Vikrant Shekhawat : Jun 09, 2021, 04:20 PM
चीन के वुहान लैब से कोरोना वायरस के लीक होने को लेकर विवाद जारी है। इस बीच, वुहान लैब के साथ काम करने वाले न्यूयॉर्क के एक एनजीओ प्रमुख का वीडियो सामने आया है जिसमें वो बता रहे हैं कि कोरोना वायरस को लेकर किस तरह का काम चल रहा था। वीडियो से पता चलता है कि वुहान की लैब में कोरोना वायरस जैसा एक वायरस तैयार किया गया था जो जानलेवा था। असल में, न्यूयॉर्क स्थित गैर लाभकारी संगठन (एनजीओ) इको-हेल्थ अलायंस के प्रमुख पीटर दासज़ाक, एक वीडियो सामने आने के बाद सवालों के घेरे में आ गए हैं। इकोहेल्थ एलायंस वही संगठन है जो चीन के वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के साथ मिलकर 'गेन ऑफ फंक्शन' संबंधी रिसर्च कर रहा था। इस संगठन को अमेरिकी सरकार के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिजीज से अनुदान मिला था, जिसके प्रमुख अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के शीर्ष सलाहकार डॉ। एंथनी फाउची हैं।
द नेशनल पल्स की ओर से जारी वीडियो क्लिप में देखा जा सकता है कि इको-हेल्थ एलायंस के प्रमुख पीटर दासज़ाक चीन में कोरोना वायरस को लेकर शोध के दौरान अपने सहयोगियों के 'काम' को लेकर शेखी बघार रहे हैं। अमेरिकी मीडिया की रिपोर्ट्स के मुताबिक पीटर दासज़ाक 'एमर्जिंग इंफेक्शियस डिजीज एंड नेक्स्ट पैनेडेमिक' विषय पर आयोजित कार्यक्रम में वुहान लैब के साथ काम करने की बात स्वीकार की है, जबकि डॉ। फाउची वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में 'गेन-ऑफ-फंक्शन' रिसर्च को फंडिंग करने से बार-बार इनकार करते रहे हैं।
मेडिकल क्षेत्र में किए जाने वाले एक रिसर्च को 'गेन-ऑफ-फंक्शन' कहते हैं। यह वायरस पर शोधों से जुड़ा है। इसका मकसद नए गुणों वाले ऐसे वायरस तैयार करना है जो इंसानों के लिए ज्यादा रोगजनक या संक्रामक हों। दूसरे शब्दों में, गेन-ऑफ-फंक्शन रिसर्च में रोगजनकों में ऐसे बदलाव किए जाते हैं जिससे वो ज्यादा संक्रामक हो जाते हैं। इसका मकसद ये होता है कि इसके किस तरह के म्यूटेंट हो सकते हैं। वीडियो में वायरस की सिक्वेंसिंग के बारे में बताते हुए पीटर दासज़ाक ने वायरस में स्पाइक प्रोटीन डालने की प्रक्रिया के बारे में बताया जो उनके सहयोगियों ने चीन में किया। इसका मकसद यह देखना था कि क्या यह मानवीय कोशिकाओं से जुड़ता है। पीटर दासज़ाक ने बताया, 'जब आप एक वायरस की सिक्वेंसिंग जान लेते हैं और जो एक गंदे रोगजनक की तरह दिखता है।।।जैसा कि हमने SARS के साथ किया।' उन्होंने बताया, 'हमने चमगादड़ों में कोरोना वायरस पाया जो बिल्कुल SARS की तरह ही दिखता था। इसलिए हमने स्पाइक प्रोटीन की सिक्वेंसिंग की। प्रोटीन को कोशिका के साथ जोड़ दिया। फिर हम…वैसे तो मैंने यह काम नहीं किया, लेकिन चीन में मेरे साथियों ने ये काम किया। आप छद्म पार्टिकल्स बनाते हैं, आप उन वायरस से स्पाइक प्रोटीन डालते हैं, देखते हैं कि क्या वे मानव कोशिकाओं से जुड़ते हैं। इसके हर कदम पर आप इस वायरस के करीब और करीब जाते