बॉलीवुड / रोजाना 50 हजार कॉल, 22 घंटे तक काम, सोनू सूद ने बताया कैसे करते हैं सबकी मदद

Zoom News : May 08, 2021, 07:14 AM
MH: कोरोना काल में मसीहा बनकर उभरे एक्टर सोनू सूद लगातार देश की जनता की मदद कर रहे हैं। ऐसे में सोनू सूद नेे खास बातचीत की। पिछले लॉकडाउन से लेकर अभी तक के लॉकडाउन तक सोनू सूद मदद पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। सोनू और उनकी टीम लगातार कोरोना से जरूरतमंदों की मदद में लगी हुई है। सोनू ने अपने एक्सपीरियंस और राहत कार्य में आने वाली मुश्किलों के बारे में खुलासे किए। सोनू से हमने पुछा कि वह कैसे इतने लोगों की मदद कर पाते हैं।

कैसे लोगों की मदद कर रहे हैं सोनू सूद और उनकी टीम?

इसपर सोनू सूद ने कहा, ''मैं ये कहूंगा कि प्रशासन भी मदद कर रहा है लेकिन हर एक इंसान को करना पड़ेगा। क्योंकि इस समय हर किसी को हर किसी की जरूरत है। मैं कैसे करता हूं मुझे खुद नहीं पता। मैं करीबन 22 घंटे फोन पर रहता हूं। हमें 40000 से 50000 रिक्वेस्ट आती है। मेरी 10 लोगों की टीम सिर्फ ऐसी है जो Remdesivir के लिए घूमती है। मेरी एक टीम बेड्स के लिए घूमती है, शहर के हिसाब से हम लोग घूमते हैं। मुझे देशभर के डॉक्टर्स से बात करनी होती है, उन्हें जिस चीज की जरूरत होती है तो हमें जल्द से जल्द मुहैया करवानी होती है। जिन लोगों की मदद हम कर चुके हैं वो एक तरह से हमारी टीम का हिस्सा बन जाते हैं। मैं आपको बताऊं कि मुझे जितनी रिक्वेस्ट आती हैं उन सबको देखने चलूं तो कम से कम 11 साल लगेंगे उनतक पहुंचने में, इतनी ज्यादा रिक्वेस्ट हैं। लेकिन हमारी कोशिश जारी है कि ज्यादा से लोगों की जाने बचा सकें।''

लाखों लोग सोनू सूद को शुक्रिया बोल रहे हैं 

इस मुश्किल समय में अपने आप को कैसे साधे रखते हैं सोनू सूद इसपर उन्होंने कहा एक किस्सा सुनाया। उन्होंने कहा, ''हम एक लड़की को अस्पताल में बेड दिलाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन बेड नहीं मिल पा रहा था। रात के 1 बजे रहे थे और उसकी बहन फोन पर बहुत रो रही थी और कह रही थी कि प्लीज बचा लीजिए वरना परिवार खत्म हो जाएगा। तो मैं बहुत परेशान था। ऐसा करते-करते रात को 2।30 बज गए थे और मैं दुआ कर रहा था कि वो लड़की सुबह तक बच जाए ताकि हम उसे बेड दिलवा सकें। सुबह 6 बजे मुझे कॉल आया और मैंने उसे बेड दिलवाया और अभी वो ठीक है। तो खुशी होती है कि मैं मदद कर पाया।''

इतना ही नहीं सोनू सूद ने कहा कि इस समय उनके पास निगेटिव सोच और गुस्से का समय नहीं है। वह कहते हैं कि मुश्किल के इस समय में लोगों को गुस्सा और चिढ़ छोड़कर अपना ध्यान दूसरों की मदद में लगाना चाहिए। 

राहत कार्य में आने वाली सबसे बड़ी मुश्किल है ये

अपने काम में आने वाली मुश्किलों पर भी सोनी सूद ने बात की। उन्होंने कहा, ''सबसे बड़ी मुश्किल नए शहर में होती है। जब आपके कोई कॉन्टैक्ट नहीं है, तो क्या किया जाए। हम वहां के लोगों को अपना हिस्सा बनाने की कोशिश करते हैं। जैसे गांव में पहुंचने के साधन नहीं हैं तो हम खुद गाड़ियां भेजते हैं, उन्हें अस्पताल पहुंचाते हैं। अस्पतालों के भी हाल बहुत बुरे हैं। ऐसे में दिक्कत तो बहुत है।''

लोगों को बचाना है तो समंदर में कूदना ही होगा- सोनू 

सोनू सूद से पूछा गया कि राहत के काम में कई बार ऐसे वीडियो और तस्वीरें उन्हें देखने को मिलती होंगी, जो उन्हें विचलित करती होंगी। इसपर सोनू ने कहा, ''बहुत सारे हैं। मैं आपको छोटा-सा किस्सा बताता हूं। देहरादून में एक लड़की थी सबा, वो छह महीने प्रेग्नेंट थी और उसे ट्विन्स होने वाले थे। सबा बहुत तकलीफ में थी। उसके पति और बहन ने हमें ट्विटर के जरिए कॉन्टैक्ट कर मदद मांगी थी। हमने उनको अस्पताल में बेड दिलवाया, उन्हें ICU की जरूरत पड़ी हमने वो दिलवाया, फिर प्लाज्मा की जरूरत पड़ी वो दिलवाया, फिर वेंटिलेटर की जरूरत पड़ी वो भी दिलाया। तो हमें लगा कि हमने बचा लिया है और वो ठीक भी हो गई थी। लेकिन अगले दिन हमें कॉल आया कि वो नहीं रही। तो बड़ा दुख हुआ। ऐसा लगा जैसे आपके घर से कोई चला गया हो। 

