विशेष / अफ्रीका से अमेरिका तक धरती में हो रहे बदलाव, हो सकते हैं खतरनाक

AajTak : May 22, 2020, 08:48 AM
विशेष | धरती इस समय हैरतअंगेज बदलावों से गुजर रही है। कुछ बेहद खतरनाक बदलाव हो रहे हैं। जमीन के एक बड़े हिस्से में धरती की चुंबकीय शक्ति (Earth Magnetic Field) कमजोर हो गई है। ये इतनी कमजोर हो चुकी है कि अगर इस इलाके के ऊपर से विमान निकले तो उससे संपर्क स्थापित करने में दिक्कत आएगी। हैरान हुए न आप। आइए जानते हैं कि आखिर ये समस्या क्या है और ये कैसे आई? 

धरती के एक बहुत बड़े हिस्से में चुंबकीय शक्ति कमजोर हो गई है। ये हिस्सा करीब 10 हजार किलोमीटर में फैला है। इस इलाके के 3000 किलोमीटर नीचे धरती के आउटर कोर तक चुंबकीय क्षेत्र की शक्ति में कमी आई है। 

अफ्रीका से लेकर दक्षिण अमेरिका तक करीब 10 हजार किलोमीटर की दूरी में धरती के अंदर मैग्नेटिक फील्ड की ताकत कम हो चुकी है। सामान्य तौर पर इसे 32 हजार नैनोटेस्ला होनी चाहिए थी। लेकिन 1970 से 2020 तक यह घटकर 24 हजार से 22 हजार नैनोटेस्ला तक जा पहुंची है।  ये जानकारी यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ESA) के सैटेलाइट स्वार्म (Swarm) से मिली है। धरती के इस हिस्से पर चुंबकीय क्षेत्र में आई कमजोरी की वजह से धरती के ऊपर तैनात सैटेलाइट्स और उड़ने वाले विमानों के साथ संचार करना मुश्किल हो सकता है। 

वैज्ञानिकों ने बताया कि पिछले 200 सालों में धरती की चुंबकीय शक्ति में 9 फीसदी की कमी आई है। लेकिन अफ्रीका से दक्षिण अमेरिका तक चुंबकीय शक्ति में काफी कमी देखी जा रही है। साइंटिस्ट इसे साउथ अटलांटिक एनोमली (South Atlantic Anomaly) कहते हैं।  अब आप सोच रहे होंगे कि धरती की चुंबकीय शक्ति से हमें क्या मतलब। तो आपको बता दें कि धरती की चुंबकीय शक्ति की वजह से ही हम अंतरिक्ष से आने वाली रेडिएशन से बचे रहते हैं। इसी शक्ति के सहारे सभी प्रकार की संचार प्रणालियां जैसे सैटेलाइट, मोबाइल, चैनल आदि काम कर रही हैं।  

धरती की मैग्नेटिक फील्ड कैसे पैदा होती है। धरती के अंदर गर्म लोहे का बहता हुआ समंदर है। यह धरती की सतह से करीब 3000 किलोमीटर नीचे होता है। यह घूमता रहता है। इसके घूमने से धरती के अंदर से इलेक्ट्रिकल करंट बनता है जो ऊपर आते-आते इलेक्ट्रोमैंग्नेटिक फील्ड में बदल जाता है। 

हाल में कुछ स्ट़डीज आई थीं कि धरती का मैग्नेटिक नॉर्थ पोल अपनी जगह बदल रहा है। यह पोल कनाडा से साइबेरिया की ओर जा रहा है। यह इसी गर्म पिघले हुए लोहे के घूमने की वजह से हो रहा है।  अफ्रीका से दक्षिण अमेरिका तक के इलाके में जो मैग्नेटिक फील्ड की कमी आई है। उससे उस इलाके के ऊपर हमारी चुंबकीय सुरक्षा लेयर कमजोर हो गई है। यानी इस इलाके में अंतरिक्ष से आने वाली रेडिएशन का असर ज्यादा हो सकता है। 

जर्मन रिसर्च सेंटर शोधकर्ता जर्गेन मात्ज्का ने बताया कि यूरोपियन स्पेस एजेंसी का स्वार्म सैटेलाइट इसीलिए बनाया गया था कि वह धरती की चुंबकीय शक्ति का सही आकलन कर सके। पिछले कुछ दशकों में अफ्रीका से दक्षिण अमेरिका तक के इलाके में चुंबकीय शक्ति तेजी से कम हो रही है।  

जर्गेन ने बताया कि अब सबसे बड़ा मुद्दा ये है कि हमें यह पता करना होगा कि धरती के केंद्र में हो रहे बदलावों से कितना बड़ा बदलाव आएगा। क्या इससे धरती पर कोई बड़ी आपदा आएगी। आमतौर पर धरती की चुंबकीय शक्ति 2।50 लाख साल में बदलती है। लेकिन अभी इसमें काफी साल बाकी है। 

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