जयपुर / 4 साल का हाेगा स्नातक काेर्स, बीए की जगह बीएलए व बीएससी की जगह बीएलई का विकल्प

Dainik Bhaskar : Jun 10, 2019, 03:23 PM
जयपुर. शिक्षण संस्थानाें काे अब साधारण ग्रेजुएशन के अलावा स्टूडेंट्स के लिए चार वर्षीय लिबरल एजुकेशन में स्नातक कार्यक्रम लागू करना हाेगा। इन डिग्रियाें के नाम स्टूडेंट्स बैचलर अाॅफ लिबरल अार्टस (बीएलए) अाैर बेचलर अाॅफ लिबरल एजुकेशन (बीएलई) तय किए गए है। बीएससी अादि डिग्रियाें में भी चार वर्षीय एजुकेशन कार्यक्रम चलाएं जाएंगे । 12वीं बाद सामान्य स्नातक तीन साल का रहता है लेकिन इन तीन साल के कार्यक्रम में विषयाें में बदलाव की च्वाॅइस अाैर एक साल का रिसर्च व इंटर्नशिप जाेड़ा गया है। रिसर्च व इंटर्नशीट के लिए स्टूडेंट्स काे अलग से अंक मिलेंगे। लिबरल एजुकेशन के काेर्सेस में भाषा, साहित्य, कला, खेल अाैर संगीत के पार्ट ज्यादा फाेकस किया जाएगा 

 लिबरल एजुकेशन पाॅलिसी काॅन्सेप्ट में रिसर्च एजुकेशन बना बड़ा पार्ट :

हायर एजुकेशन पाॅलिसी में लिबरल एजुकेशन पाॅलिसी के तहत इसे देशभर में लागू करने की याेजना है। ड्राफ्ट में कहा गया है कि जिस तरह से नालंदा - तक्षशीला अादि जगहाें पर पढ़ाई हाेती थी। ठीक उसी तरह से लिबरल एजुकेशन पाॅलिसी के तहत चार साल के स्नातक काेर्सेस तैयार करके लागू करने हाेंगे। साथ ही हर जिले तक इसकी पहुंच रखनी हाेगी । इन काेर्सेस में रिसर्च एजुकेशन काे बड़ा पार्ट मानते हुए लागू किया हहै। साथ ही इंटर्नशीट काे भी इसमें तव्वजाें दी गई है ताकि प्रेक्टिकल एजुकेशन करके छात्र अाैर बेहतर तैयार हाे। 

ड्राफ्ट में गिनाए गए इसके फायदे :

स्टूडेंट्स काे खुद की स्ट्रीम जैसे साइंस, इंजीनियरिंग अार्ट्स अादि के दायरे से बाहर निकलने का माैका मिलेगा अाैर नए सब्जेक्ट लेने व रिसर्च का माैका मिलेगा। 

हर जिले में गुणवत्ता के लिए बेचलर ऑफ लिबरल आटर्स कार्यक्रम।

संवैधानिक मूल्यों के विकास के लिए एजुकेशन ढांचे को मजबूत करना।

इससे डिग्री के साथ - साथ एक्सपर्ट तैयार हाेंगे । साेयासटी के प्रति इनका याेगदान बढ़ेगा। लिबरल एजुकेशन अप्राेच स्टूडेंट्स काे प्रेक्टिकल एजुकेशन एक मजबूत पाठ भी बताएगी। 

लिबरल एजुकेशन के जरिए पेशेवर शिक्षा काे समृद्ध बनाया जा सकता है। 

इस प्रोग्राम के जरिए यूजी के सभी कार्यक्रमों को मजबूत बनाना। इसके साथ ही स्टूडे्ंटस में ऊर्जा संचार करना।

एक्सपर्ट मानते है इसमें कमियां भी हैं :

लिबरल एजुकेशन के चार वर्षीय कार्यक्रम काे अगर स्नातक के समकक्ष का दर्जा मिले तब स्टूडेंट्स बड़ी संख्या में जुटेंगे । राज्य सरकार इसे नाैकरियाें में प्राथमिकता अाैर पीजी के दर्जे का माने तब ये सब वर्किंग मजबूती से सफल हाेगी। 

विश्वविद्यालय अाैर सरकारी काॅलेजाें में इन काेर्सेस काे तैयार करके लागू करने के प्रति शिक्षण संस्थानाें काे ए जज्बा दिखाना हाेगा क्याेंकि इनके बगैर ये सफल नहीं हाेगा। 

इंटर डिसिप्लेनरी एजुकेशन यानी की अार्टस्, साइंस अाैर काॅमर्स संकाय में एक दूसरे के सब्जेक्ट बदलने के प्रावधान पहले से माैजूद लेकिन ये प्रभावी रूप से अब तक प्रदेश में लागू नहीं हाे सकें है। पुराने ढर्रे से ही स्टूडेंट्स काे सब्जेक्ट चूज करने का माैका दिया जा रहा है। इस संबंध में शिक्षण संस्थानाें की तरफ से काेई जागरूकता अब तक नहीं जगाई गई है।

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