COVID-19 / लॉकडाउन से आगे जहां और भी है...बच्चों पर संकट, अर्थव्यवस्था पर भी चोट

AMAR UJALA : May 25, 2020, 10:04 AM
Corona Crisis: इसमें कोई दो राय नहीं है कि करीब चार माह पहले तक अधिकतर देशों को कोरोना महामारी की भयावहता का अंदाजा नहीं था। जब अचानक प्रकोप दिखने लगा तो चीन की तरह सभी को एक ही उपाय सूझा लॉकडाउन। कहा भी जाता है कि आपात समय में तत्काल और आक्रामक कदमों की जरूरत होती है। लॉकडाउन इस श्रेणी में बिल्कुल फिट बैठता था लिहाजा अमीर और गरीब देशों ने बिना तैयारी किए इसे फौरन अपना लिया।

लॉकडाउन के फैसले से दुनिया की एक तिहाई से ज्यादा आबादी को घरों में कैद हो गई, लेकिन अर्थव्यवस्था के पहिए थम गए। अन्य जरूरी स्वास्थ्य सेवाएं ठप हो गईं। सभी देशों के राष्ट्राध्यक्षों का एक ही मकसद था, कोरोना से लोगों की जान बचाना।

कहां गया कि लोग बचेंगे तो देश बचेगा। लेकिन नेताओं ने शायद ही सोचा होगा कि उनका कदम 42 करोड़ से ज्यादा लोगों को गरीब कर देगा। किसी गरीब देश में एक कोरोना मरीज को बचाने के के लिए 140 बच्चों की जान दांव पर लग जाएगी। टीबी जैसी बीमारी का इलाज ना मिलने से अगले 5 साल में 14 लाख लोगों पर मौत की तलवार लटक जाएगी।

लॉकडाउन को लेकर आए ताजा आंकड़े और रिपोर्ट यही बताती है कि दुनिया को इसका आर्थिक-सामाजिक खामियाजा लंबे समय तक भुगतना पड़ेगा। आगे ज्यादा से ज्यादा टेस्टिंग से मिलने वाले डाटा के जरिए ही हम अंधी सुरंग में जाने से बच पाएंगे।

बचा रहा भारत पर लॉकडाउन में धकेल दिया इस ओर  

अफ्रीका से लेकर दक्षिण पूर्वी एशिया में भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका जैसे देशों में अब आर्थिक आंकड़े भी भयावह लगने लगे हैं। आर्थिक रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में जीडीपी से लेकर रोजगार बुरी तरह धराशाई हो गए हैं। इसका उदाहरण दुनिया की दूसरी बड़ी आबादी वाले भारत जैसे विकासशील देश से की स्थिति से समझा जा सकता है जो वैश्विक मंदी में काफी हद तक बचा हुआ था।

लेकिन अब लॉकडाउन ने भारत को उस दिशा में धकेल दिया है। प्रतिष्ठित ब्रोकरेज कंपनी गोल्डमैन साक्स इसी हफ्ते भारत में सबसे भीषण मंदी आने की आशंका जताई है। गोल्डमैन के अनुसार, चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में देश की जीडीपी में बड़ी गिरावट आएगी। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी माना है कि जीडीपी नकारात्मक रहेगी। अमेरिका जैसा महाबली भी अर्थव्यवस्था पर दुष्प्रभाव से नहीं बच पा रहा है।

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