आप विश्वास नहीं करेंगे कि 10 घंटे बाद उसकी बहन और पति से मुझे कॉल किया और कहा कि हम आपकी टीम से साथ जुड़कर मदद का काम करना चाहेंगे, ताकि हम दूसरों को बचा सकें। तो वो जज्बा होता है जब आप किसी के लिए मेहनत करते हैं। उनको पता है कि आप मजबूर इंसान हैं। ये समय ऐसा है कि कोई फर्क नहीं पता कि आप कितने अमीर हो, कितने कनेक्टेड हो। इतने बड़े-बड़े लोग जिनसे मैं भी मदद मांगता, वो मुझे कॉल करते हैं और कहते हैं कि सोनू मुझे मदद की जरूरत है, इस चीज का इंतजाम करवा के दे। मैं सबसे कहना चाहूंगा कि आप ये मत सोचिए कि आप कैसे करेंगे, आपके लिए पहला कदम उठाना जरूरी है। आपका समंदर में कूदना जरूरी है, तैरना लहरें खुद सिखा देंगी।''

सोनू सूद को खुद भी कोरोना हुआ था

मैं एक्शन से आउट नहीं था। बल्कि मैं और ज्यादा एक्शन में आ गया था। मैं एक कमरे में बंद था, बाहर नहीं निकल रहा था। मेरे पास मेरा फोन था और मुझे ढेरों कॉल आ रहे थे। मैं अभी 22 घंटे काम करता हूं तब मैं 24 घंटे काम करता था। क्योंकि समय ही समय था मेरे पास। तो मुझे लगता है कि उस समय तब मैं आइसोलेशन में था मैं ज्यादा लोगों से जुड़ा और ज्यादा लोगों को मदद पहुंचा पाया। मुझे याद है मेरे दोस्त बोलते थे कि यार फिल्में देखना अच्छी-अच्छी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर। मैंने अभी तक अपने रिमोट को हाथ ही नहीं लगाया। समय ही नहीं है। यह वो समय है जब आपको हर चीज पीछे छोड़नी है, हर एक इंसान हो। हर एक इंसान को आगे आना है, टीम बनानी है और अपने साधनों का इस्तेमाल करना है। मैं मंटा हूं कि कोई भी इंसान भले ही वो एक्टर हो, टीचर हो या कोई भी हो किसी ना किसी ऐसे को जनता है जो दूसरे की जान बचा सकता है। ऐसे लोगों को उठना होगा और अपने कॉन्टैक्ट्स को एक्टिवेट वापस करना होगा। 



सिस्टम की लाचारी से रूबरू हो रहे है सोनू सूद 


बहुत ज्यादा। मुझे लगता है कि पहले हम शिकायतें करते थे कि हिंदुस्तान में ऐसा होता तो अच्छा होता। सड़कें अच्छी होतीं, अस्पताल अच्छे होते। लेकिन इस बार जो हुआ है। इतने मासूम लोगों ने अपनी जानें गंवाई हैं कि मैं आपको बता नहीं सकता। सब यंग लोग हैं। 18, 20 22 साल के लोग, जिन्होंने अपनी जान गंवाई है। इन्होने एक महीने पहले सोचा नहीं होगा कि एक ऐसी वेव आएगी और इतना भारी नुक्सान होगा। तो हम लोग कैसे इसको देख रहे हैं आने वाले समय में, हम लोग देख रहे हैं कि देश का जीडीपी जो है उसका 1 से 2 फीसदी हेल्थकेयर को जाता है। लेकिन इन मासूम लोगों ने जो जाने गंवाई है उनका कुछ नहीं हो सकता। मेरे हिसाब से 7 से 8 फीसदी हेल्थकेयर को जाना चाहिए ताकि हमारे देश के लोग ऐसी किसी भी घटना में सुरक्षित हों। मुझे नहीं लगता कि इन लोगों के परिवार वाले कभी भी उन चीजों से बाहर आ पाएंगे कि हमारे परिवार वालों ने जाने गंवाई, क्योंकि उन्हें एक ऑक्सीजन सिलिंडर नहीं मिल पाया। लोग बिलखते हैं मेरे कॉल पर कि आप बचा लीजिए हमारे आपको को, मैं बेबस महसूस करता हूं। मैं चाहता हूं ऐसा कभी किसी के साथ दोबारा ना हो।'' 

सोनू सूद ने आगे आने वाले समय में उनका क्या प्लान है इस बारे में बात करते हुए कहा, ''मुझे तो खड़े होना ही है देश के लिए। मैं बहुत बच्चों को जनता हूं जिन्होंने अपने मां-बाप को खोया है। लेकिन अब सरकारों को आगे आना होगा। कोरोना से मां-बाप खो चुके बच्चों के लिए पढ़ाई का कोई खर्चा नहीं लगना चाहिए। ऐसे में बच्चों के लिए सरकारी हो या प्राइवेट कहीं भी पैसे नहीं लगने चाहिए। मैं पहले भी बोल चुका हूं कि श्मशान घाट में भी लोगों के लिए सब फ्री होना चाहिए। ये वो समय है जब हम उन बच्चों को बता सकते हैं कि उनका साथ देने के लिए हम यहां हैं। मैं खुद भी कोरोना से अपने मां-बाप खो चुके बच्चों की पढ़ाई के लिए एक मुहीम शुरू कर रहा हूं। मुझे अभी इसमें कुछ समय लगेगा क्योंकि अभी मैं व्यस्त हूं, लेकिन मैं पूरी कोशिश कर रहा हूं कि मैं इन बच्चों की पढ़ाई फ्री करवा दूं।''


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