Jansatta : Jul 28, 2020, 09:55 AM
बॉलीवुड डेस्क | अवॉर्ड के लिए बॉलीवुड के सितारे क्या-क्या करते हैं, इसका कुछ उदाहरण शेखर गुप्ता के कॉलम ‘नेशनल इंटरेस्ट’ में मिलता है। गुप्ता ने अपने निजी अनुभव के आधार पर ये बातें लिखी हैं। वह जब इंडियन एक्सप्रेस अखबार के प्रधान संपादक और कंपनी के सीईओ हुआ करते थे, तब ‘स्क्रीन अवॉर्ड’ से जुड़े उनके ये अनुभव बॉलीवुड के बड़े सितारों की पोल खोलने वाले हैं।‘द प्रिंंट’ वेबसाइट के लिए लिखे अपने कॉलम में शेखर गुप्ता ने ये अनुभव पहली बार सार्वजनिक किए हैं। 2011 के स्क्रीन अवॉर्ड से जुड़ा एक किस्सा पढ़िए। 2010 में रिलीज फिल्मों में शाहरुख खान की ‘माय नेम इज खान’ काफी चर्चित और हिट रही थी। लेकिन, 2011 में स्क्रीन अवॉर्ड के लिए इस फिल्म को जूरी ने किसी कैटेगरी में नॉमिनेट करने लायक नहीं समझा। यह पूरी तरह निर्णायक मंडल का स्वतंत्र फैसला था। उस निर्णायक मंडल का जिसके अध्यक्ष अमोल पालेकर थे।निर्णायक मंडल के इस फैसले का क्या आधार था, ये तो वही जानें, लेकिन जब इसकी जानकारी शाहरुख खान को लगी तो ब्लैकमेलिंंग शुरू हो गई। शाहरुख खान से अवॉर्ड समारोह में मंच पर परफॉर्म करने का करार किया गया था। कार्यक्रम से तीन दिन पहले बायकॉट की धमकी आने लगी। धमकी सीधे शाहरुख की ओर से नहीं आ रही थी, उनकी फिल्म से जुड़े लोगों की ओर से आ रही थी। करन जौहर के फोन कॉल से शेखर गुप्ता परेशान हो गए थे। जौहर मानने काे तैयार ही नहीं थे कि निर्णायक मंडल को उनकी फिल्म अवॉर्ड लायक लगी ही नहीं। जौहर दलील देने लगे कि क्यों बेचारे अमोल पालेकर ‘साल की सबसे बड़ी हिट देने वालों’ को नापसंद करते हैं और यह भी सवाल करते कि विक्रमादित्य मोटवानी की ‘उड़ान’ जैसी साधारण फिल्म को अवॉर्ड के लिए चुनने का साहस वह (अमोल पालेकर) कैसे कर सकते हैं?इतना ही नहीं, करन जौहर कुछ इस अंदाज में ब्लैकमेल करते थे- बायकॉट की धमकी केवल हमारी ओर से नहीं, बल्कि पूरी इंडस्ट्री की तरफ से है। समस्या से राहत तभी मिली जब ‘माय नेम इज खान’ को व्यूअर्स चॉयस अवॉर्ड के लिए चुना गया। यह अवॉर्ड होस्ट टीवी चैनल द्वारा कराए गए ऑनलाइन पोल के आधार पर दिया गया था।