Indo-China / बड़े खतरनाक दिख रहे हैं चीन के मंसूबे, बातचीत के बीच चलती रहेगी तनातनी और भिड़ंत

AMAR UJALA : Jun 25, 2020, 06:18 PM
Indo-China: चीन के मंसूबे बेहद खतरनाक जान पड़ रहे हैं। 6 जून को सैन्य कोर कमांडर्स के बीच में बनी सहमति के पालन में आगे बढ़ने की बजाय पड़ोसी देश लगातार सैन्य तैनाती बढ़ा रहा है, बल्कि डेपसांग, चुमार, डोकलाम और अरुणाचल प्रदेश में नए मोर्चे खोल रहा है।

सबसे खतरनाक स्थिति है कि चीन सामरिक महत्व के पैगोंग त्सो पर कोई बात नहीं करना चाहता और यहां स्थाई बंकर बना लिए हैं, सैन्य वाहन, टैंक, तोप आदि की लगातार तैनाती बढ़ा रहा है।

भारत ने भी बढ़ाई सैन्य ताकत

उत्तराखंड के बाराहोती को लेकर सेना मुख्यालय लगातार सतर्क है। इसके साथ-साथ सेना मुख्यालय आईटीबी के साथ तालमेल बिठाकर पूर्वी लद्दाख के लिए विशेष प्लान तैयार कर रहा है। सैन्य सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार वायुसेना और सेना ने आपसी सामंजस्य से रणनीति बनाकर फौज की तैनाती बढ़ाई है।

घातक और माउंटेन डिवीजन, आर्टिलरी, टी-90, भीष्म समेत अन्य टैंक, निगरानी के लिए मानव रहित विमान, अपाचे हेलीकाप्टर, चिनूक, लाजिस्टिक सपोर्ट के लिए सी-130-जे हरक्युलिस, आपात स्थिति में स्ट्राइक के लिए सुखोई-30 एमकेआई, जगुआर, मिराज, डिफेंसिव रोल के लिए मिग 29 तैयार है।

बताते हैं दर्जनभर एयरपोर्ट हाई अलर्ट पर हैं। इसके साथ-साथ भारत ने लद्दाख में पैगोंग एरिया के पास, गलवां नदी घाटी, गोगरा पोस्ट, डेपसांग, चुमार, हॉट स्प्रिंग एरिया में अपने सैनिकों को चीन की फौज के सामने तैनात कर दिया है।

नाकुला, डोकलाम, तवांग और अरुणाचल के चीन की सीमा से सटे क्षेत्र में भी उच्च स्तरीय सतर्कता बनती जा रही है। वायुसेनाध्यक्ष एयरचीफ मार्शल के बाद सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने लद्दाख क्षेत्र का व्यापक दौरा किया।

उन्होंने सैन्य बलों को चीन के साथ लगती सीमा पर 65 महत्वपूर्ण क्षेत्रों में निगरानी तेज करने, सैन्य तैयारी को चुस्त-दुरुस्त करने का आदेश दिया है।

कूटनीति, राजनयिक और सैन्य नीति के तहत चल रही है वार्ता

भारत पड़ोसी देशों के साथ शांति प्रिय रिश्तों का पक्षधर है। लिहाजा नई दिल्ली संवाद के जरिए चीन से मुद्दे का स्थाई समाधान चाहती है। इसे लेकर 15 जून को दोनों देशों के सैनिकों के बीच गलवां घाटी में हिंसक झड़प के बाद 17 जून को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने चीन के समकक्ष वांग यी से बात की थी।

दोनों विदेश मंत्रियों के बीच में दूसरी बातचीत 23 जून को रूस-चीन और भारत के फोरम पर हुई। यहां भी विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने समकक्ष यी से अंतरराष्ट्रीय समझौतों का सम्मान करने की अपील की।

इसके अलावा भारत की तरफ से विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव (पूर्व एशिया) नवीन ने अपने चीन के समकक्ष से पहले पांच जून को चर्चा की थी। सीमा सुरक्षा प्रबंधन को लेकर वर्किंग ग्रुप चर्चा कर रहा है।

6 जून को दोनों देशों के सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरेंन्द्र सिंह की अपने चीनी समकक्ष से पहली वार्ता हुई थी। इससे पहले मेजर जनरल स्तर के अधिकारियों की 10 राउंड बातचीत हो चुकी थी।

6 जून को दोनों देशों में सहमति बनती दिखाई दी, लेकिन 15 जून को चीनी सेना के गलवां घाटी में एकतरफा कार्रवाई ने पूरे प्रयास पर पानी फेर दिया।

15 जून के बाद से फिर दोनों देशों के सैन्य कमांडर बातचीत की मेज पर बैठे। सोमवार को करीब 11 घंटे तक चर्चा चली। राजनयिक फोरम से संयुक्त सचिव नवीन श्रीवास्तव ने भी मोर्चा संभाल रखा है। लगातार चीनी समकक्ष से बात कर रहे हैं।

