Coronavirus Vaccine / 'वैक्सीन लगवाई तो मर जाएंगे', टीकाकरण को लेकर गांवों में डर, अंधविश्वास और अफवाह का माहौल

कोरोना संकट के बीच जहां टीकाकरण अभियान को युद्धस्तर पर चलाया जा रहा है, वहीं देश के ग्रामीण इलाकों में वैक्सीन को लेकर उपजे डर, अंधविश्वास और अफवाहें इस अभियान को खटाई में डाल सकतीं हैं। सरकार दिसंबर तक भारत की पूरी वयस्क आबादी का टीकाकरण करने का लक्ष्य लेकर चल रही है, लेकिन जमीन पर हालात अलग हैं।

Vikrant Shekhawat : Jun 02, 2021, 04:41 PM
Delhi: कोरोना संकट के बीच जहां टीकाकरण अभियान को युद्धस्तर पर चलाया जा रहा है, वहीं देश के ग्रामीण इलाकों में वैक्सीन को लेकर उपजे डर, अंधविश्वास और अफवाहें इस अभियान को खटाई में डाल सकतीं हैं। सरकार दिसंबर तक भारत की पूरी वयस्क आबादी का टीकाकरण करने का लक्ष्य लेकर चल रही है, लेकिन जमीन पर हालात अलग हैं। कई ग्रामीण इलाकों के लोग इस अभियान का विरोध कर रहे हैं। टीकाकरण के कारण होने वाले दुष्प्रभाव और डोज लेने के बाद भी मौतों की रिपोर्ट ने अफवाहों को और हवा दी है कि कोविड वैक्सीन घातक है। 

ऐसे में वैक्सीन फोबिया के पीछे के कारण का पता लगाने के लिए 'आजतक' देश के कुछ सुदूर इलाकों में पहुंचा और जानने की कोशिश की कि आखिर वैक्सीन को लेकर डर, अंधविश्वास और अफवाहें क्यों फैल रही हैं। 

राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में कोविड के प्रसार पर लगाम लगाने के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना शुरू की है। लेकिन अब भी टीकाकरण को लेकर ग्रामीणों में तरह-तरह की अफवाहें सामने आ रही हैं, जिसकी वजह से वैक्सीनेशन अभियान में मुश्किलें आ रही हैं। खुद मुख्यमंत्री गहलोत का गृहनगर जोधपुर भी इन्हीं अफवाहों की मार झेल रहा है।

यहां के शेरगढ़ गांव में एक अजीबोगरीब सन्नाटा पसरा है, जहां कोविड के कारण एक पुजारी की मौत ने ग्रामीणों को बेचैन कर दिया है। मुन्नी देवी स्थानीय भूपा (लोक देवताओं का गायन करने वाला एक समुदाय) थीं, जिन्होंने देवताओं से महामारी के दौरान बीमारियों के इलाज की प्रार्थना की थी। ग्रामीण इस बात को लेकर हैरत में हैं कि मुन्नी देवी, जिनके पास 'विशेष शक्तियां' थीं, वो भी कैसे वायरस से हार गईं। 

वैक्सीन लगवाने पर मौत होने की अफवाह 

शेरगढ़ गांव के सरपंच प्रतिनिधि मदन सिंह ने कहा, "वह (मुन्नी देवी) देवताओं को प्रसन्न करने के लिए अनुष्ठान करती थी, उसने सोचा कि देवता उसे बचा लेंगे और टेस्ट के लिए नहीं गए। उसके बाद उसकी स्थिति बिगड़ गई।" बता दें कि शेरगढ़ ब्लॉक में कोविड के कारण 80 से अधिक मौतें हुई हैं, लेकिन यहां टीकाकरण अभियान का लोग अभी भी विरोध कर रहे हैं। 

थानेदार, चलराम कहते हैं, ''जिन लोगों ने वैक्सीन लगवाई, उनकी मौत हो गई। इसीलिए मेरे समेत करीब 30-35 परिवारों ने टीका नहीं लिया है।'' वहीं चलराम की पत्नी, कहती हैं, ''मुझे कोई बीमारी नहीं है, तो मैं टीका क्यों लूं? टीका लेने वाले सभी बीमार पड़ गए हैं।'' तीस्ता देवी और नीमाराम जैसे अन्य ग्रामीण भी इसी बात से सहमत हैं। नीमराम ​​कहते हैं, "मैं एक मजदूर हूं। काम पर जाता हूं। मुझे नहीं पता कि कोई कोरोना टेस्ट के लिए आया था या नहीं। लेकिन मैंने सुना है कि टीका लेने वाले सभी लोग मर गए हैं, इसलिए मैंने इसे नहीं लिया।"

बात अगर भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश की करें तो यहां कई ग्रामीण इलाकों में लोग टीकाकरण से दूर भागते नजर आए, हालांकि शहरी इलाकों में कतारें लगी देखी गईं। ग्रामीण इलाकों में टीकाकरण प्रक्रिया अभी तक गति नहीं पकड़ पाई है।  

लखनऊ के पास पकारा बाजारगांव पहुंचा, जहां स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में टीकाकरण चल रहा था। दिलचस्प बात यह है कि यहां ग्रामीण लोग कम आए थे, अधिकांश वैक्सीन लगवाने वाले लोग लखनऊ से थे। इस मसले पर चिकित्सा अधिकारी डॉ शालिनी ने कहा कि ज्यादातर ग्रामीण वैक्सीन लेने से डरते हैं और इसके बारे में उनकी अपनी गलत धारणाएं हैं। उन्होंने कहा कि यहां अधिकांश परिवारों ने कोविड की दूसरी लहर के दौरान कई अपनों को खोया है और अब उनका मानना ​​है कि टीका लेने के बाद उनकी जान को खतरा हो सकता है। 

स्थानीय पीएचसी के ठीक बगल में 35 वर्षीय पूजा रहती हैं, 'आजतक' से उन्होंने कहा, "मैं और मेरे पति वैक्सीन नहीं लेंगे। यह नुकसानदेह है और हमें जान से मार सकता है।" 

वहीं 25 वर्षीय आयुष शुक्ला ने कहा, "मैंने ग्रामीणों से सुना है कि टीका लेने के बाद लोगों को बुखार हो जाता है और कुछ की जान भी चली जाती है। मैं अभी तक टीका लेने के लिए तैयार नहीं हूं और वैक्सीन लूं या नहीं इस पर फैसला लेने में समय लगेगा।" एक अन्य ग्रामीण हीरालाल (40) का कहना है कि वह बिल्कुल ठीक है, उसे टीका लगवाने की जरूरत नहीं है। 

वहीं, 30 वर्षीय भूपेंद्र सिंह ने कहा, "कुछ लोगों की पहले भी वैक्सीन लेने के बाद मौत हो गई थी, जिससे डर पैदा हो गया है। व्हाट्सएप पर गलत सूचनाएं शेयर करना भी वैक्सीन लेने में हिचकिचाहट का एक प्रमुख कारण है।"

मध्य प्रदेश में ग्रामीण इलाकों को तो छोड़िए, यहां तक ​​कि बड़े शहरों के कस्बाई इलाकों में रहने वालों में भी वैक्सीन को लेकर अविश्वास है। 'आजतक' ने भोपाल के पास रतीबाद गांव में जाकर पाया कि यहां भी वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट है।

यहां के पढ़े-लिखे व्यापारी लोकेश का कहना है कि टीका लगवाने के बाद उनके पिता की हालत बिगड़ गई थी, हालांकि वह करीब 20 दिनों के बाद ठीक हो गए। लोकेश का कहना है कि यही कारण है कि वह इससे डर रहे हैं। वहीं, ठेकेदार गगन और खेतिहर मजदूर सुनील भी टीकाकरण से दूर रहे हैं। उनका कहना है कि जो भी वैक्सीन ले रहा है वह बीमार पड़ रहा है। 

रतीबाद में दो टीकाकरण केंद्रों में अब तक लगभग 5,000 लोगों को टीका लगाया गया है। लेकिन वैक्सीन के प्रति फैली अफवाहों के डर ने गांव को जकड़ लिया है और अफवाहों ने टीकाकरण की गति को ही रोक दिया है। 

बिहार के सहरसा जिले के करियात गांव के रहने वाले 18 वर्षीय अमन कुमार टीकाकरण का खुला विरोध करते हैं। डेढ़ हजार की आबादी वाले इस गांव के कई अन्य लोगों की भी यही राय है। अमन का मानना ​​है कि टीका लगवाने से मौत हो सकती है। उन्होंने कहा, "मैंने खुद कोरोना का टीका नहीं लगाया है क्योंकि टीका लेने के बाद लोगों के मरने के कई उदाहरण हैं।"

बिहार के इस गांव में अफवाहों की भरमार

वहीं, प्रणव कुमार (41) का कहना है कि ग्रामीण आबादी को दिया जा रहा टीका नकली है। उन्होंने कहा, 'सरकार सही वैक्सीन भेज रही है, लेकिन हमें यहां जो मिल रहा है वह नकली है। जो कोई भी वैक्सीन ले रहा है, वह मर रहा है। हमें व्हाट्सएप से भी जानकारी मिल रही है कि जो कोई भी वैक्सीन ले रहा है उसकी मौत हो जाती है।'

फिलहाल इन सभी ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय प्रशासन लोगों तक पहुंचकर, अफवाहों को दूर करने की पूरी कोशिश कर रहा है। लेकिन इसका व्यापक असर अभी देखने को नहीं मिल रहा।