News18 : Apr 14, 2020, 12:18 PM
दिल्ली: कोरोना (corona) के बढ़ते संक्रमण के बीच 4 अप्रैल को Food and Drug Administration (FDA) ने COVID-19 के इलाज के लिए हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा के इस्तेमाल की औपचारिक अनुमति दे दी। इससे ठीक पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) ने इसे लेकर एक ट्वीट भी किया था कि ये दवा गेम-चेंजर (game changer medicine) साबित हो सकती है। इसके बाद इसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ी और देश इसके आयात-निर्यात में लग गए। इस बीच एक स्टडी के नतीजे आए हैं कि ये दवा उतनी भी असरदार नहीं, जितनी कोरोना के मामले में मानी जा रही है, बल्कि बहुत से मरीजों पर इसके गंभीर साइड इफैक्ट देखे जा रहे हैं।
क्या है ये दवा
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन मलेरिया के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा है। साथ ही इसे ऑटोइम्यून बीमारियों जैसे रुमेटॉइड ऑर्थराइटिस (संधिशोथ) जैसी बीमारी में सूजन कम करने के लिए भी दिया जाता है, अगर मरीज दूसरी दवाओं से ठीक न हो सके। हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को इसलिए भी पसंद किया जाता है क्योंकि ये ऑफ द शेल्फ दवा है और बहुत कम दाम पर उपलब्ध है। इस ड्रग का ट्रायल मलेरिया पर बेहद कारगर है। लेकिन अब तक ये साबित नहीं हो सका है कि Covid-19 के केस में दवा कैसे काम करती है।हो रहे थे क्लिनिकल ट्रायलकोविड-19 के इलाज के बीच इस दवा पर लगातार छोटे-बड़े क्लिनिकल ट्रायल भी चल रहे थे। इसी कड़ी में फ्रांस के Marseille शहर में भी वैज्ञानिकों की टीम देखने में जुटी थी कि शरीर इस दवा पर कैसे प्रतिक्रिया करता है। इस छोटी स्टडी में 58 साल से कम उम्र के 11 मरीजों को लिया गया। उन्हें 10 दिनों तक हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और दो से 3 दिनों तक अजिथ्रोमाइसिन दी जाती रही। 5 दिनों के भीतर 1 मरीज की मौत हो गई, जबकि 2 ICU में पहुंच गए। वहीं एक मरीज पर दवा को तुरंत बंद करना पड़ा क्योंकि उसे असहनीय सिरदर्द के साथ उल्टियां हो रही थीं। फ्रेंच मेडिकल जर्नल साइंस डायरेक्टर में इसके नतीजे छपे हैं, जो बताते हैं कि Hydroxychloroquine के साथ Azithromycin का कंबीनेशन मरीज के इम्यून सिस्टम से कोरोना वायरस को पूरी तरह से खत्म नहीं कर पा रहा है।चीन ने भी दिया रेड अलर्ट
चीन में भी इसी दवा को लेकर लगातार स्टडी की जा रही है। Shanghai Public Health Clinical Center में हुई पायलट स्टडी के अनुसार लगातार 7 दिनों तक दवा देने के बाद भी कोरोना के मरीज के शरीर में वायरस कम नहीं होते दिखते हैं। यानी वैज्ञानिक भाषा में कहें तो इन दवाओं के इस्तेमाल से कोरोना संक्रमित में कोई Rapid Antiviral Clearance नहीं दिखता है। फ्रांस के ही एक और अस्पताल Hôpital Saint-Louis में भी समान स्टडी हुई। संक्रामक रोग विशेषज्ञ Jean-Michel Molina की टीम ने इसमें मिलते-जुलते नतीजे देखे और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का कोई उत्साहजनक नतीजा सामने नहीं आया। इस बारे में खुद National Institute of Allergy and Infectious Diseases के डायरेक्टर Dr। Anthony Fauci का भी कहना है कि दवा को कारगर मान लेने से पहले अभी बड़े स्तर पर स्टडी की जरूरत है।कैसे हुई थी शुरुआतफ्रांस के Philippe Gautret in Marseille में 80 मरीजों पर इस दवा का उपयोग हुआ था, जिसमें अच्छे नतीजे देखने को मिले। हालांकि बाद में सामने आया कि स्टडी में शामिल लगभग 85 प्रतिशत मरीजों में बीमारी के माइल्ड लक्षण ही थे। ऐसे में ये अनुमान भी लगाया जा रहा है कि शायद उनके ठीक होने में इस दवा का कोई कमाल न हो, बल्कि उनके इम्यून सिस्टम ने खुद ही उन्हें ठीक कर दिया हो। ये स्टडी 17 मार्च को छपी, जिसके बाद से इस दवा को लगातार लोकप्रियता मिलने लगी और ट्रंप के गेम चेंजर वाले बयान के बाद इसे सभी देश अपनाने की सोचने लगे।ये हैं साइड इफेक्ट
