नई दिल्ली / अयोध्या केस: सुनवाई का 18वां दिन, मुस्लिम पक्ष ने कहा- मस्जिद में छिपाकर रखी गईं मूर्तियां

NavBharat Times : Sep 04, 2019, 07:32 AM
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट में चल रही अयोध्या मामले की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्षकारों ने मंगलवार को दावा किया कि 22-23 दिसंबर की रात अयोध्या में बाबरी मस्जिद के अंदर मूर्तियां रखने के लिए सुनियोजित और नजर बचा के हमला किया गया जिसमें कुछ अधिकारियों की हिंदुओं के साथ मिलीभगत थी और उन्होंने प्रतिमाओं को हटाने से इनकार कर दिया। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में 18वें दिन सुनवाई की। सुनवाई की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के एक सरकारी कर्मचारी को नोटिस भेजा। उनपर मुस्लिम पक्ष की दलीलें रख रहे राजीव धवन को धमकियां देने का आरोप है। 

चोरी से रखी गईं मूर्तियां: राजीव धवन

इस दौरान मुस्लिम पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने पीठ को बताया कि फैजाबाद के तत्कालीन उपायुक्त के के नायर ने स्पष्ट निर्देश के बावजूद मूर्तियों को हटाने की इजाजत नहीं दी। धवन ने पीठ को बताया, 'बाबरी के अंदर देवी-देवताओं की प्रतिमा का प्रकट होना चमत्कार नहीं था। 22-23 दिसंबर 1949 की रात उन्हें रखने के लिए सुनियोजित तरीके से और गुपचुप हमला किया गया।' पीठ में न्यायमूर्ति एसए बोबडे, डी वाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एस ए नजीर भी शामिल हैं। 

सुन्नी वक्फ बोर्ड और मूल वादियों में से एक एम सिद्दीक का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ने दावा किया कि उन्हें अंदर की कहानी पता थी और कहा कि नायर ने बाद में भारतीय जन संघ के उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा चुनाव लड़ा था। धवन ने कहा कि नायर ने 16 दिसंबर 1949 में राज्य के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर कहा था कि बाबर द्वारा 1528 में ध्वस्त किए जाने से पहले वहां विक्रमादित्य द्वारा बनाया गया एक भव्य मंदिर था। उन्होंने कहा, 'यह श्रीमान नायर का योगदान था।' उन्होंने हिंदू पक्षकारों द्वारा पेश की गईं विवादित स्थल के अंदरुनी हिस्सों की तस्वीरों का हवाला देते हुए आरोप लगाया कि नायर समेत सरकारी अधिारियों ने स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने के आदेश का उल्लंघन तस्वीरें खींचे जाने की इजाजत देकर किया। अंदर प्रतिमाएं रखे जाने के बाद पांच जनवरी 1950 को इस संपत्ति को कुर्क कर दिया गया था। 

पीठ ने टिप्पणी की, 'इनका (तस्वीरों का) मामले पर कोई प्रभाव नहीं है।' धवन ने कहा, 'निश्चित रूप से उनका प्रभाव है। क्योंकि उनका इस्तेमाल यह कहने के लिए किया गया कि इसे मंदिर की तरह देखा जाए।' उन्होंने कहा कि इन तस्वीरों में कथित रूप से देवी, देवताओं, कमल और मोर के रेखाचित्र हैं और हिंदुओं ने इसका इस्तेमाल किया। धवन ने कहा कि हिंदुओं ने मुसलमानों को इबादत की इजाजत नहीं दी और मुसलमानों ने 1934 के बाद से कभी नमाज अदा नहीं की। उन्होंने कहा, 'वे कहते थे कि परिसीमा कानून और प्रतिकूल कब्जे का सिद्धांत आपके खिलाफ जाता है क्योंकि हम आपको अधिकार और इबादत की इजाजत नहीं देते।' 

उन्होंने इसके साथ ही उस प्रतिवेदन का भी जवाब दिया कि मुसलमानों का कब्जा नहीं था और वे कभी भी नियमित रूप से यहां नमाज नहीं अदा करते थे। पीठ ने पूछा, 'तथ्यात्मक रूप से क्या मुसलमानों द्वारा कोई कार्रवाई की गई थी।' धवन ने कहा कि मुसलमानों ने वक्फ निरीक्षक से इसकी शिकायत की थी। स्थल की चाभी मुस्लिम पक्ष के पास थी और वे नमाज अदा करने के लिए अंदर नहीं जा सकते थे क्योंकि 1950 की कुर्की के बाद उस पर ताला लगा था और पुलिस उन्हें अंदर नहीं जाने देती थी तथा वे डरे हुए थे। इस पर पीठ ने पूछा कि क्या उस गवाह जिसने आरोप लगाया था कि मुसलमानों को अंदर जाने की इजाजत नहीं थी, उससे जिरह हुई थी। उन्होंने कहा, 'हम सिर्फ गवाह के बयान की सत्यता पर निर्भर हैं।' 

