विदेश: अमेरिका, यूके और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुई परमाणु पनडुब्बी संधि को लेकर फ्रांस नाराज़ क्यों है?

विदेश - अमेरिका, यूके और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुई परमाणु पनडुब्बी संधि को लेकर फ्रांस नाराज़ क्यों है?
| Updated on: 18-Sep-2021 08:03 PM IST
पेरिस: फ्रांस की सरकार का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया ने उसके साथ अरबों डॉलर की डील खत्म करके उसे धोखा दिया है। ऑस्ट्रेलिया ने अमेरिका और ब्रिटेन के साथ परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों के लिए नई डील की है। इस AUKUS डील को लेकर फ्रांस बेहद नाराज है और इसे पीठ में छूरा घोंपना तक करार दे दिया है। फ्रांस ने अपने राजदूतों को भी अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से वापस बुला लिया जो आधुनिक इतिहास में शायद पहली बार किया गया है। ऐसे में यह समझना अहम हो जाता है कि आखिर फ्रांस की इस नाराजगी का कारण क्या है?

फ्रांस को क्या नुकसान?

CNN की रिपोर्ट के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया के ये डील तोड़ने से फ्रांस को 65 अरब डॉलर का नुकसान होगा। ये डील डीजल चालित पनडुब्बियों के लिए की गई थी। फ्रांस दुनियाभर में हथियारों को एक अहम एक्सपोर्टर है और डील रद्द होने से उसके रक्षा क्षेत्र को बड़े आर्थिक झटके का खतरा है। यही नहीं, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भी रणनीतिक नुकसान उठाना पड़ सकता है जहां वह अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश में था।

ऑस्ट्रेलिया के साथ व्यापार बढ़ाना चाहता था

स्टॉकहोम इंटरनैशनल पीस रिसर्च इंस्टिट्यूट (SIPRI) के मुताबिक साल 2010 से 2020 के बीच ऑस्ट्रेलिया हथियारों का चौथा सबसे बड़ा आयातक था जबकि फ्रांस उसे हथियार पहुंचाने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश था। इस दौरान फ्रांस से ऑस्ट्रेलिया को 6% हथियार जाते थे। वह मुख्य रूप से ट्रांसपोर्ट, कॉम्बैट हेलिकॉप्टर और टॉर्पीडो मुहैया कराता था। जाहिर है दोनों एक-दूसरे पर निर्भर तो नहीं थे लेकिन फ्रांस को उम्मीद थी कि 12 अटैक-क्लास पारंपरिक पनडुब्बियों से यह स्थिति बेहतर होगी।

अमेरिकी 'राज' खत्म करने की उम्मीद पर पानी

अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुए गुपचुप समझौते से फ्रांस बेहद गुस्सा है, खासकर अमेरिका से। फ्रांस को उम्मीद थी कि समझौते के साथ ही ऑस्ट्रेलिया के साथ उसकी नजदीकी बढ़ेगी। द गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक फ्रांस अपने हितों की रक्षा भी करना चाहता है। एक अहम रक्षा समझौते के रद्द होने से यूरोप की आत्मनिर्भरता पर भी जोर दिए जाने की अटकलें तेज हो गई हैं ताकि अमेरिका पर निर्भरता को कम किया जा सके। फ्रांस के राष्ट्रपति इम्मैन्युअल मैक्रों पहले भी इसे लेकर संकेत दे चुके हैं।

अमेरिका ने ही घोंपा पीठ में छूरा?

एक वक्त था जब अमेरिका पर ब्रिटेन का राज था। उसकी आजादी में फ्रांस ने बड़ी भूमिका निभाई थी। विचारधारा से लेकर सैन्य समर्थन तक सब पहुंचाया था। अमेरिका के स्वतंत्रता सेनानी फ्रांस से इस जंग की सीख ले रहे थे। यहां तक कहा जाता है कि अगर फ्रांस के विचारों की ताकत न मिलती तो अमेरिका कभी ब्रिटेन की छाया से निकलने की हिम्मत शायद ही जुटा पाता। अमेरिकी आंदोलन को फ्रांस ने सेना भी पहुंचाई और आर्थिक मदद भी दी थी। अब आधुनिक अमेरिका ने ही उसका पत्ता काट दिया है तो जाहिर कि उसकी नाराजगी इस हद तक है।

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