जम्मू-कश्मीर / पिता ने कहा था मत जा वापस, अजय पंडिता का जवाब था- वहीं जिया हूं और वहीं पर मरूंगा भी

NavBharat Times : Jun 11, 2020, 11:33 AM
श्रीनगर: कश्मीर के अनंतनाग के लकबावन गांव में सन्नाटा पसरा हुआ है। सड़कें वीरान हैं और घरों की चौखटों पर फिलहाल एक्का-दुक्का आदमी ही दिख रहे हैं। अनंतनाग के इस गांव में दो दिन पहले एक शख्स की हत्या हुई है..नाम है अजय पंडिता। जम्मू के सुभाषनगर का रहने वाला अजय जो कहता था कि अगर कश्मीर में सेना ड्यूटी कर रही है जो हमें वहां से जाने की जरूरत क्या है। अजय के पिता द्वारका नाथ पंडिता सुभाषनगर के इसी मकान में बेटे को याद करते कहते हैं, बेटा शहीद हुआ है मेरा...देश की सेवा के लिए।अजय की हिम्मत की कहानी लकबावन गांव के हर बच्चे की जुबान पर है। दहशत के दशक में पिता द्वारका नाथ पंडिता के लाख मना करने पर भी कश्मीर लौटने वाले अजय चाहते थे कि घाटी में पंडितों को फिर वही जगह मिल सके। यही कारण था कि विस्थापन की त्रासदी के बावजूद अजय ने बैंक से लोन लिया और जिंदा किए अपने बाग और मकान के कमरे। अजय के पिता द्वारका नाथ दो रोज पहले जब अनंतनाग से जम्मू लौटे तो साथ में बेटे का शव था। स्मृतियां कश्मीर के वो सेब के बाग याद दिला रही थीं, जहां अजय और द्वारका नाथ एक साथ जाया करते थे।

जहां दर्जनों हमले हुए, वहां बेखौफ होकर करते थे चुनाव प्रचार

लोकतंत्र के प्रति विश्वास ही था कि जिस अनंतनाग में अब तक दर्जनों आतंकी मुठभेड़ और हमले हो चुके थे, वहां हिज्बुल की तमाम धमकियों के बावजूद अजय ने सड़क पर उतरकर लोगों से वोट मांगने की मुहिम शुरू की। हिम्मत का असर इतना हुआ कि लकबावन की आवाम ने अजय को अपना प्रतिनिधि बना डाला।

अजय ने इस सीट पर बीजेपी के प्रत्याशी को चुनाव हराया और सरपंच बन गए। करीबी बताते हैं कि वो एक साल से सुरक्षा मांग रहे थे, लेकिन आतंक से प्रभावित कश्मीर में सुरक्षा ना मिली और मांग का अंत अजय की मौत से हुआ।

सरपंचों के हक के लिए लड़ते रहे अजय

अजय कहते थे कि वो देशभक्त हैं और इसीलिए अजय पंडिता की पहचान अनंतनाग में अजय पंडिता भारती के रूप में हो गई थी। हालांकि अजय की असंतुष्टि इस बात से जरूर थी कि सरकारों ने सरपंचों की मदद नहीं की और वो कई बार ये कहते आए थे कि सरकार ने सरपंचों का चयन कराया है और इस्तेमाल भी कर रही। लेकिन सब के बीच सरपंचों पर कितना खतरा है इसकी जानकारी किसी को नहीं। अजय का कहना था कि सरकार निचले तबके के जनप्रतिनिधियों के साथ सौतेला व्यवहार करती है और इस बात पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जाता कि उनकी जरूरतें क्या हैं।


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