News18 : Apr 14, 2020, 05:28 PM
अमेरिका (USA) का चीन (China) पर आरोप लगाना और नाराज़गी ज़ाहिर करना कोई नई बात इसलिए नहीं है क्योंकि सिर्फ़ कोरोना वायरस (Corona Virus) संकट के दौर में ही नहीं, दोनों देशों के बीच उससे पहले भी रंजिश चल रही थी। लेकिन ताज़ा मामला एक बड़े आरोप और महत्वपूर्ण परिवर्तन की सुगबुगाहट के कारण चर्चित हो गया है। जानें इस बार चीन किस वजह से अमेरिका के निशाने पर है और इसके क्या अंजाम हो सकते हैं।
अमेरिका के ताज़ा गुस्से की वजह है कि चीन ने कोविड 19 (Covid 19) की उत्पत्ति को लेकर हो रही अकादमिक रिसर्चों (Research) के प्रकाशन को प्रतिबंधित कर दिया है। यही नहीं, इस मामले को बड़ा हथियार बनाते हुए अमेरिका ने एक बार फिर डब्ल्यूएचओ (World Health Organisation) और उसके प्रमुख को भी फिर आड़े हाथों लिया है। जानने लायक बात यह है कि चीन पर क्या रिसर्च सेंसर करने का आरोप सही है और हां तो अमेरिका का गुस्सा कितना सही है।
दो रिसर्च पेपर प्रकाशित हुए, फिर डिलीट
ऐसे में, जबकि दुनिया में कोविड 19 के कुल मामले 20 लाख का आंकड़ा छूने की तरफ हैं और 1 लाख से ज़्यादा मौतें हो चुकी हैं, चीन के दो विश्वविद्यालयों की वेबसाइटों ने हाल में रिसर्च पेपर प्रकाशित किए और फिर इसे डिलीट कर दिया। गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक फ्यूडान यूनिवर्सिटी और चाइना जियोसाइन्स यूनिवर्सिटी ने प्रकाशित शोध के पन्नों को वेबसाइटों से डिलीट करते हुए लिखा कि नई नीति के मुताबिक प्रकाशन से पहले रिसर्च पेपरों को अन्य मंज़ूरियों की ज़रूरत होगी।फिर अमेरिका का गुस्सा फूटा
कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के लिए लगातार चीन को ज़िम्मेदार ठहराने वाले अमेरिका ने इस खबर को गंभीरता से लेते हुए चीन की कम्युनिस्ट सरकार को ट्रंप प्रशासन ने आड़े हाथों लेते हुए कहा कि चीन सच्चाई छुपाने की कोशिश कर रहा है। वहीं, ट्रंप के सहयोगियों ने डब्ल्यूएचओ प्रमुख और अमेरिका के टॉप संक्रामक रोग विशेषज्ञ की भूमिकाओं को भी संदिग्ध करार देते हुए दोनों को बर्खास्त किए जाने तक की बात कही।क्या हो सकता है अमेरिका का रुख?
ट्रंप और उनके प्रशासन ने डब्ल्यूएचओ चीफ टेड्रोस एडहैनॉम और संक्रामक रोग विशेषज्ञ एंथनी फॉकी के खिलाफ पूरी शिद्दत से मोर्चा खोल दिया है। ट्रंप प्रशासन का आरोप है कि 'अमेरिका के लोग टैक्स चुकाते हैं, जिसकी आय से अमेरिका डब्ल्यूएचओ को हर साल 400 मिलियन डॉलर की मदद देता है, जो चीन की तुलना में दस गुना ज़्यादा है। इसके बावजूद विश्व स्वास्थ्य संगठन खुलकर चीन के बचाव में है, यह बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। साथ ही वैश्विक महामारी के लिहाज़ से संगठन बेअसर साबित हुआ है।'कुछ इसी तरह के आरोप और नाराज़गी फॉकी के खिलाफ भी व्यक्त की गई है, जबसे ट्रंप ने फॉकी के खिलाफ एक ट्वीट कर उन्हें बर्खास्त कर देने की बात उठाई।
चीन की सेंसरशिप का सच क्या है?रिसर्च पेपर के प्रकाशन को प्रतिबंधित करने के पीछे चीन के पास क्या कारण हैं? इस बारे में गार्जियन की रिपोर्ट कहती है कि लंदन स्थित चाइना इंस्टिट्यूट के डायरेक्टर स्टीव त्सांग के हवाले से लिखा है कि ऐसे समय में, लोक स्वास्थ्य और आर्थिक घाटे से भी महत्वपूर्ण नैरेटिव को नियंत्रित करना हो गया है। 'इसका मतलब यह नहीं कि लोक स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था महत्वपूर्ण नहीं हैं लेकिन प्राथमिकता पर नैरेटिव है।