इतनी जटिल स्थिति कभी नहीं देखा

पूर्व विदेश सचिव शशांक ने भारत-चीन रिश्ते में पिछले कुछ में इतनी जटिल स्थिति कभी नहीं देखे हैं। यही स्थिति स्वर्ण सिंह की भी है। चीन मामलों के जानकार स्वर्ण सिंह कहते हैं कि इस बार चीन कल्पना से भी ज्यादा आक्रामक है।

इतना ही नहीं गलवां नदी क्षेत्र में उसकी सेना के घुसपैठ को तो सोचा भी नहीं जा सकता था। स्वर्ण सिंह का कहना है कि यह एक कठिन दौर है। वह कहते हैं कि मामले को देखने का नजरिया बदलना होगा।

यह कोई सीमा विवाद का ही मसला नहीं है, बल्कि बांग्लादेश के क्षेत्रफल के बराबर भूमि का भी मामला है। इसलिए यहां तनातनी, भिड़ंत दोनों के चलते रहने की संभावना दिखाई दे रही है।

क्या है आगे उम्मीद

सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे लद्दाख से लौटे हैं। वह टॉप सैन्य कमांडरों के साथ बैठक कर रहे हैं। समझा जा रहा है कि जल्द ही सेनाध्यक्ष इसकी जानकारी देश के राजनीतिक नेतृत्व को देंगे और इसके बाद आगे की रणनीति पर विचार किया जाएगा।

सैन्य विशेषज्ञों का कहना है कि चीन को प्यार और बातचीत की भाषा समझ में नहीं आने पर भारत के पास दो विकल्प बचते हैं। पहला तो यह कि शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व कूटनीति और संवाद के जरिए समस्या के समाधान का ब्लूप्रिंट तैयार करे।

दूसरा विकल्प सैन्य बलों को स्तर का है और इसमें चीन को उसकी ही भाषा में समझाना बचता है। माना जा रहा है कि यह आखिरी और अंतिम विकल्प रहेगा। फिलहाल सेना अभी चीन के सैनिकों को आगे बढ़ने, दूसरा मोर्चा खोलने तथा सैन्य तैयारी बढ़ाने की सक्रियता निभाएगी।

युद्ध नहीं होगा, तनातनी, भिड़ंत चलती रहेगी: स्वर्ण सिंह

चीन मामलों के विशेषज्ञ स्वर्ण सिंह का कहना है कि अभी दोनों देशों के सैनिक भले ही आमने-सामने मोर्चा संभालकर तैयार हैं, इसमें चीन की भूमिका ज्यादा आक्रामक है, लेकिन युद्ध की संभावना नहीं है।

स्वर्ण सिंह कहते हैं कि चीन शतरंज के घोड़े की तरह ढाई कदम आगे, दो कदम पीछे और फिर ढाई कदम आगे की रणनीति पर चल रहा है। इस दौरान उसने दुनिया में अपना भरोसा भी खोया है।

गलवां घाटी में उसके विवाद खड़ा करने का कोई तुक भी नहीं बनता, लेकिन वह ऐसा करता रहेगा। स्वर्ण सिंह कहते हैं कि 2013, 2014 में चीन की सेना ने डेपसांग, चुमार में घुसपैठ की। डेपसांग से 23 दिन बाद उसकी फौज पीछे हटी थी।

फिर 2017 में चीन डोकलाम में आ डटा। 2020 में उसने पूर्वी लद्दाख के कई क्षेत्र में एक साथ विवाद खड़ा किया, हिंसप झड़प भी हो गई। इसे समझिए। मेरे विचार में चीन से अब इस तरह की तनातनी और भिड़ंत चलती रहेगी।

इसके लिए भारत को स्थाई तौर पर तैयार रहना पड़ेगा। स्वर्ण सिंह कहते हैं चीन को अभी लग रहा है कि दबाव में भारत से कुछ हासिल कर लेगा।

रूस, अमेरिका दोनों भारत-चीन का युद्ध नहीं झेलने की स्थिति में नहीं

स्वर्ण सिंह का कहना है कि अमेरिका और रूस दोनों नहीं चाहते कि भारत और चीन के बीच में टकराव हो। इस टकराव को अमेरिका भी मौजूदा हालात में बर्दाश्त नहीं कर सकता। रूस के लिए भी इसी तरह की स्थिति बन रही है।

रूस, चीन और भारत दोनों के साथ मधुर संबंध रखता है। वह नहीं चाहता कि दोनों देशों में सीमा के मुद्दे को लेकर सश संघर्ष हो। स्वर्ण सिंह का कहना है कि भारत के पास चीन के मुकाबले भले ही तकनीक, हथियार और मशीन बेस्ड फायर पावर कम हो लेकर सैन्य बलों के अनुभव, युद्ध लड़ने की रणनीति, कौशल में भारत चीन से कहीं आगे है।

बताते हैं चीन के रणनीतिकार भी भारतीय सैन्य बलों की इस क्षमता को नहीं भूल पाते। इसलिए युद्ध की संभावना नहीं है। अभी स्थानीय झड़प भी होने की उम्मीद नहीं है। लेकिन तनातनी बनी रहेगी। कुछ समय बाद फिर इस तरह के हालात आते रहेंगे।

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