ABP News : Apr 15, 2020, 11:18 AM
नई दिल्ली: पिछले कई दिनों से देश में जानलेवा कोरोना वायरस के इलाज के तौर पर बीसीजी के टीके की चर्चा हो रही है। बीसीजी टीका हिंदुस्तान में जन्म के बाद हर बच्चे को लगाया जाता है। दावा किया जा रहा है कि जिन देशों में बीसीजी की वैक्सीन लगती है, वहां कोरोना वायरस का खतरा बेहद कम है। जानें इस दावे की सच्चाई क्या है?बीसीजी टीके पर लोग क्या चर्चा कर रहे हैं?ठाकुरगंज चौपाल नाम के फेसबुक पेज पर लिखा है, ‘’अच्छी बात है हमारे यहां सभी को बीसीजी का टीका लगाया जाता है। एक डॉक्टर का नाम लेकर यहां दावा किया गया है- जन्म के 24 घंटे के अंदर बीसीजी लगवाने वालों की कोरोना संक्रमण से मौत की आशंका कम होती है, अमेरिका इटली और स्पेन जैसे देशों में कोरोना वैक्सीन बंद कर दी गई थी, इसी वजह से वहां कोरोना संक्रमितों की मौत ज्यादा हो रही है।’’क्या बीसीजी का टीका कोरोना वायरस को रोकने में सक्षम है?स्पेशल सेंटर फॉर मॉलिक्यूलर मेडिसिन के चेयरपर्सन प्रोफेसर गोवर्धन ने बताया, ‘’क्योंकि ये देखा गया कि जिन देशों में ये टीका नहीं लगाया जाता, जैसे अमेरिका इटली स्पेन, वहां कोविड- 19 का असर ज़्यादा है। और ब्राज़ील, जापान और भारत जैसे देशों में जहां ये टीका पचास साल से भी ज़्यादा समय से दिया जा रहा है, वहां असर कम है।’’एम्स के डॉक्टर ने क्या कहा?कोरोना का असर कम होने का रिश्ता क्या सिर्फ बीसीजी के टीके से ही है? इस बारे में देश के सबसे बड़े अस्पताल एम्स के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया ने बताया, ‘’ये कहा जा रहा है कि जिनको बीसीजी का इंजेक्शन लगा है, उससे कुछ हद तक वायरस के खिलाफ इम्युनिटी होती है। ये एक रिसर्च आई है। उसका रिजल्ट है। कॉज एंड इफेक्ट है या कैजुएल रिलेशन है। ये क्लियर नहीं है।’’मैक्स अस्पताल के डायरेक्टर ने क्या कहा?मैक्स अस्पताल के ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर संदीप बुद्धिराजा ने इस बारे में बताया, ‘’यूके में बीसीजी टीका सिर्फ क्रिटिकल मरीजों को दिया जाता है, ये वो मरीज हैं जो टीबी के रिस्क पर हैं। हिंदुस्तान में ये टीका साल 1947 से सबको दिया जा रहा है। कई देशों में ये अलग-अलग समय पर शुरू हुआ। ईरान में 1984 में शुरू हुआ। जापान 1946 से और ब्राजील 1927 से इसे इस्तेमाल कर रहा था। ये देखा गया है कि जो देश इस टीके को जितने पुराने समय से इस्तेमाल कर रहे थे, उतना ही वहां कोरोना वायरस से मरने वालों की तादाद कम रही।’’डॉ संदीप बुद्धिराजा ने एबीपी न्यूज को बताया कि रिसर्च में पता चला है कि-
- ईरान में 1984 से बीसीजी का इस्तेमाल हो रहा था, वहां मृत्यु दर 19 फीसदी थी।
- जापान में 1946 से बीसीजी का इस्तेमाल हो रहा था, वहां मृत्यु दर 0.5 फीसदी थी।
- ब्राजील में 1927 से बीसीजी का इस्तेमाल हो रहा था, वहां मृत्यु दर .02 फीसदी थी।