News18 : Apr 11, 2020, 09:59 AM
कोरोनावायरस को लेकर अलग-अलग खुलासों का दौर जारी है। अब अमेरिका के पूर्व सैन्य अधिकारी ने दावा किया है कि अमेरिका की खुफिया एजेंसियों को पिछले साल नवंबर की शुरुआत में ही चीन में उभरते वायरस की भनक लग चुकी थी और वो लगातार इस वायरस पर नज़र रखे हुए थीं।
सीएनएन को सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक हालांकि नवंबर में इकट्ठा की गई खुफिया जानकारियों की पहली रिपोर्ट की सही तारीख स्पष्ट नहीं है। लेकिन ये भी कहा कि इसके बाद कई हफ्तों तक वायरस से संभावित महामारी को लेकर अमेरिका को तमाम चेतावनियां जारी की गईं। सीएनएन में छपी रिपोर्ट के मुताबिक 3 जनवरी को पहली बार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दैनिक ब्रीफिंग में चीन के घातक वायरस, संक्रमण की क्षमता और अमेरिका के प्रति खतरे को लेकर खुफिया विभाग से मिली जानकारी के आधार पर साझा किया। वहीं पर्दे के पीछे अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए और दूसरी जासूसी संस्थाएं चीन के भीतर उस वायरस की तह तक उतरने की कोशिश कर रही थीं जिससे चीन जूझ रहा था।
एबीसी में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक यूएस मिलिट्री के नेशनल सेंटर फॉर मेडिकल इंटेलिजेंस (NCMI) ने नवंबर माह की खुफिया रिपोर्ट इकट्ठा की थी जिसके विश्लेषण के बाद जानकारों ने ये आशंका जताई थी कि ये एक ‘प्रलयकारी घटना’ हो सकती है। सूत्रों ने एबीसी न्यूज़ को बताया कि खुफिया रिपोर्ट को कई बार डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी, पेंटागन के ज्वाइंट स्टॉफ और व्हाइट हाउस को सूचित किया गया।
इससे पहले एबीसी न्यूज ने बुधवार को बताया कि डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी की एक शाखा नेशनल सेंटर फॉर मेडिकल इंटेलिजेंस ने नवंबर में ही ये चेतावनी जारी कर दी थी कि चीन के वुहान में एक नया वायरस फैल रहा है। लेकिन एबीसी की रिपोर्ट का अमेरिकी रक्षा विभाग ने खंडन किया। पेंटागन ने रिपोर्ट को खारिज़ करते हुए कहा कि नेशनल सेंटर फॉर मेडिकल इंटेलिजेंस विशिष्ट खुफिया मामले में सार्वजनिक रूप से इस तरह टिप्पणी नहीं करता है। पेंटागन ने बुधवार देर रात एबीसी न्यूज की रिपोर्ट का खंडन करते हुए एक बयान भी जारी कर दिया।
ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टॉफ के वाइस चैयरमैन जॉन हैटन के भी कोरोनावायरस पर नवंबर महीने की खुफिया रिपोर्ट पर सुर बदलते दिखे। उन्होंने कहा कि कोरोनावायरस पर पहली खुफिया रिपोर्ट जनवरी में उन्होंने देखी। अमेरिका में लगातार मौत के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं और कोरोनावायरस से निपटने में ट्रंप प्रशासन की तैयारियों पर कई सवाल उठ रहे हैं। सवाल ये भी उठ रहे हैं कि अगर अमेरिका के खुफिया विभाग को चीन में उभरते किसी वायरस की पुख्ता जानकारी थी तो फिर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को इसकी जानकारी कब मिली?बुधवार को राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि चीन पर अमेरिकी यात्रा पर प्रतिबंध के फैसले से कुछ पहले ही वायरस की गंभीरता और घातक संक्रमण की जानकारी हुई। अमेरिकी में चीनी उड़ानों पर प्रतिबंध 2 फरवरी से लागू हुआ। लेकिन नवंबर से लेकर फरवरी तक के दरम्यान 3 महीने तक अमेरिका क्या सिर्फ जानकारियां ही इकट्ठा करता रहा और तैयारियों पर ज़ोर नहीं दिया गया?रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रपति ट्रंप लगातार ही कोरोनावायरस के संक्रमण को रोकने में अमेरिकी प्रशासन के प्रयासों की तारीफ करते रहे और वायरस की गंभीरता को कमतर आंकते रहे। लेकिन बाद में जब अमेरिका में इस महामारी से हाहाकर मचा तो ट्रंप ने कहा कि किसी को भी इस महामारी के इस कदर घातक होने का गुमान नहीं था। लेकिन वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप और कांग्रेस जनवरी से कोरोनावायरस को लेकर मिल रहे खुफिया अलर्ट को लेकर आंख मूंदे रहे और समय रहते चीन में शुरू हुए इस संकट की गंभीरता को नहीं समझा। यहां तक कि ट्रंप ने ये तक कहा था कि अप्रैल तक वायरस अमेरिका से चला जाएगा।
वायरस के बारे में दिसंबर की शुरुआत से ही चीन के सोशल और सरकारी मीडिया पर चर्चा तेज़ चुकी थी। अज्ञात सांस की बीमारी के इलाज में आ रही मुश्किलों को लेकर खबरें आना शुरू हो गई थीं। यहां तक कि इस बीमारी की साल 2003 में चीन में शुरू हुई सार्स बीमारी के साथ तुलना भी की जाने लगी थी। इतना ही नहीं बल्कि बीजिंग ने 31 दिसंबर को विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO को अज्ञात कारण से निमोनिया के प्रकोप की आधिकारिक सूचना दी थी।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दैनिक ब्रीफिंग की जिम्मेदारी उठाने वाले डायरेक्टर ऑफ नेशनल इंटेलिजेंस और नेशनल सिक्यूरिटी कॉन्सिल ने चीन में महामारी की शुरुआत को लेकर जारी हुई शुरुआती चेतावनियों की तारीख पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है। यहां तक कि सीआईए ने सीएनएन से बातचीत में चीन में वायरस को लेकर नवंबर की किसी खास रिपोर्ट की जानकारी से इनकार किया है।
अमेरिका के खुफिया सूत्र अब चीन में कोरोनावायरस से हुई मौत के असली आंकड़े को खंगालने में जुटा हुआ है क्योंकि अमेरिका को चीन के बताए गए आधिकारिक आंकड़ों पर भरोसा नहीं है।
सीएनएन को सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक हालांकि नवंबर में इकट्ठा की गई खुफिया जानकारियों की पहली रिपोर्ट की सही तारीख स्पष्ट नहीं है। लेकिन ये भी कहा कि इसके बाद कई हफ्तों तक वायरस से संभावित महामारी को लेकर अमेरिका को तमाम चेतावनियां जारी की गईं। सीएनएन में छपी रिपोर्ट के मुताबिक 3 जनवरी को पहली बार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दैनिक ब्रीफिंग में चीन के घातक वायरस, संक्रमण की क्षमता और अमेरिका के प्रति खतरे को लेकर खुफिया विभाग से मिली जानकारी के आधार पर साझा किया। वहीं पर्दे के पीछे अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए और दूसरी जासूसी संस्थाएं चीन के भीतर उस वायरस की तह तक उतरने की कोशिश कर रही थीं जिससे चीन जूझ रहा था।
एबीसी में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक यूएस मिलिट्री के नेशनल सेंटर फॉर मेडिकल इंटेलिजेंस (NCMI) ने नवंबर माह की खुफिया रिपोर्ट इकट्ठा की थी जिसके विश्लेषण के बाद जानकारों ने ये आशंका जताई थी कि ये एक ‘प्रलयकारी घटना’ हो सकती है। सूत्रों ने एबीसी न्यूज़ को बताया कि खुफिया रिपोर्ट को कई बार डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी, पेंटागन के ज्वाइंट स्टॉफ और व्हाइट हाउस को सूचित किया गया।
