Zee News : Sep 05, 2020, 04:08 PM
नई दिल्ली : देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह रूस (Russia) से लौटते वक्त अचानक ईरान (Iran) पहुंच गए हैं। पूर्वोत्तर में चीन (China) और पश्चिमी सीमा (Western Border) पर पाकिस्तान (Pakistan) के नापाक मंसूबों की वजह से भारत के रक्षामंत्री की ईरान (Iran) यात्रा काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। कूटनीति को संकेतों का खेल कहा जाता है और ऐसा ही एक संकेत मॉस्को में मिला था जब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organisation) की बैठक में पहुंचे थे।
भारत के कूटनीतिक चक्रव्यूह में फंसा चीनइस दौरान चीन (China) के रक्षा मंत्री वेई फेंगे (Wei Fenghe) भी वहां मौजूद थे लेकिन चीन की सबसे ज्यादा बेचैनी भारत को लेकर नजर आई। और वहां वो लगातार रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को टकटकी लगाए देखते रहे। रूस के रक्षा मंत्री भी सामने की ओर देख रहे हैं। लेकिन पूरी बैठक के दौरान चीनी मंत्री फेंगे की निगाह भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की तरफ से नहीं हट रहीं थीं। मतलब साफ है कि चीन किस कदर भारत से बातचीत को बेताब है। यानि कल तक युद्ध की धमकी देने वाले चीन का ह्रदय परिवर्तन भारत की एक बड़ी कूटनीतिक कामयाबी माना जा सकता है।
पाकिस्तान को सबक सिखाने की तैयारीगौरतलब है कि अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत और ईरान के बीच रिश्तों में कोई असर नहीं आया है। मोदी सरकार 2014 से लगातार ईरान को अहम सहयोगी मानकर साथ काम कर रही है। लद्दाख में पर चीन से तनाव के बीच बीजिंग ने जिस तरह पाकिस्तानी फौज को साजो-सामान मुहैया कराया है, इसलिए उसकी नापाक हरकतों को काउंटर करने के लिए ईरान से आज की बातचीत गेमटचेंजर साबित हो सकती है।
भारत के कूटनीतिक चक्रव्यूह में फंसा चीनइस दौरान चीन (China) के रक्षा मंत्री वेई फेंगे (Wei Fenghe) भी वहां मौजूद थे लेकिन चीन की सबसे ज्यादा बेचैनी भारत को लेकर नजर आई। और वहां वो लगातार रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को टकटकी लगाए देखते रहे। रूस के रक्षा मंत्री भी सामने की ओर देख रहे हैं। लेकिन पूरी बैठक के दौरान चीनी मंत्री फेंगे की निगाह भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की तरफ से नहीं हट रहीं थीं। मतलब साफ है कि चीन किस कदर भारत से बातचीत को बेताब है। यानि कल तक युद्ध की धमकी देने वाले चीन का ह्रदय परिवर्तन भारत की एक बड़ी कूटनीतिक कामयाबी माना जा सकता है।
पाकिस्तान को सबक सिखाने की तैयारीगौरतलब है कि अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत और ईरान के बीच रिश्तों में कोई असर नहीं आया है। मोदी सरकार 2014 से लगातार ईरान को अहम सहयोगी मानकर साथ काम कर रही है। लद्दाख में पर चीन से तनाव के बीच बीजिंग ने जिस तरह पाकिस्तानी फौज को साजो-सामान मुहैया कराया है, इसलिए उसकी नापाक हरकतों को काउंटर करने के लिए ईरान से आज की बातचीत गेमटचेंजर साबित हो सकती है।