कोरोना अलर्ट / कोरोना वायरस से लोगों के फेफड़ों पर क्या असर पड़ता है?

चीन से फैला कोरोना अमेरिका समेत कई देशों के लिए बड़ी परेशानी बन गया है। कोरोना से दुनिया में 18 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हैं और ये आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। कोरोना को महामारी घोषित करने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया कि कोरोना से संक्रमित केवल 80 फीसदी मरीज ही सामान्य इलाज से ठीक हो जाते हैं।

AMAR UJALA : Apr 13, 2020, 05:30 PM
चीन से फैला कोरोना अमेरिका समेत कई देशों के लिए बड़ी परेशानी बन गया है। कोरोना से दुनिया में 18 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हैं और ये आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। कोरोना को महामारी घोषित करने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बताया कि कोरोना से संक्रमित केवल 80 फीसदी मरीज ही सामान्य इलाज से ठीक हो जाते हैं। 

छह में से एक मरीज ऐसा है जिसमें सांस लेने जैसी दिक्कत होती है और वह ज्यादा बीमार पड़ता है। लेकिन इसके बावजूद भी कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा थम नहीं रहा है। पहले कोरोना के खांसी, जुकाम और बुखार जैसे लक्षण बताए थे लेकिन धीरे धीरे कोरोना से संक्रमित मरीजों में दिमाग संबंधी बीमारी के लक्षण देखने को मिले, जैसे स्वाद और सूंघने की क्षमता को खो देना। क्या कोरोना से मरीज के फेफड़े पर कोई असर पड़ता है, आइए समझते हैं।।।

लोगों पर वायरस का असर कैसे पड़ता है?

रॉयल ऑस्ट्रेलियन कॉलेज के अध्यक्ष प्रो जॉन विल्सन का मानना है कि कोरोना एक तरह से न्यूमोनिया जैसा ही होता है। कोरोना से पीड़ित मरीजों को चार वर्गों में बांट सकते हैं, सबसे कम गंभीर श्रेणी वाले मरीज वो होते हैं जिनमें कोरोना वायरस तो होता है लेकिन लक्षण नहीं होते। 

दूसरे वर्ग में उन लोगों को रखा जा सकता है जिनमें थोड़े बहुत लक्षण तो होते हैं लेकिन उनको वायरस के होने का पता नहीं चलता और ऐेसे मरीज वायरस को फैला भी सकते हैं। 

तीसरे वर्ग में ज्यादातर उन लोगों को रखा जाता है जिनमें कोविड-19 पॉजिटिव होता है और जिनका अस्पताल में इलाज चल रहा होता है और चौथे वर्ग में वो लोग हैं जिन्हें गंभीर बीमारी होती है और ऐसे मरीजों में न्यूमोनिया के लक्षण दिखाई देते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक जिन बुजुर्ग लोगों में ब्लड प्रेशर, मधुमेह, दिल या फेफड़ों की बीमारी पहले से थी उनमें कोरोना वायरस के गंभीर परिणाम देखे गए। ऐसे मरीजों में कोरोना का खतरा ज्यादा मंडराने लगा।

न्यूमोनिया की शुरुआत कैसे होती है?

प्रो विल्सन का कहना है कि कोरोना से पीड़ित मरीजों में खांसी और बुखार के लक्षण दिखने का परिणाम यह है कि इंफेक्शन श्वसन तंत्र तक पहुंच जाता है। श्वसन तंत्र बाहर की हवा को फेफड़ों तक लाने और अंदर की गंदी हवा को बाहर फेंकने में मदद करता है।

प्रो विल्सन ने बताया कि इंफेक्शन से श्वसन तंत्र में सूजन दिखने लगती है, जिससे तंत्रिकाओं पर असर पड़ता है। धूल के छोटे से कण भी खांसी पैदा कर सकते हैं। लेकिन अगर श्वसन तंत्र में ज्यादा परेशानी होती है तो इंफेक्शन गैस परिवर्तन तंत्र तक पहुंच जाता है जो बेहत खतरनाक स्थिति है।

