BBC : Apr 07, 2020, 04:34 PM
Coronavirus in India: दुनिया भर के मुसलमान आने वाले बुधवार और गुरुवार की दरमियानी रात का इंतज़ार कर रहे हैं। ये मौक़ा है शब-ए-बारात का। लेकिन कोरोना वायरस और लॉकडाउन के इस दौर में जब ज़्यादातर लोग पाबंदियों के साथ जी रहे हैं तो ऐसे में लोग कैसे शब-ए-बारात मना सकेंगे।आशंकाएं दोनों तरफ़ हैं। एक तरफ़ शब-ए-बारात का इंतज़ार कर रहे लोग ये सोच रहे हैं कि वे कैसे इसे मना पाएंगे तो लॉकडाउन लागू करने वाली सुरक्षा एजेंसियां भी एहतियात बरत रही हैं। दिल्ली पुलिस ने रविवार की रात लोगों से ये अपील की कि वे इस मौक़े पर अपने घरों में ही रहें। इसका उल्लंघन करने वालों पर सख़्त कार्रवाई की जाएगी। यहां तक कि कुछ राज्यों में सरकारी वक़्फ बोर्ड ने कोरोना वायरस की महामारी को ध्यान में रखते हुए सामूहिक नमाज़ और क़ब्रिस्तान जाने से मना किया है। ऐसी अपील करते हुए कुछ राजनेता भी सामने आए हैं। एनसीपी के मुखिया शरद पवार ने मुसलमानों से शब-ए-बारात के मौक़े पर अपने घरों में रहने के लिए अपील की है।क्या है शब-ए-बारातइस्लामी कैलंडर के आठवें महीने 'शाबान' की 15वीं रात को मुसलमान 'शब-ए-बारात' मनाते हैं। मुसलमानों के लिए ये मुबारक मौक़ा रमज़ान के दो हफ़्ते पहले आता है। इसे माफ़ी की रात भी कहा जाता है और इसकी वजह भी है। ये वो वक़्त होता है जब मुसलमान ख़ुदा से अपनी ग़लतियों के लिए माफ़ी मांगते हैं। मुसलमानों का ये मानना है कि 'शब-ए-बारात' की रात किसी की क़िस्मत का फ़ैसला होता है कि आने वाला साल उसके लिए कैसा गुज़रेगा। इस मौक़े पर रिश्तेदारों की क़ब्रों पर जाने और दान देने का भी रिवाज है। दुनिया के कुछ हिस्सों में इस रात को मनाने के लिए मुसलमान आतिशबाज़ी भी करते हैं, हालांकि ऐसी कोई मज़हबी बंदिश नहीं है।मुसलमानों के लिए कितना अहममुसलमानों के लिए शब-ए-बारात की अहमियत समझाते हुए लेखक और विद्वान हफ़ीज़ किदवई बताते हैं, "शब-ए-बारात मोहम्मद साहब की यात्रा का उत्सव है जिसे शब-ए-क़द्र भी कहते हैं। माना जाता है कि शब-ए-क़द्र शब-ए-बारात की रात को पड़ा होगा। इसलिए मुसलमान रात भर जागकर प्रार्थना करते हैं। कहा जाता है कि शब-ए-बारात की रात मोहम्मद साहब को ईश्वर ने सात तरह की दुनिया दिखाई थी। शब-ए-बारात का मौक़ा इसी का उत्सव है।"दुनिया के हर मज़हब में हरेक त्योहार का एक ख़ास धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संदेश होता है। शब-ए-बारात के संदेश पर हफ़ीज़ क़िदवई कहते हैं, "इसका एक संदेश तो ये है कि मुस्लिम समाज अपने पूर्वजों को याद करेगा। इसीलिए क़ब्रिस्तान जाकर उनकी याद में प्रार्थना की जाती हैं।" मुसलमानों का एक बड़ा हिस्सा इस दिन रोज़ा भी रखता है।हफ़ीज़ किदवई कहते हैं, "मुसलमानों का एक तबक़ा शब-ए-बारात को मानता है जबकि कुछ फिरके इस पर यक़ीन नहीं रखते। ठीक इसी तरह सऊदी अरब में शब-ए-बारात नहीं मनाया जाता है जबकि तुर्की और ईरान में ये मनाया जाता है।"लॉकडाउन में कैसे होगा?लॉकडाउन के माहौल में वक़्फ बोर्डों के अलावा कुछ मौलवियों ने भी इस सिलसिले में फ़तवा जारी किया है कि लोग क़ब्रिस्तान न जाएं। हफ़ीज़ किदवई बताते हैं, "शब-ए-बारात के मौक़े पर लोग क़ब्रिस्तान में अपने पुरखों की क़ब्र पर मोमबत्तियां जलाते हैं। ये काम बिना क़ब्रिस्तान गए घर से भी हो सकता है।""लोगों का क़ब्रिस्तान जाना शब-ए-बारात की सबसे दिखने वाली घटना है। लेकिन ये इस पर्व का एक तिहाई हिस्सा ही है। बाक़ी दो तिहाई काम लोग घरों पर करते हैं। लोग हलवा या कोई मीठी चीज़ बनाते हैं जो वे अपने पुरखों को अर्पित करते हैं। ये खाना लोग घरों में बनाते हैं और ख़ुद ही खाते हैं। लोग रोशनी करके अपना घर भी सजाते हैं।" शब-ए-बारात का अर्थ ही होता है बरकत की रात। इसीलिए ये रात में मनाया जाने वाला त्योहार है।हफ़ीज़ किदवई बताते हैं, "शब-ए-बारात के ज़्यादातर रिवाज सूरज ढलने के बाद पूरे किए जाते हैं। सूरज ढलने के बाद तीन काम किए जाते हैं। क़ब्र पर मोमबत्ती जलाना, रोशनी से घर सजाना और तीसरा घर में कोई मीठी चीज़ बनाना। चूंकि अभी लॉकडाउन है इसलिए अब आपको क़ब्र पर नहीं जाना है, लेकिन अब आप अपने घर पर दीया जला सकते हैं और हलवा भी बना सकते हैं। अपने बुजुर्गों को इस तरह से याद कर सकते हैं।"पुलिस के लिए कैसी परेशानीबीते कुछ सालों में देखा गया है कि शब-ए-बारात की रात मुस्लिम नौजवान अपनी मोटरसाइकिलों पर रात में तफ़रीह के लिए निकला करते हैं। चूंकि इस साल कोरोना वायरस संक्रमण के मद्देनज़र सरकार ने सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन का आदेश दे रखा है।bतो ऐसे में पुलिस की चिंता समझ में आती है और दिल्ली पुलिस की चेतावनी को भी इसी नज़रिये से देखा जा रहा है।उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व डीजी ब्रजमोहन सारस्वत कहते हैं, "पुलिस को किसी भी किसी भी क़ीमत पर शब-ए-बारात के लिए घर से बाहर के किसी कार्यक्रम की इजाज़त नहीं देनी चाहिए।" "क़ब्रिस्तान में पूर्वजों की क़ब्र पर पूरा किए जाने वाले धार्मिक रीति-रिवाजों के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग हो नहीं पाएगी।"पूर्व आईपीएस अधिकारी ब्रजमोहन सारस्वत कहते हैं कि चाहे मुस्लिम त्योहार हों या हिंदू त्योहार, सोशल डिस्टेंसिंग हो नहीं पाएगी। लॉकडाउन का मक़सद यही है कि लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। मौजूदा हालात में इसकी इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए।