News18 : Apr 17, 2020, 02:54 PM
भारत (India) की आबादी अमेरिका (America) के मुकाबले चार गुना ज्यादा है लेकिन आंकड़ों के मुताबिक कोरोना संक्रमण (Corona Infection) के मामलों और मौतों की संख्या बेहद कम है। भारत की प्रति व्यक्ति आय अमेरिका की तुलना में दस गुना कम है लेकिन फिर भी उसने कोरोना का संक्रमण को वृहद स्तर पर फैलने से रोका है। क्वार्त्ज पर प्रकाशित एक रिपोर्ट में एक्सपर्ट्स ने इसका कारण जानने की कोशिश की है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक इसके चार कारण हो सकते हैं।
1-संभव है अभी इस महामारी का असर दूसरे देशों में ही ज्यादा हो। वैसे भी महामारी के बारे में कहा जाता है कि इसका नंबर शुरुआत में कम होता है, बाद में ग्रोथ बहुत तेज होती है।
2-भारत के 21 दिन के लॉकडाउन ने इस महामारी के व्यापक प्रसार को थाम दिया है। वैसे भी इस महामारी को रोकने का सबसे कारगर हथियार सोशल डिस्टेंसिंग ही है जिसे भारत सख्त तरीके से फॉलो कर रहा है।
3-भारत ने अभी बहुत बड़ी संख्या में टेस्ट नहीं किए हैं जिसकी वजह से पूरे नंबर सामने नहीं आ पाए हैं। पर्याप्त टेस्टिंग के अभाव में बहुत सारी मौतों का आंकड़ा भी स्पष्ट नहीं हो पाता है। इस वजह से संभव है कि समस्या जितनी छोटी दिख रही है उतनी छोटी हो नहीं।
4-माना जा रहा है कि भारत के भीतर कोविड-19 के खिलाफ कुछ सावधानियां पहले से मौजूद हैं। रिसर्चकर्ताओं का कहना है कि आबादी में युवाओं का प्रतिशत ज्यादा होना, तापमान और आर्द्रता ज्यादा होना, बीसीजी का व्यापक टीकाकरण भारत को कोरोना महामारी की जबरदस्त चपेट से बचा सकता है।
किस स्टेज में है भारत
पहली बात तो हमें ये ही समझनी होगी कि भारत अब महामारी की शुरुआती स्टेज में नहीं है। चीन के वुहान से केरल पहुंचने वाला भारत का पहला संक्रमित केस 29 जनवरी को प्रकाश में आया था। केरल ने कोरोना की रोकथाम के लिए त्वरित गति से कार्रवाई की है। राज्य ने अपने यहां कोरोना के मरीजों की संख्या फैलने से रोक दी है।इसके बाद भारत ने लॉकडाउन का कदम भी जल्दी उठाया और सख्ती से इसका पालन शुरू किया। इसलिए अभी जो नंबर सामने आ रहे हैं उससे पता चलता है कि लॉकडाउन करने के पहले ही काफी लोग संक्रमित हो चुके थे। हालांकि इसमें कोई संदेह नहीं कि लॉकडाउन का असर दिखाई देगा। लेकिन अभी इसका प्रभाव देखने का पूरा समय गुजरा नहीं है। इसलिए अभी हमें पूरे नंबर जानने के लिए लॉकडाउन के खत्म होने तक का इंतजार करना होगा।
व्यापक टेस्टिंग का अभाव
कई देशों की तरह भारत भी अभी व्यापक तौर पर टेस्टिंग कर पाने में नाकाम रहा है। कम टेस्टिंग का मतलब ये है कि कोरोना की वजह से हुई कई मौतों का अंदाजा ही नहीं लग पाया होगा। टेस्ट न होने का मतबल है कि कई मौतें कोरोना के आंकड़ों से नहीं जुड़ पाई होंगी।कोरोना से हुई मौत की स्ष्टता टेस्टिंग के बाद ही की जा सकती है। अभी भारत में इसकी टेस्टिंग किट कम हैं और टेस्टिंग की फीस भी 4500 के आस-पास है। हालांकि अगर कोरोना जैसे लक्षणों वाले व्यक्ति का जीवित रहते टेस्ट नहीं हो पा रहा है कि मृत्य के बाद संसाधनों की कमी के बीच टेस्टिंग किट जाया करना भी सही नहीं है। पूरा आंकड़ा समझने के लिए सभी कारणों से होने वाली मौतों को भी देखना होगा। अगर कोरोना वायरस से होने वाली मौतों की संख्या ज्यादा है तो हमें ये कुल मौतों के आंकड़े से भी पता चल सकता है। लेकिन ये एनालिसिस मुश्किल है।
लॉकडाउन का ये भी असर