वैश्विक महामारी को लेकर चीन हो या अमेरिका, सारी वैश्विक शक्तियां नैरेटिव यानी आपदा की कहानी को ऐसे ढंग से वर्णित करने की कोशिश कर रही हैं कि उनके माथे पर कम से कम दोष लगे और दूसरे बड़े ज़िम्मेदार समझे जाएं। शुरूआत में ट्रंप ने महामारी पर चीन की कोशिशों की तारीफ कर दी थी, लेकिन ट्रंप के 'चीनी वायरस' बयान के बाद जब चीन के कुछ अधिकारियों ने कहा कि यह वायरस चीन में अमेरिकी सेना लेकर आई, तबसे ट्रंप ने चीन को इस वायरस के लिए पूरी तरह ज़िम्मेदार ठहराने की आक्रामक नीति अपनाई।
कितनी मुनासिब है ट्रंप की नाराज़गी?
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो टेड्रोस पर ट्रंप की नाराज़गी की वजह यह है कि जब उन्होंने चीन को निशाने पर लिया, तो टेड्रोस ने साथ नहीं दिया बल्कि चीन का पक्ष लिया। टेड्रोस ने कहा था कि वैश्विक महामारी के संकट पर राजनीति नहीं की जाना चाहिए। टेड्रोस तभी से ट्रंप के आंखों की किरकिरी बन चुके हैं। दूसरी तरफ, फॉकी ने बयान दिया था कि समय रहते और शुरूआत में ही अमेरिकी प्रशासन को ज़रूरी कदम न उठाना महंगा पड़ा। ऐसे बयान के बाद ट्रंप ने फॉकी की बर्खास्तगी को लेकर भी मुहिम छेड़ दी।पिछले करीब डेढ़-दो साल से चीन और अमेरिका के बीच ट्रेड वॉर जारी था। ट्रेड वॉर के चरम पर होने के समय यह वायरस जनित आपदा का दौर आया। ऐसे में, अमेरिका के हाथ बड़ा हथियार लग गया है कि वह चीन पर लगातार हमले कर सकता है क्योंकि इस महामारी की शुरूआत ज़ाहिर तौर पर चीन से हुई। रही बात कि यह वायरस चीन में ही जन्मा या किसी और तरह से चीन पहुंचा, इसका जवाब उलझा हुआ है क्योंकि दोनों पक्षों के पास अपनी थ्योरीज़ और स्टडीज़ हैं। बहरहाल, जल्द ही अमेरिका का गुस्सा कोई बड़ी खबर ला सकता है।
अमेरिका के ताज़ा गुस्से की वजह है कि चीन ने कोविड 19 (Covid 19) की उत्पत्ति को लेकर हो रही अकादमिक रिसर्चों (Research) के प्रकाशन को प्रतिबंधित कर दिया है। यही नहीं, इस मामले को बड़ा हथियार बनाते हुए अमेरिका ने एक बार फिर डब्ल्यूएचओ (World Health Organisation) और उसके प्रमुख को भी फिर आड़े हाथों लिया है। जानने लायक बात यह है कि चीन पर क्या रिसर्च सेंसर करने का आरोप सही है और हां तो अमेरिका का गुस्सा कितना सही है।
दो रिसर्च पेपर प्रकाशित हुए, फिर डिलीट
ऐसे में, जबकि दुनिया में कोविड 19 के कुल मामले 20 लाख का आंकड़ा छूने की तरफ हैं और 1 लाख से ज़्यादा मौतें हो चुकी हैं, चीन के दो विश्वविद्यालयों की वेबसाइटों ने हाल में रिसर्च पेपर प्रकाशित किए और फिर इसे डिलीट कर दिया। गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक फ्यूडान यूनिवर्सिटी और चाइना जियोसाइन्स यूनिवर्सिटी ने प्रकाशित शोध के पन्नों को वेबसाइटों से डिलीट करते हुए लिखा कि नई नीति के मुताबिक प्रकाशन से पहले रिसर्च पेपरों को अन्य मंज़ूरियों की ज़रूरत होगी।फिर अमेरिका का गुस्सा फूटा
कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के लिए लगातार चीन को ज़िम्मेदार ठहराने वाले अमेरिका ने इस खबर को गंभीरता से लेते हुए चीन की कम्युनिस्ट सरकार को ट्रंप प्रशासन ने आड़े हाथों लेते हुए कहा कि चीन सच्चाई छुपाने की कोशिश कर रहा है। वहीं, ट्रंप के सहयोगियों ने डब्ल्यूएचओ प्रमुख और अमेरिका के टॉप संक्रामक रोग विशेषज्ञ की भूमिकाओं को भी संदिग्ध करार देते हुए दोनों को बर्खास्त किए जाने तक की बात कही।क्या हो सकता है अमेरिका का रुख?
