Farmers Protest / कब खत्म होगा कृषि कानूनों पर घमासान? राहुल के मार्च को नहीं मिली इजाजत

Zoom News : Dec 24, 2020, 10:57 AM
Farmers Protest: कृषि कानूनों पर घमासान जारी है। केंद्र के नए कृषि कानूनो के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसान पिछले 29 दिनों से दिल्ली के बॉर्डर पर डटे हुए हैं। सरकार और किसानों के बीच में कई दौर की बातचीत हो चुकी है, मगर सभी बेनतीजा रही हैं। किसान तीनों कृषि कानूनों को वापस करने की मांग पर अड़े हैं। अब इन किसानों के प्रदर्शन को देखते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी सड़क पर उतरने वाले हैं। राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस मार्च करने जा रही है। कांग्रेस ने कहा कि कांग्रेस राहुल गांधी की अगुवाई में पार्टी के वरिष्ठ नेता और सांसद आज यानी 24 दिसंबर को करीब 11 बजे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को दो करोड़ किसानों के हस्ताक्षरों के साथ ज्ञापन सौंपेंगे। इसमें केंद्रीय कृषि कानूनों को निरस्त करने का आग्रह किया जाएगा। हालांकि, दिल्ली पुलिस के मुताबिक, राहुल गांधी के इस मार्च को इजाजत नहीं दी गई है।

-राहुल गांधी के मार्च को दिल्ली पुलिस ने इजाजत नहीं दी है। दिल्ली पुलिस के अतिरिक्त डीसीपी दीपक यादव ने कहा कि आज राष्ट्रपति भवन में कांग्रेस के मार्च के लिए कोई अनुमति नहीं दी गई है। हालांकि, ज्ञापन सौंपने राष्ट्रपति भवन जाने वाले तीन नेताओं को जाने दिया जाएगा।

-गाज़ीपुर बॉर्डर पर कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है। 

एक प्रदर्शनकारी ने बताया, "जब तक कानून वापस नहीं लिया जाता तब तक हम हटेंगे नहीं..चाहे 10 साल लग जाएं। 6 बार की बातचीत हो चुकी है। सरकार चाहती तो हल निकाल सकती थी।"

पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने एक बयान में आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने पहले कृषि विरोधी कानून बनाकर किसानों को दर्द दिया और अब उसके मंत्री अन्नदाताओं का अपमान कर रहे हैं। उन्होंने कहा-कृषि विरोधी कानूनों को लेकर चल रहे सतत विरोध को आगे बढ़ाने और मजबूत करने के लिए कांग्रेस ने कानूनों के खिलाफ राष्ट्रव्यापी हस्ताक्षर अभियान शुरू किया था। इन कानूनों को वापस लेने की मांग के पक्ष में करीब दो करोड़ लोगों के हस्ताक्षर एकत्र किए गए हैं।  कांग्रेस नेता ने दावा किया कि भीषण सर्दी के बीच किसान 28 दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं, अब तक 44 किसानों की जान जा चुकी है, अहंकारी सरकार के मंत्री किसानों का अपमान कर रहे हैं।

गौरतलब है कि तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ 26 नवंबर से ही हजारों किसान दिल्ली की सीमाओं पर डटे हैं। तीन कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर जमे किसान नेताओं ने कहा कि सरकार ठोस लिखित प्रस्ताव के साथ आए, हम वार्ता के लिए तैयार हैं। केंद्र सरकार के रविवार देर रात वार्ता के भेजे गए प्रस्ताव पर किसान संगठनों ने बुधवार को स्पष्ट कहा कि कृषि कानूनों में संशोधन के लिए हम तैयार नहीं हैं, प्रस्ताव भेज कर बार-बार इसका दोहराव नहीं करें। सरकार के उक्त प्रस्ताव को पहले ही खारिज किया जा चुका है। तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने से कम पर बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकलेगा।

दिल्ली के सिंघू बॉर्डर पर संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओ ने पत्रकारों से कहा कि हैरानी की बात है कि इतना समय बीतने के बाद भी सरकार को किसानों की मांगें समझ में नहीं आ रही हैं। भाकियू नेता युद्ववीर सिंह ने कहा कि सरकार बार-बार एक ही तरह का प्रस्ताव भेजकर गुमराह करने की कोशिश कर रही है। सरकार यह संदेश देना चाहती है कि किसान जिद पर अड़े हैं, बात करने को तैयार नहीं हैं। हकीकत यह है कि इस बात को कोई नौसिखिया भी समझ सकता है कि सरकार आंदोलन को लंबा खींचना चाहती है जिससे ठंड में आंदोलन टूट जाए।

सरकार आंदोलन को हल्के में लेने की गलती नहीं करे। देश भर के किसान आंदोलन में हिस्सा लेने पहुंच रहे हैं और बगैर कृषि कानूनों को रद्द किए किसान यहां से जाने वाले नहीं हैं। सीमाओं पर ड्यूटी कर रहे जवान भी समझ रहे हैं कि उनका परिवार ठंड में सड़कों पर पड़ा है। इसके दुष्परिणाम सामने आ सकते हैं।

अमेरिका में किसान मजदूर बन गए:

किसान नेता शिव कुमार कक्का ने कहा कि कानून बनाकर सरकार खेतीबाड़ी को कॉरपोरेट के हवाले करना चाहती है। सरकार ने पहले भरोसा दिया कि ठोस प्रस्ताव भेजेंगे। लेकिन 5 दिसंबर को मौखिक मना करने के बाद कानून में संशोधन के प्रस्ताव को भेज दिया। अमेरिका में उक्त नीति के चलते किसान मजदूर बन गए। अब वहां बड़े किसान ठेका खेती कर रहे हैं।

आंदोलन को बदनाम किया जा रहा:

गुरुनाम सिंह चढूनी ने कहा कि सरकार तीनों कानूनों को लेकर ढीढोरा पीट रही है। हर दिन पृथक किसान संगठनो द्वारा कानून को समर्थन दिखया जा रहा है, जिससे आंदोलन को तोड़ा जा सके। सरकार किसानों को कट्टरपंथी, अलगाववादी, चरमपंथी बता रही है। नए तरीके से आंदोलन को बदनाम किया जा रहा है। सरकार की यह कोशिश कामयाब नहीं होगी। आंदोलन को और तेज करने के लिए किसान नेता राज्यों की ओर कूच करेंगे।

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