News18 : Apr 25, 2020, 10:15 AM
केरल: धार्मिक पूजा विधान में कई बार कुछ ऐसी परंपराएं पड़ जाती हैं जो ऊपर से देखने में विचित्र लग सकती हैं लेकिन इनसे पुरानी मान्याताएं जुड़ी हुई होती हैं। भारत के कई इलाकों में आपको ऐसे मंदिर मिल जाएंगे जहां के पूजा विधान अटपटे लग सकते हैं। लेकिन अगर गौर करेंगे तो इनके साथ सैंकड़ों साल जुड़ी मान्यता मिलेंगी। ऐसा ही एक मंदिर केरल में माता काली का है। केरल की प्राकृतिक खूबसूरती के अलावा द्रविण शैली में बने मंदिरों की वजह से दुनियाभर के हिंदु श्रद्धालु राज्य में आते हैं।
कुरुंबा भगवती का मंदिर
केरल के कोडुंगल्लूर जिले में माता काली के स्वरूप भद्रकाली की पूजा कुरुंबा भगवती के नाम से होती है। ये जगह थ्रिसूर जिले में पड़ती है। इस मंदिर में मां भ्रद्रकाली की एक मूर्ति है जिसके आठ हाथ हैं। भद्रकाली के अलावा भी इस मंदिर में कई अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां मौजूद हैं। इनमें गणपति और वीरभद्र शामिल हैं। भद्रकाली की मूर्ति करीब 6 फीट की है। इस जगह को कनकी का निवास स्थान भी कहा जाता है। कनकी तमिल महाग्रंथ सीलापथिकारम की केंद्रीय कैरेक्टर हैं। उन्हें यहां पर भद्रकाली के अवतार के तौर पर भी देखा जाता है। माना जाता है कि ये मंदिर उन्हीं की याद में बनाया गया है। भगवान शिव इस मंदिर के क्षेत्रनाथ कहे जाते हैं और इसी वजह से भारत के शिव मंदिरों में भी इसकी विशेष गणना की जाती है।
शिव का मंदिर होने की मान्यता
इलाके की स्थानीय मान्यता के मुताबिक पहले ये भगवान शिव का मंदिर हुआ करता था। लेकिन इस जगह पर मां भद्रकाली की मूर्ति परशुराम ने स्थापित की थी। इसके बाद इस मंदिर में मां भद्रकाली की पूजा होने लगी। लोगों की मान्यता है कि बाद के समय में यह मंदिर भद्रकाली की पूजा के लिए मशहूर हो गया।
भरानी फेस्टिवलइस मंदिर में हर साल होने वाला भरानी फेस्टिवल केरल के सबसे बड़े उत्सवों में गिना जाता है। ये उत्सव सामान्य तौर पर मार्च और अप्रैल महीने में पड़ता है। इस उत्सव की शुरुआत कोझीक्कलू मूडल नाम के एक विधान के साथ शुरू होती है जिसमें मुर्गों की बलि दी जाती है। यहां मनाए जा रहे उत्सव के दौरान कोडून्गलूर के राजा विशेषरूप से हिस्सा लेते हैं। भद्राकालि वहां के राजपरिवार की संरक्षक मानी जाती हैं। राजपरिवार भी इस पूजा के में खासतौर पर कुछ विधान करता है।
वेलिचपड़ देते हैं गालियां
इसके बाद इस पूजा में कुछ महिलाएं और पुरुष शामिल होते हैं। इन्हें मलयाली भाषा में वेलिचपड़ कहा जाता है। एक तरीके से काली मां के पुजारी और उनके अनन्य भक्त होते हैं। इसमें महिलाएं काली मां की तरह ही तैयार होती हैं। फिर ये पुरुष और महिलाएं हाथ में तलवार लेकर पूजा करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान इन पर काली मां का साया होता है। इसी विधि के दौरान ये वेलिचपड़ काली मां को बुरा भला कहते हैं और गालियां भी देते हैं। विधि के मुताबिक ऐसा देवी मां को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इसके बाद अगले दिन शुद्धिकरण का विधान भी किया जाता है। इस उत्सव के अगले चरण में मां भद्रकाली कि मूर्ति पर चंदन का लेप भी किया जाता है।
कुरुंबा भगवती का मंदिर
केरल के कोडुंगल्लूर जिले में माता काली के स्वरूप भद्रकाली की पूजा कुरुंबा भगवती के नाम से होती है। ये जगह थ्रिसूर जिले में पड़ती है। इस मंदिर में मां भ्रद्रकाली की एक मूर्ति है जिसके आठ हाथ हैं। भद्रकाली के अलावा भी इस मंदिर में कई अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियां मौजूद हैं। इनमें गणपति और वीरभद्र शामिल हैं। भद्रकाली की मूर्ति करीब 6 फीट की है। इस जगह को कनकी का निवास स्थान भी कहा जाता है। कनकी तमिल महाग्रंथ सीलापथिकारम की केंद्रीय कैरेक्टर हैं। उन्हें यहां पर भद्रकाली के अवतार के तौर पर भी देखा जाता है। माना जाता है कि ये मंदिर उन्हीं की याद में बनाया गया है। भगवान शिव इस मंदिर के क्षेत्रनाथ कहे जाते हैं और इसी वजह से भारत के शिव मंदिरों में भी इसकी विशेष गणना की जाती है।
शिव का मंदिर होने की मान्यता
इलाके की स्थानीय मान्यता के मुताबिक पहले ये भगवान शिव का मंदिर हुआ करता था। लेकिन इस जगह पर मां भद्रकाली की मूर्ति परशुराम ने स्थापित की थी। इसके बाद इस मंदिर में मां भद्रकाली की पूजा होने लगी। लोगों की मान्यता है कि बाद के समय में यह मंदिर भद्रकाली की पूजा के लिए मशहूर हो गया।
भरानी फेस्टिवलइस मंदिर में हर साल होने वाला भरानी फेस्टिवल केरल के सबसे बड़े उत्सवों में गिना जाता है। ये उत्सव सामान्य तौर पर मार्च और अप्रैल महीने में पड़ता है। इस उत्सव की शुरुआत कोझीक्कलू मूडल नाम के एक विधान के साथ शुरू होती है जिसमें मुर्गों की बलि दी जाती है। यहां मनाए जा रहे उत्सव के दौरान कोडून्गलूर के राजा विशेषरूप से हिस्सा लेते हैं। भद्राकालि वहां के राजपरिवार की संरक्षक मानी जाती हैं। राजपरिवार भी इस पूजा के में खासतौर पर कुछ विधान करता है।
वेलिचपड़ देते हैं गालियां
इसके बाद इस पूजा में कुछ महिलाएं और पुरुष शामिल होते हैं। इन्हें मलयाली भाषा में वेलिचपड़ कहा जाता है। एक तरीके से काली मां के पुजारी और उनके अनन्य भक्त होते हैं। इसमें महिलाएं काली मां की तरह ही तैयार होती हैं। फिर ये पुरुष और महिलाएं हाथ में तलवार लेकर पूजा करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान इन पर काली मां का साया होता है। इसी विधि के दौरान ये वेलिचपड़ काली मां को बुरा भला कहते हैं और गालियां भी देते हैं। विधि के मुताबिक ऐसा देवी मां को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इसके बाद अगले दिन शुद्धिकरण का विधान भी किया जाता है। इस उत्सव के अगले चरण में मां भद्रकाली कि मूर्ति पर चंदन का लेप भी किया जाता है।