गैस परिवर्तन तंत्र में इंफेक्शन पहुंचने पर वायुकोष पर असर पड़ता है, ये वायुकोष फेफड़ों के नीचे होता है। प्रो विल्सन का कहना है कि वायुकोष में इंफेक्शन जाने पर एक तरल पदार्थ या सूजी हुई तंत्रिकाएं फेफड़ों तक पहुंच जाती है जिससे मरीज को न्यूमोनिया हो जाता है।

सूजन की वजह से फेफड़ों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलती और फेफड़े उन्हें रक्तप्रवाह तक नहीं पहुंचा पाते। हमारा शरीर ऑक्सीजन नहीं ले पाता औक कार्बन डाइ ऑक्साइड बाहर छो़ड़ने में असक्षम हो जाता है। प्रो विल्सन ने बताया कि इस स्थिति में न्यूमोनिया से मरीज की मौत हो जाती है।

क्या है कोविड-19 न्यूमोनिया का इलाज?

प्रोफेसर क्रिस्टीन जेनकिंस के मुताबिक दुर्भाग्य से अभी तक कोविड-19 न्यूमोनिया का इलाज नहीं मिला है। कोविड-19 के न्यूमोनिया को खत्म करने के लिए कई डॉक्टर अलग अलग दवाइयों के साथ परीक्षण कर रहे हैं और उम्मीद है कि जल्द इससे लड़ने के लिए एक दवाई बन जाएगी। फिलहाल मरीजों को ठीक करने के लिए आईसीयू में रखने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है।

कोरोना से पीड़ित मरीजों को वेंटिलेटर पर रखा जाता है और उन्हें ज्यादा ऑक्सीजन दी जाती है ताकि ठीक होने के लिए मरीज के फेफड़े सामान्य तरीके से काम करने लगे। प्रो विल्सन मानते हैं कि वायरल न्यूमोनिया से मरीज में दूसरे इंफेक्शन के आने का खतरा रहता है, इसलिए मरीजों को एंटी बायोटिक दी जाती है।

क्या कोविड-19 न्यूमोनिया अलग है?

जेनकिंस का मानना है कि कोविड-19 न्यूमोनिया थोड़ा अलग है। जेनकिंस कहती हैं कि न्यूमोनिया से पीड़ित मरीज जो अस्पताल में भर्ती होते हैं उनमें सामान्य लक्षण दिखते है जो वैक्टीरिया से हो सकता है और एंटी बायोटिक दवाइयों से इलाज होता है।

प्रो विल्सन के अनुसार कोविड-19 से होने वाला न्यूमोनिया गंभीर है, कोरोना वाले न्यूमोनिया से फेफड़ों के सभी हिस्सों पर असर पड़ता है। एक बार फेफड़ों का इंफेक्शन अगर वायुकोष में चला जाता है तब हमारा शरीर का पहला काम वायरस को खत्म करना और इसके प्रभाव की सीमित करना होता है।

जेनकिंस के अनुसार 65 या इससे ऊपर के उम्र वाले लोगों में न्यूमोनिया का ज्यादा खतरा रहता है। इसके अलावा मधुमेह, कैंसर से पीड़ित मरीजों और 12 महीने से कम उम्र वाले बच्चों को न्यूमोनिया होने का ज्यादा खतरा रहता है।

न्यूमोनिया से मौत होने में उम्र एक बड़ा घटक है। ये याद रखना बेहद जरूरी है कि आप कितने भी स्वस्थ क्यों ना हो, जैसे जैसे उम्र बढ़ती जाएगी न्यूमोनिया होने का खतरा भी बढ़ता जाएगा। इसके पीछे कारण यह है कि उम्र के साथ साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता घटती जाती है जिससे वायरस या बीमारी से लड़ने में मुश्किल आती है।