हैं, यह वास्तव में लोगों में रोगजनक बन सकता है।' पीटर दासज़ाक ने कहा कि जब आप एक छोटे से वायरस के साथ यह सब करते हैं तो वो जानलेवा बन जाता है। पीटर दासज़ाक का यह वीडियो सामने आने के बाद डॉ। फाउची के दावों को लेकर सवाल और बड़ा हो गया है। सवाल है कि क्या नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिजीज (NIAID) और डॉ। फाउची के वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वारोलॉजी से गहरे आर्थिक रिश्ते थे? पीटर दासज़ाक की अगुवाई वाला संगठन इको-हेल्थ अलाएंस चीनी लैब को फंडिंग करने वालों में से एक था।असल में, डॉ। फाउची और पीटर दासज़ाक के बीच ईमेल पर हुई बातचीत को लेकर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पार्टी रिपब्लिकन ने सवाल खड़े किए थे। डॉ। फाउची लैब से कोरोना के लीक होने की थ्योरी को नकारते रहे हैं। वुहान लैब के साथ काम कर चुके पीटर दासजाक ने इसके लिए डॉ। फाउची का आभार जताया था। पिछले हफ्ते जब सवाल उठा तो सीएनएन से बातचीत में डॉ फाउची ने कहा कि वुहान स्थित डिजीज इंस्टिट्यूट में रिसर्च के लिए पैसा देने वाले ईको हेल्थ अलायंस के प्रमुख के साथ ईमेल पर बातचीत करने में कुछ भी गलत नहीं है। अमेरिका की सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंसी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने 2014 से 2019 के बीच ईको-हेल्थ अलायंस के जरिये वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ़ वायरॉलजी को करीब छह लाख डॉलर का अनुदान दिया था। इसका मकसद चमगादड़ के कोरोना वायरस पर शोध करना था।वुहान स्थित लैब सेंटर ऑफ एमर्जिंग इन्फेक्सियस डिजीज की निदेशक शी झेंगाली के प्रकाशित दर्जनों शोध पत्रों में पीटर दासज़ाक का सह लेखक के तौर पर नाम भी है। वुहान की इस लैब को अनुदान देने वालों में अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिजीज और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ का नाम भी है। बताया जा रहा है कि इस साल मार्च में इन नामों को गुपचुप तरीके से हटा दिया गया।
द नेशनल पल्स की ओर से जारी वीडियो क्लिप में देखा जा सकता है कि इको-हेल्थ एलायंस के प्रमुख पीटर दासज़ाक चीन में कोरोना वायरस को लेकर शोध के दौरान अपने सहयोगियों के 'काम' को लेकर शेखी बघार रहे हैं। अमेरिकी मीडिया की रिपोर्ट्स के मुताबिक पीटर दासज़ाक 'एमर्जिंग इंफेक्शियस डिजीज एंड नेक्स्ट पैनेडेमिक' विषय पर आयोजित कार्यक्रम में वुहान लैब के साथ काम करने की बात स्वीकार की है, जबकि डॉ। फाउची वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में 'गेन-ऑफ-फंक्शन' रिसर्च को फंडिंग करने से बार-बार इनकार करते रहे हैं।
