गिरावट आ सकती है, जिससे भारत के जीडीपी पर 1% का असर पड़ सकता है। इसके बावजूद, भारत ने रूस के साथ अपने रक्षा और औद्योगिक सहयोग को मजबूत करने के लिए कदम उठाए हैं। हाल ही में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने मॉस्को का दौरा किया और रूस के साथ एल्युमिनियम, खाद, रेलवे, और माइनिंग टेक्नोलॉजी में सहयोग के लिए समझौते किए।

क्या होगा भविष्य?

अलास्का बैठक के परिणाम वैश्विक राजनीति और व्यापार पर गहरा असर डाल सकते हैं। यदि यह बैठक सफल होती है, तो यह रूस-यूक्रेन युद्ध में शांति की दिशा में एक कदम हो सकती है, और भारत पर लगे टैरिफ में राहत की संभावना बढ़ सकती है। हालांकि, यदि बातचीत विफल होती है, तो अमेरिका द्वारा भारत और अन्य देशों पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की धमकी हकीकत बन सकती है। अमेरिकी ट्रेजरी सचिव स्कॉट बेसेंट ने चेतावनी दी है कि असफल वार्ता के बाद टैरिफ और प्रतिबंध बढ़ सकते हैं।

विश्लेषकों का मानना है कि भारत को इस स्थिति में अपनी कूटनीतिक चालों को और मजबूत करना होगा। रूस के साथ संबंधों को बनाए रखते हुए भारत को अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ भी संतुलन साधना होगा। साथ ही, चीन के साथ आगामी एससीओ समिट में होने वाली मुलाकात भारत के लिए एक अवसर हो सकती है, जहां वह अमेरिकी टैरिफ के खिलाफ रणनीति तैयार कर सकता है।

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