Coronavirus / कोरोना वायरस का बदला रूप, जानिए आखिर क्यों हो जा रही है माैत

Live Hindustan : Jul 16, 2020, 12:49 PM
Coronavirus: कोरोना वायरस बरसात में ज्यादा घातक हो गया है। कोरोना अब सीधा फेफड़ों पर अटैक कर रहा है। हिमोग्लोबिन से अयरन अलग कर देता है। फेफड़े काम करना बंद कर देते हैं। मरीज के शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती चली जाती है। वेंटिलेटर सपोर्ट के बाद भी मरीज के शरीर में ऑक्सीजन की नहीं पहुंच पाती। मल्टी आर्गन फेल्योर से कुछ घंटों में ही मरीज की मौत हो रही है। यह सच बरेली में कोविड के नोडल अधिकारी आरएन सिंह की जांच में सामने आया है। आरएन सिंह ने अपनी रिपोर्ट शासन को भेज दी है।

प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में कोरोना संक्रमित दो युवा मरीजों की मौत हो गई थी। जबकि उनको पहले से कोई बीमारी नहीं थी। अपर मुख्य सचिव नवनीत सहगल ने जवान व्यक्तियों की मौत पर चिंता जताते हुए कोविड के नोडल अधिकारी को मामले की जांच सौंपी थी। आरएन सिंह ने युवाओं की मौत के मामले की पड़ताल की। अलग-अलग प्राइवेट मेडिकल कॉलेज में भर्ती जवान मरीजों का इलाज करने वाले डाक्टरों से बात की। इलाज के दस्तावेज देखे। जांच में मौत का सच सामने आ गया। 25 से 35 साल के दोनों युवाओं की मौत शरीर में ऑक्सीजन की कमी से हुई। जबकि उनको पहले से कोई बीमारी नहीं थी। वेंटिलेटर सपोर्ट काम नहीं आया। कुछ ही घंटों में फेफड़े डैमेज हो गए। निमोनिया गंभीर अवस्था में पहुंच गया। डॉक्टर भी कोरोना के खतरनाक हमले से सकते में हैं। कोविड के नोडल अधिकारी आरएल सिंह ने अपनी जांच रिपोर्ट शासन को भेज दी है। बता दें कि कोरोना संक्रमित मरीजों की मौत होने पर मेडिकल कालेजों में इलाज को लेकर सवाल उठ रहे थे। आरएन सिंह, नोडल अधिकारी, कोविड बताते हैं कि कोरोना संक्रमण फेफड़ों को डैमेज कर रहा है। शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है। वेंटिलेटर सपोर्ट भी कई बार कारगर नहीं हो रहा। दो युवाओं की मौत के मामले में इस तरह के तथ्य सामने आए हैं। दोनों को कोविड के अलावा कोई बीमारी नहीं थी।

कई और मौत भी ऑक्सीजन की कमी से हुई 

आरएन सिंह के मुताबिक कोविड से बरेली में ज्यादातर मौत ऑक्सीजन की कमी से हुई हैं। मौत का आंकड़ा जुलाई में अधिक बढ़ा है। बरसात में कोरोना का संक्रमण फेफड़ों में अधिक तेजी से हो रहा है। 

पहले सिर्फ पुराने मरीजों की हो रही थी कोरोना से मौत 

जून तक कोरोना इतना जानलेवा नहीं था। शुगर और हाइपर टेंशन जैसी बीमारी से जूझ रहे मरीजों को अधिक खतरा था। ऐसे मरीजों की कोरोना से ज्यादा मौत हो रहीं थीं। 

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