नई दिल्ली / हिंदू पक्ष की दलील- अकबर और जहांगीर के काल में आए यात्रियों की किताबों में राम जन्मभूमि का जिक्र

Dainik Bhaskar : Aug 14, 2019, 12:47 PM
नई दिल्ली. अयोध्या भूमि विवाद मामले में बुधवार को छठे दिन सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। हिंदू पक्ष के वकील सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि मुगल शासक अकबर और जहांगीर के काल में भारत आने वाले यात्रियों विलियम फिंच और विलियम हॉकिन्स ने अपनी किताबों में राम जन्मभूमि और अयोध्या के बारे में लिखा है। लेखक विलियम फोस्टर ने ‘अर्ली ट्रैवल्स इन इंडिया’ बुक में उन सात अंग्रेज यात्रियों के बारे में बताया है, जो अयोध्या के बारे में लिख चुके हैं।

वैद्यनाथन ने बेंच के सामने दलीलें पेश करते हुए स्कंद पुराण का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि लोगों में भगवान राम के प्रति विश्वास और आस्था के परे कोर्ट इस तथ्य पर नहीं जा सकती कि वे तर्कसंगत हैं या नहीं। रिवाज है कि सरयू नदी में स्नान करने के बाद राम जन्मभूमि के दर्शन का लाभ मिलता है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- ये पुराण कब लिखा गया था? वैद्यनाथन ने जवाब दिया- यह पुराण वेद व्यास द्वारा महाभारत काल में लिखा गया, लेकिन कोई नहीं जानता कि यह कितना पुराना है।

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- जो आप कह रहे है उसमें राम जन्मभूमि के दर्शन के बारे में कहा गया है, देवता के बारे में नहीं? वैधनाथन ने कहा- वह इसलिए क्योंकि जन्मस्थान खुद में ही एक देवता है। फ्रेंच ट्रेवलर विलियम फिंच 1608 से 1611 तक अयोध्या में रहे और उन्होंने एक किताब लिखी थी, जिसमें राम जन्मभूमि का अस्तित्व स्पष्ट है। दूसरे यात्री जोसफ टाइपन बैरल थे, जो अयोध्या आए और उन्होंने किताब में राम जन्मभूमि का जिक्र किया था।

अयोध्या मामले में अब तक क्या हुआ?

मध्यस्थता पैनल द्वारा मामले का समाधान नहीं निकलने के बाद कोर्ट 6 अगस्त से सुनवाई कर रहा है। यह नियमित सुनवाई तब तक चलेगी, जब तक कोई नतीजा नहीं निकल जाता।

पहली सुनवाई: 6 अगस्त को सुनवाई के पहले दिन निर्मोही अखाड़ा ने पूरी 2.77 एकड़ विवादित जमीन पर अपना दावा किया। कहा था कि पूरी विवादित भूमि पर 1934 से ही मुसलमानों को प्रवेश की मनाही है।

दूसरी सुनवाई: 7 अगस्त को बेंच ने पक्षकार निर्मोही अखाड़े से संबंधित 2.77 एकड़ भूमि के दस्तावेज पेश करने को कहा था। इस पर अखाड़े ने कहा था कि 1982 में वहां डकैती हुई, जिसमें सभी दस्तावेज खो गए।

तीसरी सुनवाई: 8 अगस्त को बेंच ने पूछा कि एक देवता के जन्मस्थल को न्याय पाने का इच्छुक कैसे माना जाए, जो इस केस में पक्षकार भी हो। इस पर वकील ने कहा कि हिंदू धर्म में किसी स्थान को पवित्र मानने और पूजा करने के लिए मूर्तियों की आवश्यकता नहीं है। नदियों और सूर्य की भी पूजा की जाती है और उनके उद्गम स्थलों को इसी तरह से देखा जाता है।

चौथी सुनवाई: 9 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने रामलला के वकील से पूछा था- क्या भगवान राम का कोई वंशज अयोध्या या दुनिया में है? इस पर वकील ने कहा था- हमें जानकारी नहीं है। बाद में जयपुर राजघराने की दीयाकुमारी ने खुद को श्री राम के बड़े बेटे कुश के वंशज होने का दावा किया था। मुस्लिम पक्ष ने हफ्ते में पांच दिन सुनवाई पर आपत्ति जताई थी।

पांचवी सुनवाई: 13 अगस्त को हिंदू पक्ष के वकील सीएस वैद्यनाथन ने मंदिर के अस्तित्व को लेकर दलीलें पेश कीं। उन्होंने कहा- इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में विवादित जगह पर मंदिर होने का जिक्र है। हाईकोर्ट के जस्टिस एसयू खान ने कहा था कि यह मस्जिद मंदिर के टूटे-फूटे हिस्से पर बनाई गई है।

मार्च में बनाया था मध्यस्थता पैनल

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च को इस मामले को बातचीत से सुलझाने के लिए मध्यस्थता पैनल बनाया था। इसमें पूर्व जस्टिस एफएम कलीफुल्ला, आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर, सीनियर वकील श्रीराम पंचू शामिल थे। हालांकि, पैनल मामले को सुलझाने के लिए किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सका। इस पर सुप्रीम कोर्ट 6 अगस्त से नियमित को तैयार हुआ था।

हाईकोर्ट ने विवादित जमीन को 3 हिस्सों में बांटने के लिए कहा था

2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं दाखिल की गई थीं। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या का 2.77 एकड़ का क्षेत्र तीन हिस्सों में समान बांट दिया जाए। पहला-सुन्नी वक्फ बोर्ड, दूसरा- निर्मोही अखाड़ा और तीसरा- रामलला विराजमान।

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