ब्राजील में भी एक ट्रायल चल रहा था, लेकिन लॉस एंजेलिस टाइम्स में छपी रिपोर्ट के अनुसारइसे अधूरा छोड़ना पड़ा क्योंकि कई मरीजों के दिल की धड़कन बढ़ गई थी, जिससे हार्ट अटैक का खतरा भी हो सकता था। शोध में लगे वैज्ञानिकों का मानना है कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन में कुछ ऐसे गुण होते हैं जो दिल की धड़कन तेज कर देते हैं। इस हालत के कारण मरीज को tachycardia हो सकता है यानी तेज धड़कन से दिल का दौरा पड़ना। रिसर्च वेबसाइड MedRxiv में भी इसी आशय की स्टडी आई है, जिसके तहत 81 मरीजों पर हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का असर जांचा गया। इसके नतीजे कहते हैं कि इसके लंबे डोज से मरीज की मौत तक हो सकती है। NYU में भी हाल ही में 84 मरीजों पर इस दवा का उपयोग देखा गया। इसमें से 4 मरीजों की दिल के दौरे से मौत हो गई, जबकि इलाज से पहले उनमें किसी तरह की कार्डियक समस्या नहीं थी।बड़े स्तर पर स्टडी की तैयारीअब साइड इफैक्ट को देखते हुए पहले आए सकारात्मक नतीजों को मानकों के अनुसार नहीं माना जा रहा है। अनुमान है कि शोध में एक्सपर्ट्स ने उन मरीजों को शामिल नहीं किया, जिनपर इस दवा का खराब असर हुआ था। दवा के गंभीर दुष्परिणामों को देखते हुए एक बड़ी स्टडी की तैयारी की जा रही है। University of Minnesota के प्रोफेसर David Boulware के नेतृत्व में ये स्टडी शुरू हो चुकी है, जिसमें कम से कम 1,250 कोरोना मरीजों को लेने की योजना है। हालांकि अब तक केवल 780 मरीज ही खुद पर इस दवा का असर जांचे जाने के लिए तैयार हुए हैं।University of Minnesota के सर्जन Christopher Tignanelli जो कोविड-19 में दवाओं के क्लिनिकल ट्रायल का भी हिस्सा हैं, मानते हैं कि फिलहाल हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को कोरोना वायरस की दवा मान लेना और हर मरीज को उससे ट्रीट करना खतरनाक हो सकता है क्योंकि हमारे पास कोई भी pre-clinical data नहीं है जो इस दवा को कोरोना वायरस पर कारगर बता सके।
क्या है ये दवा
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन मलेरिया के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा है। साथ ही इसे ऑटोइम्यून बीमारियों जैसे रुमेटॉइड ऑर्थराइटिस (संधिशोथ) जैसी बीमारी में सूजन कम करने के लिए भी दिया जाता है, अगर मरीज दूसरी दवाओं से ठीक न हो सके। हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को इसलिए भी पसंद किया जाता है क्योंकि ये ऑफ द शेल्फ दवा है और बहुत कम दाम पर उपलब्ध है। इस ड्रग का ट्रायल मलेरिया पर बेहद कारगर है। लेकिन अब तक ये साबित नहीं हो सका है कि Covid-19 के केस में दवा कैसे काम करती है।हो रहे थे क्लिनिकल ट्रायलकोविड-19 के इलाज के बीच इस दवा पर लगातार छोटे-बड़े क्लिनिकल ट्रायल भी चल रहे थे। इसी कड़ी में फ्रांस के Marseille शहर में भी वैज्ञानिकों की टीम देखने में जुटी थी कि शरीर इस दवा पर कैसे प्रतिक्रिया करता है। इस छोटी स्टडी में 58 साल से कम उम्र के 11 मरीजों को लिया गया। उन्हें 10 दिनों तक हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन और दो से 3 दिनों तक अजिथ्रोमाइसिन दी जाती रही। 5 दिनों के भीतर 1 मरीज की मौत हो गई, जबकि 2 ICU में पहुंच गए। वहीं एक मरीज पर दवा को तुरंत बंद करना पड़ा क्योंकि उसे असहनीय सिरदर्द के साथ उल्टियां हो रही थीं। फ्रेंच मेडिकल जर्नल साइंस डायरेक्टर में इसके नतीजे छपे हैं, जो बताते हैं कि Hydroxychloroquine के साथ Azithromycin का कंबीनेशन मरीज के इम्यून सिस्टम से कोरोना वायरस को पूरी तरह से खत्म नहीं कर पा रहा है।चीन ने भी दिया रेड अलर्ट
