COVID-19 Update / कोरोना को लेकर जर्मन वैज्ञानिकों का शोध झूठा, भारतीय वैज्ञानिकों ने बताई वजह

Zoom News : Jun 17, 2021, 11:09 AM
Delhi: भारतीय वैज्ञानिकों ने हाल ही में जर्मनी के उस शोध को झूठा साबित कर दिया है, जिसमें यह कहा गया था कि भारत के लोगों में निएंडरथल मानव के जीन्स हैं, इसलिए यहां कोरोना से ज्यादा तबाही होगी। जबकि, ऐसा नहीं है। भारत समेत पूरे दक्षिण एशिया में निएंडरथल मानव के डीएनए सेगमेंट कम हैं। यह यूरोपीय लोगों में ज्यादा पाया जाता है। भारत समेत अन्य दक्षिण एशियाई लोगों को उनके शरीर में मौजूद Ace-2 जीन का सुरक्षा कवच कोरोना वायरस से बचाता है। 

जर्मनी के वैज्ञानिकों की शोध को खारिज करने वाली स्टडी में BHU के IMS, CCMB हैदराबाद, CSIR और बांग्लादेश सहित अन्य देशों के कुछ वैज्ञानिक शामिल थे। यह शोध अंतरराष्ट्रीय जनरल में भी प्रकाशित हो चुका है। जिसमें वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि भारत में निएंडरथल मानव के DNA का प्रभाव काफी कम रहा है, इसलिए भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे दक्षिण एशियाई देशों में कोरोना से मौत और बीमार पड़ने वाले लोगों की संख्या यूरोपीय देश से कम है। जबकि, यूरोप में निएंडरथल मानव के DNA सेगमेंट साउथ एशिया से ज्यादा है। इसी वजह से वहां कोरोना से ज्यादा तबाही मचाई थी। 

BHU के जीन विज्ञानी प्रो। ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया कि ऐसा देखा गया था कि आदिमानव के साथ जब इंसान इंटरमिक्स हुए तो आदिमानव के एक DNA सेगमेंट इंसानों के अंदर आ गया। यही डीएनए सेगमेंट लोगों को कोरोना से संक्रमित करने में मदद कर रहा था। साउथ एशिया में इसकी फ्रीक्वेंसी 50 प्रतिशत थी, जबकि यूरोप में 16 प्रतिशत पाई गई थी। इसका मतलब ये हुआ कि ये साउथ एशिया के लोगों को ज्यादा प्रभावित कर रहा था, लेकिन जमीनी हकीकत देखने पर पाया गया कि कोरोना इंफेक्शन प्रति 10 लाख की आबादी और मृत्यु दर भी यूरोप की तुलना में कम थी।  

अध्ययन में पाया गया कि ACE-2 जीन जो साउथ एशिया के लोगों में 60 प्रतिशत और यूरोप में 20 प्रतिशत लोगों में है। यह जीन कोरोना वायरस से प्रोटेक्ट करता है। यही साउथ एशियन को कोरोना से बचा रहा है। इस तरह इस नतीजे पर आया गया कि पहला जीन जो आदिमानव 'निएंडरथल' से मिला है। उसका असर भारत या बांग्लादेश में नहीं है।   

कोरोना की वजह से मरने वालों के आंकड़े की बात करें तो प्रति 10 लाख लोगों में से यूरोप में 2 हजार से ज्यादा लोग मरे हैं, जबकि बांग्लादेश में 87 और भारत में 100 लोग मरे हैं। इस तरह से मौत का आंकड़ा दोनों में काफी अंतर वाला है जो दर्शाता है कि भारत में मृत्यु दर काफी कम रही है।  

पिछले साल नेचर पत्रिका में बहुत बड़ा शोध सामने आया था। जिसमें जर्मन वैज्ञानिकों ने दावा था कि साउथ एशिया खासकर भारत और बांग्लादेश के लोगों में निएंडरथल मानव से DNA सेगमेंट आया है। इसकी वजह से ज्यादा लोग कोरोना से प्रभावित, बीमार और मर रहे हैं। यह DNA सेगमेंट 16 प्रतिशत यूरोपियन और 60 प्रतिशत साउथ एशियन लोगों में पाया जाता है। जिसके मुताबिक उन लोगों ने अनुमान था कि साउथ एशिया में कोरोना से ज्यादा मौतें होंगी।  

प्रो। चौबे ने बताया कि इसी शोध को ध्यान में रखते हुए लेकिन दूसरे जीन के साथ हम लोगों ने अपना शोध किया। जिसमें एक ऐसा जीन पाया गया जो 60 प्रतिशत साउथ एशियन और 20 प्रतिशत यूरोपियन में है। यह कोरोना से प्रोटेक्ट कर रहा है। जर्मन वैज्ञानिकों की रिपोर्ट से हमारी रिपोर्ट अलग है। ग्राउंड रियलिटी तो यह है कि यूरोप की तुलना में साउथ एशिया में लोग कम मरे हैं। जिसके बाद निएंडरथल यानी आदिमानव के DNA की वजह से साउथ एशिया में लोगों की ज्यादा मौतों का कोई प्रमाण नहीं मिला। 

निएंडरथल मानव यूरोप में सबसे ज्यादा वक्त तक पाया गया। यह 4 लाख साल से 40 हजार हजार साल तक यूरोप में था। जबकि यह वेस्ट और सेंट्रल एशिया में भी पाया गया। जबकि इंडिया में निएंडरथल का कोई अस्तित्व नहीं पाया गया। आधुनिक मानव और निएंडरथल मानव में इंटरमिक्सिंग हुई है। इस वजह से पूरी दुनिया के इंसानों में 1।5-2।1% जीन निएंडरथल मानव का जीन है। लेकिन यह साउथ एशियन में कम और यूरोपियन में ज्यादा है।

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