High Court / हाईकोर्ट फिर बड़ा बयान- अकेले आदमी का पीड़िता के कपड़े खोल रेप करना लगभग असंभव

Zoom News : Jan 30, 2021, 09:31 AM
High Court: बाल यौन अपराध संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत यौन हमले की अपनी व्याख्या के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट की न्यायाधीश ने हाल ही में दो और मामलों में अपना फैसला दिया है। उन्होंने अपने फैसले में नाबालिग लड़कियों के साथ दुष्कर्म के दो आरोपियों को यह कहते हुए बरी कर दिया कि पीड़िता की गवाही आरोपी को अपराधी ठहराने का भरोसा कायम नहीं करती है। 

न्यायमूर्ति पुष्पा गनेदीवाला ने हाल ही में अपने एक फैसले में 12 साल की लड़की के स्तन को छूने के आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि त्वचा से त्वचा का संपर्क नहीं हुआ था। एक अन्य फैसले में न्यायमूर्ति गनेदीवाला ने कहा कि पांच साल की बच्ची का हाथ पकड़ना और पैंट की ज़िप खोलना पॉक्सो अधिनियम के तहत यौन हमले के दायरे में नहीं आता।

न्यायमूर्ति ने अपने दो अन्य फैसलों में नाबालिग लड़कियों के साथ दुष्कर्म के दो आरोपियों को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि पीड़िता की गवाही आरोपी को अपराधी ठहराने का भरोसा कायम नहीं करती है। कोर्ट ने कहा कि मामले में पीड़िता की गवाही के स्तर को देखते हुए अपीलकर्ता को 10 साल के लिए सलाखों के पीछे भेजना घोर अन्याय होगा। 

न्यायमूर्ति ने 15 जनवरी को 26 वर्षीय सूरज कासरकर की ओर से दायर याचिका पर फैसला सुनाया, जिसमें उसने 15 वर्ष की लड़की से रेप के आरोप को चुनौती दी थी। मामले में उसे ट्रायल कोर्ट ने 10 साल की सजा सुनाई थी। 

अभियोजन पक्ष का आरोप था कि जुलाई 2013 में कासरकर उनके घर में घुसा और नाबालिग लड़की से बलात्कार किया। आरोपी ने अपनी याचिका में यह दावा किया था कि वह और पीड़िता आपसी सहमति से संबंध में थे। उसने यह भी बताया कि लड़की की मां को जब इसके बारे में पता लगा तो उसके खिलाफ केस दर्ज कर दिया।

इस पर सुनवाई के दौरान जस्टिस गनेदीवाला ने कहा कि लड़की ने ट्रायल कोर्ट में अपनी उम्र 18 साल बताई थी लेकिन उसकी मां ने एफआईआर में लड़की की उम्र 15 साल लिखवाई।

न्यायमूर्ति ने इसक पे बाद यह भी कहा कि एक अकेले आदमी के लिए पीड़िता का मुंह बंद कर के उसके और अपने कपड़े उतारकर बिना किसी झड़प के बलात्कार करना लगभग असंभव है। कोर्ट के आदेश में यह भी कहा गया है कि मेडिकल जांच के बाद मिले सबूत भी पीड़िता के केस के पक्ष में नहीं हैं। 

न्यायमूर्ति गनेदीवाला ने कहा कि अगर यह संबंध जबरन बनाए गए होते तो दोनों पक्षों में झड़प हुई होती। मेडिकल रिपोर्ट में दोनों के बीच ऐसी कोई झड़प की पुष्टि नहीं हुई है।

वहीं, न्यायमूर्ति ने 14 जनवरी वाला फैसला 27 वर्षीय जगेश्वर कावले की ओर से दायर याचिका पर सुनाया। कावले को पोक्सो ऐक्ट और भारतीय दंड संहिता के तहत एक 17 वर्षीय लड़की से रेप का दोषी माना गया था। इसके लिए उसे 10 साल की सजा मिली थी।

अभियोजन पक्ष का कहना था कि आरोपी पीड़ित लड़की को अपनी बहन के यहां ले गया और वहां 2 महीने तक उसके साथ कई बार संबंध बनाए। इस मामले में कोर्ट ने कहा कि पीड़िता के बयान के अलावा इस रेप केस को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है।

अपने आदेश में न्यायमूर्ति गनेदीवाला ने यह भी हैरानी जताई कि कैसे घर के दूसरे सदस्यों ने बिना शादी के एक लड़के और लड़की को एक साथ सोने दिया और कैसे आरोपी और पीड़िता को एक साथ संबंध बनाने के लिए प्राइवेसी भी मिल गई।

SUBSCRIBE TO OUR NEWSLETTER