चीन में भी इसी दवा को लेकर लगातार स्टडी की जा रही है। Shanghai Public Health Clinical Center में हुई पायलट स्टडी के अनुसार लगातार 7 दिनों तक दवा देने के बाद भी कोरोना के मरीज के शरीर में वायरस कम नहीं होते दिखते हैं। यानी वैज्ञानिक भाषा में कहें तो इन दवाओं के इस्तेमाल से कोरोना संक्रमित में कोई Rapid Antiviral Clearance नहीं दिखता है। फ्रांस के ही एक और अस्पताल Hôpital Saint-Louis में भी समान स्टडी हुई। संक्रामक रोग विशेषज्ञ Jean-Michel Molina की टीम ने इसमें मिलते-जुलते नतीजे देखे और हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का कोई उत्साहजनक नतीजा सामने नहीं आया। इस बारे में खुद National Institute of Allergy and Infectious Diseases के डायरेक्टर Dr। Anthony Fauci का भी कहना है कि दवा को कारगर मान लेने से पहले अभी बड़े स्तर पर स्टडी की जरूरत है।कैसे हुई थी शुरुआतफ्रांस के Philippe Gautret in Marseille में 80 मरीजों पर इस दवा का उपयोग हुआ था, जिसमें अच्छे नतीजे देखने को मिले। हालांकि बाद में सामने आया कि स्टडी में शामिल लगभग 85 प्रतिशत मरीजों में बीमारी के माइल्ड लक्षण ही थे। ऐसे में ये अनुमान भी लगाया जा रहा है कि शायद उनके ठीक होने में इस दवा का कोई कमाल न हो, बल्कि उनके इम्यून सिस्टम ने खुद ही उन्हें ठीक कर दिया हो। ये स्टडी 17 मार्च को छपी, जिसके बाद से इस दवा को लगातार लोकप्रियता मिलने लगी और ट्रंप के गेम चेंजर वाले बयान के बाद इसे सभी देश अपनाने की सोचने लगे।ये हैं साइड इफेक्ट
ब्राजील में भी एक ट्रायल चल रहा था, लेकिन लॉस एंजेलिस टाइम्स में छपी रिपोर्ट के अनुसारइसे अधूरा छोड़ना पड़ा क्योंकि कई मरीजों के दिल की धड़कन बढ़ गई थी, जिससे हार्ट अटैक का खतरा भी हो सकता था। शोध में लगे वैज्ञानिकों का मानना है कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन में कुछ ऐसे गुण होते हैं जो दिल की धड़कन तेज कर देते हैं। इस हालत के कारण मरीज को tachycardia हो सकता है यानी तेज धड़कन से दिल का दौरा पड़ना। रिसर्च वेबसाइड MedRxiv में भी इसी आशय की स्टडी आई है, जिसके तहत 81 मरीजों पर हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का असर जांचा गया। इसके नतीजे कहते हैं कि इसके लंबे डोज से मरीज की मौत तक हो सकती है। NYU में भी हाल ही में 84 मरीजों पर इस दवा का उपयोग देखा गया। इसमें से 4 मरीजों की दिल के दौरे से मौत हो गई, जबकि इलाज से पहले उनमें किसी तरह की कार्डियक समस्या नहीं थी।बड़े स्तर पर स्टडी की तैयारीअब साइड इफैक्ट को देखते हुए पहले आए सकारात्मक नतीजों को मानकों के अनुसार नहीं माना जा रहा है। अनुमान है कि शोध में एक्सपर्ट्स ने उन मरीजों को शामिल नहीं किया, जिनपर इस दवा का खराब असर हुआ था। दवा के गंभीर दुष्परिणामों को देखते हुए एक बड़ी स्टडी की तैयारी की जा रही है। University of Minnesota के प्रोफेसर David Boulware के नेतृत्व में ये स्टडी शुरू हो चुकी है, जिसमें कम से कम 1,250 कोरोना मरीजों को लेने की योजना है। हालांकि अब तक केवल 780 मरीज ही खुद पर इस दवा का असर जांचे जाने के लिए तैयार हुए हैं।University of Minnesota के सर्जन Christopher Tignanelli जो कोविड-19 में दवाओं के क्लिनिकल ट्रायल का भी हिस्सा हैं, मानते हैं कि फिलहाल हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन को कोरोना वायरस की दवा मान लेना और हर मरीज को उससे ट्रीट करना खतरनाक हो सकता है क्योंकि हमारे पास कोई भी pre-clinical data नहीं है जो इस दवा को कोरोना वायरस पर कारगर बता सके।