AMAR UJALA : Jul 09, 2020, 01:01 PM
Coronavirus: संयुक्त राष्ट्र की पर्यावरण से जुड़ी एक संस्था का कहना है कि अगर इंसानों ने जंगली जीवों को मारना और उनका उत्पीड़न जारी रखा तो उसे कोरोना वायरस संक्रमण जैसी और बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है।यूएन इन्वायरमेंट प्रोग्राम ऐंड इंटरनेशनल लाइवस्टॉक रिसर्च इन्स्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोना वायरस जैसे खतरनाक संक्रमण के लिए पर्यावरण को लगातार पहुंचने वाला नुकसान, प्राकृतिक संसाधनों का बेतहाशा दोहन, जलवायु परिवर्तन और जंगली जीवों का उत्पीड़न जैसी वजहें जिम्मेदार हैं।संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में जानवरों और पक्षियों से इंसानों में फैलने वाली बीमारियां लगातार बढ़ी हैं। विज्ञान की भाषा में ऐसी बीमारियों को ‘जूनोटिक डिजीज’ कहा जाता है।विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अगर इंसानों ने पर्यावरण और जंगली जीवों को नहीं बचाया तो उसे कोरोना जैसी और खतरनाक बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक प्रोटीन की बढ़ती मांग के लिए जानवरों को मारा जा रहा है और इसका खामियाजा आखिरकार इंसान को ही भुगतना पड़ रहा है।हर साल लाखों लोगों की मौतविशेषज्ञों का कहना है कि जानवरों से होने अलग-अलग तरह की बीमारियों के कारण दुनिया भर में हर साल तकरीबन 20 लाख लोगों की मौत हो जाती है। पिछले कुछ वर्षों में इंसानों में जानवरों से होने वाली बीमारियों यानी ‘जूनोटिक डिजीज’ में इजाफा हुआ है। इबोला, बर्ड फ्लू और सार्स जैसी बामारियां इसी श्रेणी में आती हैं।पहले ये बीमारियां जानवरों और पक्षियों में होती हैं और फिर उनके जरिए इंसानों को अपना शिकार बना लेती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि जूनोटिक बीमारियों के बढ़ने की एक बड़ी वजह खुद इंसान और उसके फैसले हैं।बेतहाशा बढ़ा है मांस का उत्पादनयूएन इन्वायरमेंट प्रोग्राम की एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर इंगर एंडर्सन ने कहा कि पिछले 100 वर्षों में इंसान नए वायरसों की वजह से होने वाले कम से कम छह तरह के खतरनाक संक्रमण झेल चुका है।उन्होंने कहा, “मध्यम और निम्न आय वर्ग वाले देशों में हर साल कम से कम 20 लाख लोगों की मौत गिल्टी रोग, चौपायों से होने वाली टीबी और रेबीज जैसी जूनोटिक बीमारियों के कारण हो जाती है। इतना ही नहीं, इन बीमारियों से न जाने कितना आर्थिक नुकसान भी होता है।”इंगर एंडर्सन ने कहा, “पिछले 50 वर्षों में मांस का उत्पादन 260% बढ़ गया है। कई ऐसे समुदाय हैं जो काफी हद तक पालतू और जंगली जीव-जंतुओं पर निर्भर हैं। हमने खेती बढ़ा दी है और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन भी बेतहाशा किए जा रहे हैं। हम जंगली जानवरों के रहने की जगहों को नष्ट कर रहे हैं, उन्हें मार रहे हैं।”उन्होंने कहा कि बांध, सिंचाई के साधन, फैक्ट्रियां और खेत भी इंसानों में होने वाली संक्रामक बीमारियों के लिए 25% तक जिम्मेदार हैं।कैसे हल होगी मुश्किल?इस रिपोर्ट में सिर्फ समस्याएं ही नहीं गिनाई गई हैं, बल्कि सरकारों को ये भी समझाया गया है कि भविष्य में इस तरह की बीमारियों से कैसे बचा जाए। विशेषज्ञों ने रिपोर्ट में पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाने वाली खेती को बढ़ावा देने और जैव विविधता को बचाए रखने के तरीकों के बारे में विस्तार से बताया है।एंडर्सन कहती हैं, “विज्ञान साफ बताता है कि अगर हम इकोसिस्टम के साथ खिलवाड़ करते रहे, जंगलों और जीव-जंतुओं को नुकसान पहुंचाते रहे तो आने वाले समय में जानवरों से इंसानों में फैलने वाली बीमारियां भी बढ़ेंगी।”उन्होंने कहा कि भविष्य में कोरोना वायरस संक्रमण जैसी खतरनाक बीमारियों को रोकने के लिए इंसान को पर्यावरण और जीव-जंतुओं की रक्षा को लेकर और संजीदा होना पड़ेगा।