भारत में कोरोना की संक्रमण दर 1।8 है यानी अगर लॉकडाउन नहीं होता ये भारत की 65 फीसदी आबादी को संक्रमित कर सकता था। अगर भारत में जर्मनी की तरह 0।3 प्रतिशत की डेथ रेट भी रहती तो भी कम से कम 20 लाख लोगों की मौत होती।चीन के शुरुआती आंकड़ो के मुताबिक कोरोना बीमारी से डेथ रेट 80 साल से ऊपर के लोगों में 14।8 प्रतिशत था लेकिन 39 साल से कम के लोगों में ये रेट महज 0।2 ही था। भारत में मात्र 0।8 प्रतिशत आबादी 80 साल से ऊपर के लोगों की है। 75 फीसदी आबादी 40 से कम के लोगों की है। इसमें एक बुरी बात ये है कि भारत में युवाओं में भी खराब स्वास्थ्य की समस्याएं पैदा हो रही है।
अगर किसी व्यक्ति को हृदय संबंधी, मधुमेह, श्वसन संबंधी, या बीपी जैसी समस्या है तो मौत होने का रिस्क 30 फीसदी तक बढ़ जाता है। भारत में बीते कुछ सालों में हृदय संबंधी बीमारियां तेजी के साथ बढ़ी हैं। साथ ही श्वसन संबंधी बीमारियों का स्तर तो वैश्विक स्तर पर काफी ज्यादा है। वहीं मधुमेह की समस्या भी विकराल हुई है। एक और बड़ी बात भारत में संयुक्त परिवारों की बड़ी मौजूदगी है। ऐसे परिवारों में युवाओं से वृद्ध लोगों में संक्रामक बीमारियां फैलने का खतरा काफी ज्यादा होता है।
एक और व्याख्या ये भी है कि गर्मी की वजह से भारत में संख्या तेजी से नहीं बढ़ रही है। कुछ रिसर्च ने इस बात की पुष्टि भी की है। लेकिन कुछ शुरुआती रिसर्च में ये भी कहा गया है कि भारत में सबसे ज्यादा खतरा मानसून के मौसम में होगा। क्योंकि तब फ्लू काफी तेजी से फैलता है। लेकिन एक नई स्टडी का कहना है कि गर्मी का फर्क कोरोना वायरस पर नहीं पड़ता है। इसलिए ये नहीं माना जा सकता है कि सिर्फ गर्मी की वजह से भारत में कोरोना के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी नहीं हो रही है।
इसलिए माना जा सकता है कि भारत में कोरोना का कम संक्रमण होना अब भी एक पहेली की तरह है। संभव है कि भारत में मौजूद कुछ खूबियां ही उसे बचा रही हों जिनका जिक्र शुरुआत में ही किया गया था। लेकिन क्योंकि शोधकर्ता अभी किसी सटीक नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं इसलिए इस महामारी पर फिलहाल अभी सख्त निगाह रखने की जरूरत है।
1-संभव है अभी इस महामारी का असर दूसरे देशों में ही ज्यादा हो। वैसे भी महामारी के बारे में कहा जाता है कि इसका नंबर शुरुआत में कम होता है, बाद में ग्रोथ बहुत तेज होती है।
2-भारत के 21 दिन के लॉकडाउन ने इस महामारी के व्यापक प्रसार को थाम दिया है। वैसे भी इस महामारी को रोकने का सबसे कारगर हथियार सोशल डिस्टेंसिंग ही है जिसे भारत सख्त तरीके से फॉलो कर रहा है।
3-भारत ने अभी बहुत बड़ी संख्या में टेस्ट नहीं किए हैं जिसकी वजह से पूरे नंबर सामने नहीं आ पाए हैं। पर्याप्त टेस्टिंग के अभाव में बहुत सारी मौतों का आंकड़ा भी स्पष्ट नहीं हो पाता है। इस वजह से संभव है कि समस्या जितनी छोटी दिख रही है उतनी छोटी हो नहीं।
4-माना जा रहा है कि भारत के भीतर कोविड-19 के खिलाफ कुछ सावधानियां पहले से मौजूद हैं। रिसर्चकर्ताओं का कहना है कि आबादी में युवाओं का प्रतिशत ज्यादा होना, तापमान और आर्द्रता ज्यादा होना, बीसीजी का व्यापक टीकाकरण भारत को कोरोना महामारी की जबरदस्त चपेट से बचा सकता है।
किस स्टेज में है भारत