मेडिकल क्षेत्र में किए जाने वाले एक रिसर्च को 'गेन-ऑफ-फंक्शन' कहते हैं। यह वायरस पर शोधों से जुड़ा है। इसका मकसद नए गुणों वाले ऐसे वायरस तैयार करना है जो इंसानों के लिए ज्यादा रोगजनक या संक्रामक हों। दूसरे शब्दों में, गेन-ऑफ-फंक्शन रिसर्च में रोगजनकों में ऐसे बदलाव किए जाते हैं जिससे वो ज्यादा संक्रामक हो जाते हैं। इसका मकसद ये होता है कि इसके किस तरह के म्यूटेंट हो सकते हैं। वीडियो में वायरस की सिक्वेंसिंग के बारे में बताते हुए पीटर दासज़ाक ने वायरस में स्पाइक प्रोटीन डालने की प्रक्रिया के बारे में बताया जो उनके सहयोगियों ने चीन में किया। इसका मकसद यह देखना था कि क्या यह मानवीय कोशिकाओं से जुड़ता है। पीटर दासज़ाक ने बताया, 'जब आप एक वायरस की सिक्वेंसिंग जान लेते हैं और जो एक गंदे रोगजनक की तरह दिखता है।।।जैसा कि हमने SARS के साथ किया।' उन्होंने बताया, 'हमने चमगादड़ों में कोरोना वायरस पाया जो बिल्कुल SARS की तरह ही दिखता था। इसलिए हमने स्पाइक प्रोटीन की सिक्वेंसिंग की। प्रोटीन को कोशिका के साथ जोड़ दिया। फिर हम…वैसे तो मैंने यह काम नहीं किया, लेकिन चीन में मेरे साथियों ने ये काम किया। आप छद्म पार्टिकल्स बनाते हैं, आप उन वायरस से स्पाइक प्रोटीन डालते हैं, देखते हैं कि क्या वे मानव कोशिकाओं से जुड़ते हैं। इसके हर कदम पर आप इस वायरस के करीब और करीब जाते हैं, यह वास्तव में लोगों में रोगजनक बन सकता है।' पीटर दासज़ाक ने कहा कि जब आप एक छोटे से वायरस के साथ यह सब करते हैं तो वो जानलेवा बन जाता है। पीटर दासज़ाक का यह वीडियो सामने आने के बाद डॉ। फाउची के दावों को लेकर सवाल और बड़ा हो गया है। सवाल है कि क्या नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिजीज (NIAID) और डॉ। फाउची के वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वारोलॉजी से गहरे आर्थिक रिश्ते थे? पीटर दासज़ाक की अगुवाई वाला संगठन इको-हेल्थ अलाएंस चीनी लैब को फंडिंग करने वालों में से एक था।असल में, डॉ। फाउची और पीटर दासज़ाक के बीच ईमेल पर हुई बातचीत को लेकर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पार्टी रिपब्लिकन ने सवाल खड़े किए थे। डॉ। फाउची लैब से कोरोना के लीक होने की थ्योरी को नकारते रहे हैं। वुहान लैब के साथ काम कर चुके पीटर दासजाक ने इसके लिए डॉ। फाउची का आभार जताया था। पिछले हफ्ते जब सवाल उठा तो सीएनएन से बातचीत में डॉ फाउची ने कहा कि वुहान स्थित डिजीज इंस्टिट्यूट में रिसर्च के लिए पैसा देने वाले ईको हेल्थ अलायंस के प्रमुख के साथ ईमेल पर बातचीत करने में कुछ भी गलत नहीं है। अमेरिका की सार्वजनिक स्वास्थ्य एजेंसी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ ने 2014 से 2019 के बीच ईको-हेल्थ अलायंस के जरिये वुहान इंस्टिट्यूट ऑफ़ वायरॉलजी को करीब छह लाख डॉलर का अनुदान दिया था। इसका मकसद चमगादड़ के कोरोना वायरस पर शोध करना था।वुहान स्थित लैब सेंटर ऑफ एमर्जिंग इन्फेक्सियस डिजीज की निदेशक शी झेंगाली के प्रकाशित दर्जनों शोध पत्रों में पीटर दासज़ाक का सह लेखक के तौर पर नाम भी है। वुहान की इस लैब को अनुदान देने वालों में अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिजीज और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ का नाम भी है। बताया जा रहा है कि इस साल मार्च में इन नामों को गुपचुप तरीके से हटा दिया गया।