देश / कोरोना का असरः कन्फ्यूज होकर सेल्फ गोल करने लगता है इम्यून सिस्टम

जब भी बीमार पड़ते हैं, हमें सबसे पहले भरोसा होता है अपने इम्यून सिस्टम पर कि ये हमें बचा लेगा। यानी शरीर की वो सेना जो बाहरी बीमारियों, बैक्टीरिया और वायरस से लड़ती है। लेकिन अगर अपने शरीर के अंदर मौजूद सैनिकों को इतना कन्फ्यूज कर दिया जाए कि वो बाहरी दुश्मन को मारने के साथ अपने शरीर को ही नुकसान पहुंचाने लगे तो? कोरोना वायरस के मामले में ऐसे केस भी सामने आ रहे हैं।

AajTak : Apr 20, 2020, 05:43 PM
दिल्ली: जब भी बीमार पड़ते हैं, हमें सबसे पहले भरोसा होता है अपने इम्यून सिस्टम पर कि ये हमें बचा लेगा। यानी शरीर की वो सेना जो बाहरी बीमारियों, बैक्टीरिया और वायरस से लड़ती है। लेकिन अगर अपने शरीर के अंदर मौजूद सैनिकों को इतना कन्फ्यूज कर दिया जाए कि वो बाहरी दुश्मन को मारने के साथ अपने शरीर को ही नुकसान पहुंचाने लगे तो? कोरोना वायरस के मामले में ऐसे केस भी सामने आ रहे हैं। 

ऐसे मामलों को साइटोकाइन स्टॉर्म सिंड्रोम (Cytokine Storm Syndrome) कहा जाता है। जब किसी मरीज का इम्यून सिस्टम दुश्मन बीमारी, बैक्टीरिया या वायरस द्वारा कन्फ्यूज कर दिया जाता है। तब शरीर में मौजूद साइटोकाइन प्रोटीन का तूफान आता है। ये तूफान दुश्मन के साथ-साथ अपने शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं को भी मारने लगता है।

आमतौर पर साइटोकाइन शरीर में मौजूद वह इम्यून प्रोटीन है जो बाहरी बीमारियों से लड़ता है। लेकिन कोरोना के मामले में ये गड़बड़ भी कर रहा है। बर्मिंघम स्थित अलाबामा यूनिवर्सिटी के डॉ। रैंडी क्रॉन ने कहा कि साइटोकाइंस एक प्रतिरोधक प्रोटीन है, जो हमारे शरीर से संक्रमण और कैंसर को भगाने में मदद करता है। लेकिन जब यह अनियंत्रित हो जाता है तब ये आपको बेहद गंभीर रूप से बीमार कर सकता है या फिर जान भी ले सकता है। 

अमेरिका के सेंटर्स फॉर डिजीस कंट्रोल (CDC) के मुताबिक अमेरिका में जितने भी लोग कोरोना वायरस से मारे गए हैं। उनमें से सबसे ज्यादा बुजुर्ग हैं। 85 साल के ऊपर के लोग जो कोरोना वायरस से मारे गए हैं, उनमें 27 फीसदी तक लोगों की मौत का कारण साइटोकाइन स्टॉर्म सिंड्रोम था। लेकिन साइटोकाइन से पहले बुजुर्ग लोगों की अन्य बीमारियां भी देखना जरूरी है। 

65 से 84 साल तक की उम्र के मारे गए लोगों में 3 से 11 फीसदी साइटोकाइन स्टॉर्म सिंड्रोम देखने को मिला। जबकि, 55 से 64 साल के बीच के लोगों में 1 से 3 प्रतिशत ही इससे मारे गए। 20 से 54 साल की उम्र के लोगों में साइटोकाइन स्टॉर्म 1 फीसदी से कम आया। 

डॉ। रैंडी क्रॉन ने बताया कि अगर चीन की बात करें तो 80 फीसदी लोगों में कोरोना के लक्षण नहीं दिख रहे हैं। लेकिन जो 20 फीसदी लोग अस्पतालों में कोरोना के इलाज के लिए भर्ती हुए हैं, उन्हें नहीं पता कि उनके शरीर में किस मात्रा में साइटोकाइन का हमला हो रहा है। या फिर वह कितना बढ़ जाएगा कि उनकी मौत हो जाए।

डॉ। क्रॉन ने बताया कि हमारे शरीर में दो प्रकार के इम्यून सिस्टम होते हैं। पहला जन्मजात यानी इन्नेट इम्यून सिस्टम और दूसरा एक्टिव इम्यून सिस्टम जो धीरे-धीरे विकसित होता है अन्य माध्यमों से। जैसे- टीके और दवाइयां आदि से। 