सरकारी कर्मचारी को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस: सुनवाई की शुरुआत में मुस्लिम पक्ष की तरफ से पेश राजीव धवन ने उन्हें मिली धमकियों का जिक्र किया। इसपर सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के पूर्व प्रफेसर षणमुगम को नोटिस जारी किया। प्रफेसर पर धवन को धमकी देने का आरोप। कोर्ट ने प्रफेसर से जवाब मांगा है। वह चेन्नै में रहते हैं। उन्होंने राजीव को धमकी दी थी और कहा था कि उन्हें सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से पेश नहीं होना चाहिए। 

(फिर न निकले कोई रथयात्रा) राजीव धवन, सुन्नी वक्फ बोर्ड: अयोध्या विवाद पर विराम लगना चाहिए। अब राम के नाम पर फिर कोई रथयात्रा नहीं निकलनी चाहिए। उनका इशारा बीजेपी द्वारा 1990 में निकाली गई रथयात्रा की ओर था जिसके बाद बाबरी विध्वंस हुआ था। 

विवादित जमीन के ढांचे के मेहराब के अंदर के शिलालेख पर 'अल्लाह' शब्द मिला। धवन साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि विवादित जगह पर मंदिर नहीं बल्कि मस्जिद थी। राजीव धवन ने कहा कि बाबरी मस्जिद में भगवान रामलला की मूर्ति स्थापित करना छल से हमला करना है। 

धवन ने हिन्दू पक्ष की दलील का हवाला देते हुए कहा कि मुस्लिम पक्ष के पास विवादित जमीन के कब्जे के अधिकार नहीं है क्योंकि 1934 में निर्मोही अखाड़ा ने गलत तरीके से अवैध कब्जा कर लिया था। धवन के मुताबिक, इसके बाद नमाज अदा नहीं की गई। 

17वें दिन क्या हुआ? 

इससे पहले सुनवाई के 17वें दिन मुस्लिम पक्षों ने मस्जिद पर हमले का जिक्र किया। कहा गया कि हिन्दुओं ने 1934 में बाबरी मस्जिद पर हमला किया, फिर 1949 में अवैध घुसपैठ की और 1992 में इसे तोड़ दिया और अब कह रहे हैं कि संबंधित जमीन पर उनके अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए। 

बता दें कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। इस संवैधानिक पीठ में जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. ए. नजीर भी शामिल हैं। पूरा विवाद 2.77 एकड़ की जमीन को लेकर है। 

नवंबर तक आ सकता है फैसला 

राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील इस मामले पर नवंबर में अंतिम फैसला आने की संभावना बढ़ गई है। मामले की SC में सुनवाई 6 अगस्त से शुरू हुई थी। ऐसे में देखें तो 25 दिन में आधी सुनवाई पूरी हो चुकी है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं। ऐसे में कोर्ट के गलियारों में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि बेंच सीजेआई के रिटायर होने से पहले ही फैसला सुना सकता है। विवादित जमीन का दो तिहाई हिस्सा, जिसे मिला उसकी सुनवाई 25 दिनों में ही पूरी होने से अब जल्द फैसला आने की संभावना बढ़ गई है। 

हिंदू पक्ष ने रखीं दिलचस्प दलीलें 

16 दिन की सुनवाई में हिंदू पक्ष (रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा) के वकीलों ने अपनी बात को पूरी प्रमाणिकता के साथ रखने की भरसक कोशिश की है। सुनवाई के दौरान दिलचस्प दलीलें भी रखी गईं। कभी रामलला को नाबालिग बताया गया तो कभी मालिकाना हक के सबूत डकैती में लुटने की बात भी सामने आई। सुप्रीम कोर्ट ने भी राम के वंशजों के बारे में पूछकर हलचल मचा दी। सुनवाई के पहले दिन ही हिंदू पक्ष ने यह दलील रखी। निर्मोही अखाड़े के वकील सुशील जैन ने कहा कि विवादित भूमि पर 1949 के बाद से नमाज नहीं हुई इसलिए मुस्लिम पक्ष का वहां दावा ही नहीं बनता है। उन्होंने कहा कि जहां नमाज नहीं अदा की जाती है, वह स्थान मस्जिद नहीं मानी जा सकती है। 


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