इससे पहले एबीसी न्यूज ने बुधवार को बताया कि डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी की एक शाखा नेशनल सेंटर फॉर मेडिकल इंटेलिजेंस ने नवंबर में ही ये चेतावनी जारी कर दी थी कि चीन के वुहान में एक नया वायरस फैल रहा है। लेकिन एबीसी की रिपोर्ट का अमेरिकी रक्षा विभाग ने खंडन किया। पेंटागन ने रिपोर्ट को खारिज़ करते हुए कहा कि नेशनल सेंटर फॉर मेडिकल इंटेलिजेंस विशिष्ट खुफिया मामले में सार्वजनिक रूप से इस तरह टिप्पणी नहीं करता है। पेंटागन ने बुधवार देर रात एबीसी न्यूज की रिपोर्ट का खंडन करते हुए एक बयान भी जारी कर दिया।
ज्वाइंट चीफ ऑफ स्टॉफ के वाइस चैयरमैन जॉन हैटन के भी कोरोनावायरस पर नवंबर महीने की खुफिया रिपोर्ट पर सुर बदलते दिखे। उन्होंने कहा कि कोरोनावायरस पर पहली खुफिया रिपोर्ट जनवरी में उन्होंने देखी। अमेरिका में लगातार मौत के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं और कोरोनावायरस से निपटने में ट्रंप प्रशासन की तैयारियों पर कई सवाल उठ रहे हैं। सवाल ये भी उठ रहे हैं कि अगर अमेरिका के खुफिया विभाग को चीन में उभरते किसी वायरस की पुख्ता जानकारी थी तो फिर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को इसकी जानकारी कब मिली?बुधवार को राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि चीन पर अमेरिकी यात्रा पर प्रतिबंध के फैसले से कुछ पहले ही वायरस की गंभीरता और घातक संक्रमण की जानकारी हुई। अमेरिकी में चीनी उड़ानों पर प्रतिबंध 2 फरवरी से लागू हुआ। लेकिन नवंबर से लेकर फरवरी तक के दरम्यान 3 महीने तक अमेरिका क्या सिर्फ जानकारियां ही इकट्ठा करता रहा और तैयारियों पर ज़ोर नहीं दिया गया?रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रपति ट्रंप लगातार ही कोरोनावायरस के संक्रमण को रोकने में अमेरिकी प्रशासन के प्रयासों की तारीफ करते रहे और वायरस की गंभीरता को कमतर आंकते रहे। लेकिन बाद में जब अमेरिका में इस महामारी से हाहाकर मचा तो ट्रंप ने कहा कि किसी को भी इस महामारी के इस कदर घातक होने का गुमान नहीं था। लेकिन वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप और कांग्रेस जनवरी से कोरोनावायरस को लेकर मिल रहे खुफिया अलर्ट को लेकर आंख मूंदे रहे और समय रहते चीन में शुरू हुए इस संकट की गंभीरता को नहीं समझा। यहां तक कि ट्रंप ने ये तक कहा था कि अप्रैल तक वायरस अमेरिका से चला जाएगा।
वायरस के बारे में दिसंबर की शुरुआत से ही चीन के सोशल और सरकारी मीडिया पर चर्चा तेज़ चुकी थी। अज्ञात सांस की बीमारी के इलाज में आ रही मुश्किलों को लेकर खबरें आना शुरू हो गई थीं। यहां तक कि इस बीमारी की साल 2003 में चीन में शुरू हुई सार्स बीमारी के साथ तुलना भी की जाने लगी थी। इतना ही नहीं बल्कि बीजिंग ने 31 दिसंबर को विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO को अज्ञात कारण से निमोनिया के प्रकोप की आधिकारिक सूचना दी थी।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की दैनिक ब्रीफिंग की जिम्मेदारी उठाने वाले डायरेक्टर ऑफ नेशनल इंटेलिजेंस और नेशनल सिक्यूरिटी कॉन्सिल ने चीन में महामारी की शुरुआत को लेकर जारी हुई शुरुआती चेतावनियों की तारीख पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है। यहां तक कि सीआईए ने सीएनएन से बातचीत में चीन में वायरस को लेकर नवंबर की किसी खास रिपोर्ट की जानकारी से इनकार किया है।
अमेरिका के खुफिया सूत्र अब चीन में कोरोनावायरस से हुई मौत के असली आंकड़े को खंगालने में जुटा हुआ है क्योंकि अमेरिका को चीन के बताए गए आधिकारिक आंकड़ों पर भरोसा नहीं है।