जन्मजात इम्यून सिस्टम हमारी शरीर के उन हिस्सों से बनता है जैसे- त्वचा, म्यूकस मेंब्रेन आदि। इसके साथ लगे होते हैं फैगोसाइट्स, एंटीमाइक्रोबियल प्रोटीन्स और हमलावर कोशिकाएं जो छींक, खांसी, जुकाम आदि से बचाती है। तभी आपकी नाक जुकाम में लाल हो जाती है। यह आपकी नाक में चल रहा हमारे इम्यून सिस्टम का युद्ध होता है।

एक्टिव इम्यून सिस्टम यानी हमारे शरीर के प्रतिरोधक क्षमता की दूसरी सुरक्षा लाइन। इसमें होती है वो कोशिकाएं जो भयानक स्तर की बीमारी, बैक्टीरिया या वायरस के आने पर हमला करती है। इस सिस्टम की कमांडो कोशिकाएं सिर्फ दुश्मन पर हमला करती है, जबकि अपने शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं को छूती तक नहीं हैं। 

जहां तक बार रही कोरोना वायरस कोविड-19 की तो ये हमारे शरीर की कोशिकाओं को अपने रहने, उन्हें बीमार करने और अंत में उन्हें खाकर नए वायरस पैदा करने के लिए उपयोग करता है। कोविड-19 हमारे शरीर में घुसता है। अपने लिए सुरक्षित कोशिकाएं खोजता है। फिर उन्हें खाकर और वायरस पैदा करता है। इसके बाद फिर फैलना शुरू करता है।

कोविड-19 को हमारे फेफड़ों की कोशिकाएं अपने हमले के लिए सबसे उपयुक्त लगीं। क्योंकि ये कोशिकाएं शरीर में मौजूद इम्यून सिस्टम को थोड़ी देर से रिस्पॉन्स करती हैं। जैसे ही कोविड-19 हमारे इम्यून सिस्टम से छिपते हुए फेफड़ों की कोशिकाओं में जाता है। यहीं से शुरू होता है शरीर के अंदर जीवन और मौत का युद्ध। 

कोविड-19 से लड़ने के लिए आते हैं- टी सेल्स। जैसे ही टी सेल्स सक्रिय होते हैं। ये साइटोकाइन रिलीज करने लगते हैं। इनकी वजह से और टी सेल्स बनते हैं और वे और साइटोकाइन रिलीज करते हैं। यानी कोविड-19 से लड़ने के लिए टी सेल्स की सेना बनती जाती है। ये घुसपैठिए कोरोना वायरस की जगह पर हमला करना शुरू करती है। 

टी सेल्स का एक प्रकार- साइटोटॉक्सिक टी सेल्स भी है यानी ये वो सैनिक हैं जो कोविड-19 और उससे संक्रमित कोशिकाओं को खोज-खोजकर मार डालते हैं। इससे कोविड-19 और कोशिकाओं को खाकर ज्यादा वायरस नहीं बना पाता। 

यहीं पर कोविड-19 साइटोटॉक्सिक टी सेल्स को कन्फ्यूज करने की कोशिश शुरू करता है। क्योंकि, हमारे शरीर में जब कोरोना वायरस से साइटोटॉक्सिक टी सेल्स लड़ाई कर रहे होते हैं। उसी समय एक अलग प्रकार का रसायन निकलता रहता है, जो साइटोटॉक्सिक टी सेल्स को यह बताता है कि अब बस करो। शरीर में मौजूद दुश्मन निष्क्रिय हो चुके हैं। 

लेकिन, कोविड-19 शरीर से निकलने वाले इसी रसायन की मात्रा को कम-ज्यादा करने लगता है। इससे साइटोटॉक्सिक टी सेल्स कन्फ्यूज होते हैं। ऐसी स्थिति में वे अपना रूप और विकराल कर लेते हैं। दुश्मन कोरोना वायरस और उससे संक्रमित कोशिकाओं को मारने के साथ-साथ स्वस्थ कोशिकाओं को भी मारने लगते हैं। 

डॉ। रैंडी क्रॉन ने बताया कि चीन में मारे गए कई मरीजों को अंतिम समय में सेप्टिक शॉक, ब्लीडिंग और क्लॉटिंग की दिक्कत आई थी। इकी वजह साइटोकाइन स्टॉर्म सिंड्रोम ही था। इसकी वजह से एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम, निमोनिया, मल्टी ऑर्गन फेल्योर आदि समस्याएं आने लगती हैं और मरीज मर जाता है।