पहली बात तो हमें ये ही समझनी होगी कि भारत अब महामारी की शुरुआती स्टेज में नहीं है। चीन के वुहान से केरल पहुंचने वाला भारत का पहला संक्रमित केस 29 जनवरी को प्रकाश में आया था। केरल ने कोरोना की रोकथाम के लिए त्वरित गति से कार्रवाई की है। राज्य ने अपने यहां कोरोना के मरीजों की संख्या फैलने से रोक दी है।इसके बाद भारत ने लॉकडाउन का कदम भी जल्दी उठाया और सख्ती से इसका पालन शुरू किया। इसलिए अभी जो नंबर सामने आ रहे हैं उससे पता चलता है कि लॉकडाउन करने के पहले ही काफी लोग संक्रमित हो चुके थे। हालांकि इसमें कोई संदेह नहीं कि लॉकडाउन का असर दिखाई देगा। लेकिन अभी इसका प्रभाव देखने का पूरा समय गुजरा नहीं है। इसलिए अभी हमें पूरे नंबर जानने के लिए लॉकडाउन के खत्म होने तक का इंतजार करना होगा।
व्यापक टेस्टिंग का अभाव
कई देशों की तरह भारत भी अभी व्यापक तौर पर टेस्टिंग कर पाने में नाकाम रहा है। कम टेस्टिंग का मतलब ये है कि कोरोना की वजह से हुई कई मौतों का अंदाजा ही नहीं लग पाया होगा। टेस्ट न होने का मतबल है कि कई मौतें कोरोना के आंकड़ों से नहीं जुड़ पाई होंगी।कोरोना से हुई मौत की स्ष्टता टेस्टिंग के बाद ही की जा सकती है। अभी भारत में इसकी टेस्टिंग किट कम हैं और टेस्टिंग की फीस भी 4500 के आस-पास है। हालांकि अगर कोरोना जैसे लक्षणों वाले व्यक्ति का जीवित रहते टेस्ट नहीं हो पा रहा है कि मृत्य के बाद संसाधनों की कमी के बीच टेस्टिंग किट जाया करना भी सही नहीं है। पूरा आंकड़ा समझने के लिए सभी कारणों से होने वाली मौतों को भी देखना होगा। अगर कोरोना वायरस से होने वाली मौतों की संख्या ज्यादा है तो हमें ये कुल मौतों के आंकड़े से भी पता चल सकता है। लेकिन ये एनालिसिस मुश्किल है।
लॉकडाउन का ये भी असर
भारत में कोरोना की संक्रमण दर 1।8 है यानी अगर लॉकडाउन नहीं होता ये भारत की 65 फीसदी आबादी को संक्रमित कर सकता था। अगर भारत में जर्मनी की तरह 0।3 प्रतिशत की डेथ रेट भी रहती तो भी कम से कम 20 लाख लोगों की मौत होती।चीन के शुरुआती आंकड़ो के मुताबिक कोरोना बीमारी से डेथ रेट 80 साल से ऊपर के लोगों में 14।8 प्रतिशत था लेकिन 39 साल से कम के लोगों में ये रेट महज 0।2 ही था। भारत में मात्र 0।8 प्रतिशत आबादी 80 साल से ऊपर के लोगों की है। 75 फीसदी आबादी 40 से कम के लोगों की है। इसमें एक बुरी बात ये है कि भारत में युवाओं में भी खराब स्वास्थ्य की समस्याएं पैदा हो रही है।
अगर किसी व्यक्ति को हृदय संबंधी, मधुमेह, श्वसन संबंधी, या बीपी जैसी समस्या है तो मौत होने का रिस्क 30 फीसदी तक बढ़ जाता है। भारत में बीते कुछ सालों में हृदय संबंधी बीमारियां तेजी के साथ बढ़ी हैं। साथ ही श्वसन संबंधी बीमारियों का स्तर तो वैश्विक स्तर पर काफी ज्यादा है। वहीं मधुमेह की समस्या भी विकराल हुई है। एक और बड़ी बात भारत में संयुक्त परिवारों की बड़ी मौजूदगी है। ऐसे परिवारों में युवाओं से वृद्ध लोगों में संक्रामक बीमारियां फैलने का खतरा काफी ज्यादा होता है।
एक और व्याख्या ये भी है कि गर्मी की वजह से भारत में संख्या तेजी से नहीं बढ़ रही है। कुछ रिसर्च ने इस बात की पुष्टि भी की है। लेकिन कुछ शुरुआती रिसर्च में ये भी कहा गया है कि भारत में सबसे ज्यादा खतरा मानसून के मौसम में होगा। क्योंकि तब फ्लू काफी तेजी से फैलता है। लेकिन एक नई स्टडी का कहना है कि गर्मी का फर्क कोरोना वायरस पर नहीं पड़ता है। इसलिए ये नहीं माना जा सकता है कि सिर्फ गर्मी की वजह से भारत में कोरोना के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी नहीं हो रही है।
इसलिए माना जा सकता है कि भारत में कोरोना का कम संक्रमण होना अब भी एक पहेली की तरह है। संभव है कि भारत में मौजूद कुछ खूबियां ही उसे बचा रही हों जिनका जिक्र शुरुआत में ही किया गया था। लेकिन क्योंकि शोधकर्ता अभी किसी सटीक नतीजे पर नहीं पहुंचे हैं इसलिए इस महामारी पर फिलहाल अभी सख्त निगाह रखने की जरूरत है।