कर्ज दो और कब्जा करो की नीति / क्या कर्ज देकर चीन आधी दुनिया को गुलाम बनाने जा रहा है

News18 : Aug 28, 2020, 04:55 PM
Chin: श्रीलंका के विदेश सचिव जयनाथ कोलंबेज का हालिया बयान भारत के पक्ष में जा रहा है। उन्होंने कहा कि कोलंबो 'इंडिया फर्स्ट' की नीति अपनाएगा। यानी ऐसा कुछ नहीं करेगा, जो भारत को नुकसान दे। इसके साथ ही उन्होंने श्रीलंकाई बंदरगाह हंबनटोटा को चीन को लीज पर देने को गलती बताया। बता दें कि चीन गरीब देशों को कर्ज देकर उनके यहां कोई बड़ी जगह लीज पर ले लेता है और फिर वहां पैठ बनाना शुरू कर देता है। जानिए, चीन ने दुनियाभर में कितना कर्ज दिया हुआ है।


क्या हुआ था श्रीलंका में

सबसे पहले तो समझते हैं श्रीलंका का मामला। ये चीन की कर्ज दो और कब्जा करो की नीति का ताजा उदाहरण है। श्रीलंकाई PM महिंदा राजपक्षे साल 2005 से लेकर पूरे 10 सालों के लिए राष्ट्रपति पद पर रहे। उसी दौरान देश काफी बड़े कर्ज में दब गया। इसमें बड़ा हिस्सा चीन का है।

बता दें कि राजपक्षे के दौरान श्रीलंका और चीन की नजदीकी बढ़ी। इसी दौरान श्रीलंका ने हंबनटोटा में डेढ़ बिलियन डॉलर के बंदरगाह को बनाने के लिए चीन की मदद ली। श्रीलंका को लगा कि इससे व्यापार में फायदा होगा और वो धीरे-धीरे कर्ज चुका देगा। प्रोजेक्ट के लिए 2007 से 2014 के बीच श्रीलंकाई सरकार ने चीन से 1.26 अरब डॉलर का कर्ज लिया।

लीज पर देना पड़ा बंदरगाह

बाद में इतना बड़ा कर्ज नहीं चुका पाने के कारण उसे अपने ही बंदरगाह को चीन को लीज पर देना पड़ा। अब पूरे 99 सालों के लिए ये बंदरगाह चीन का है। बंदरगाह ही नहीं, बल्कि श्रीलंका ने भारत की सीमा से लगी लगभग 15 हजार एकड़ जमीन भी चीन को दे दी।

नेपाल के साथ भी यही खेल

इससे समझ आता है कि कैसे विकास के नाम पर उधार देने के बाद चीन उस देश में घुसपैठ कर जाता है। नेपाल के साथ भी यही हाल हुआ है। चीन उसे आर्थिक मदद दे रहा है। इस वजह से अब नेपाल की आर्थिक और कूटनीतिक समस्याओं में भी चीन घुसने लगा है। माना जाता है कि भारत में उत्तराखंड के तीन हिस्सों को नेपाल के अपना कहने के पीछे भी चीन का दबाव रहा।

अफ्रीका में सबसे ज्यादा निवेश

इसी तरह से चीन ने अफ्रीकी देशों में भी बड़ा निवेश किया हुआ है। इसकी वजह ये है अफ्रीका के ज्यादातर देश गरीब हैं और विकास की कोशिश में हैं। ब्लूमबर्ग-क्विंट वेबसाइट की एक रिपोर्ट के मुताबिक अफ्रीकन देश जिबुती पर चीन का सबसे ज्यादा कर्ज है। इस पर अपनी जीडीपी का 80% से ज्यादा विदेशी कर्ज है, जिसमें भी 77% से ज्यादा कर्ज चीन का है।

पड़ोसी देश पाकिस्तान भी चीन का कर्जदार

वहां चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर या सीपीईसी तैयार हो रहा है। इसके लिए भी चीन 80 प्रतिशत से ज्यादा रकम दे रहा है। यहां तक कि काम के लिए कामगार और उपकरण जैसी व्यवस्थाएं भी चीन ने कीं। इस तरह से वो पाक में भी अपने को मजबूत बना रहा है। अंतररराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार साल 2022 तक पाकिस्तान को चीन को 6।7 अरब डॉलर चुकाने हैं। जाहिर है पहले से ही गरीबी की मार झेल रहा पाक ये कर नहीं सकेगा। ऐसे में देर-सवेर वो चीन के बोझ तले दब जाएगा।

क्या कहते हैं चीन की इस नीति को

चीन के कर्ज देने और गुलाम बनाने की नीति अर्थव्यवस्था में काफी जानी-पहचानी है। इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के नाम पर पहले कर्ज देना और फिर उस देश को एक तरह से कब्जा लेना, इसे डैट-ट्रैप डिप्लोमेसी (Debt-trap diplomacy) कहते हैं। ये शब्द चीन के लिए ही बना।

दूसरी ओर चीन का कहना है कि कर्ज लेकर गरीब देश विकास कर सकें- ये उसका इरादा होता है। पहले से ही चीन ये पॉलिसी अपनाता रहा है। इसके तहत पहले वो छोटे लेकिन कम्युनिस्ट देशों को कर्ज दिया करता था। बाद में ये पूरी दुनिया में फैल गया। यहां तक कि खुद हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू की रिपोर्ट कहती है कि चीन की सरकार और चीनी कंपनियों ने 150 से ज्यादा देशों को 1।5 ट्रिलियन डॉलर यानी लगभग 112 लाख 50 हजार करोड़ रुपये का लोन दिया हुआ है।

SUBSCRIBE TO OUR NEWSLETTER