ट्रंप और उनके प्रशासन ने डब्ल्यूएचओ चीफ टेड्रोस एडहैनॉम और संक्रामक रोग विशेषज्ञ एंथनी फॉकी के खिलाफ पूरी शिद्दत से मोर्चा खोल दिया है। ट्रंप प्रशासन का आरोप है कि 'अमेरिका के लोग टैक्स चुकाते हैं, जिसकी आय से अमेरिका डब्ल्यूएचओ को हर साल 400 मिलियन डॉलर की मदद देता है, जो चीन की तुलना में दस गुना ज़्यादा है। इसके बावजूद विश्व स्वास्थ्य संगठन खुलकर चीन के बचाव में है, यह बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। साथ ही वैश्विक महामारी के लिहाज़ से संगठन बेअसर साबित हुआ है।'कुछ इसी तरह के आरोप और नाराज़गी फॉकी के खिलाफ भी व्यक्त की गई है, जबसे ट्रंप ने फॉकी के खिलाफ एक ट्वीट कर उन्हें बर्खास्त कर देने की बात उठाई।
चीन की सेंसरशिप का सच क्या है?रिसर्च पेपर के प्रकाशन को प्रतिबंधित करने के पीछे चीन के पास क्या कारण हैं? इस बारे में गार्जियन की रिपोर्ट कहती है कि लंदन स्थित चाइना इंस्टिट्यूट के डायरेक्टर स्टीव त्सांग के हवाले से लिखा है कि ऐसे समय में, लोक स्वास्थ्य और आर्थिक घाटे से भी महत्वपूर्ण नैरेटिव को नियंत्रित करना हो गया है। 'इसका मतलब यह नहीं कि लोक स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था महत्वपूर्ण नहीं हैं लेकिन प्राथमिकता पर नैरेटिव है।वैश्विक महामारी को लेकर चीन हो या अमेरिका, सारी वैश्विक शक्तियां नैरेटिव यानी आपदा की कहानी को ऐसे ढंग से वर्णित करने की कोशिश कर रही हैं कि उनके माथे पर कम से कम दोष लगे और दूसरे बड़े ज़िम्मेदार समझे जाएं। शुरूआत में ट्रंप ने महामारी पर चीन की कोशिशों की तारीफ कर दी थी, लेकिन ट्रंप के 'चीनी वायरस' बयान के बाद जब चीन के कुछ अधिकारियों ने कहा कि यह वायरस चीन में अमेरिकी सेना लेकर आई, तबसे ट्रंप ने चीन को इस वायरस के लिए पूरी तरह ज़िम्मेदार ठहराने की आक्रामक नीति अपनाई।
कितनी मुनासिब है ट्रंप की नाराज़गी?
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो टेड्रोस पर ट्रंप की नाराज़गी की वजह यह है कि जब उन्होंने चीन को निशाने पर लिया, तो टेड्रोस ने साथ नहीं दिया बल्कि चीन का पक्ष लिया। टेड्रोस ने कहा था कि वैश्विक महामारी के संकट पर राजनीति नहीं की जाना चाहिए। टेड्रोस तभी से ट्रंप के आंखों की किरकिरी बन चुके हैं। दूसरी तरफ, फॉकी ने बयान दिया था कि समय रहते और शुरूआत में ही अमेरिकी प्रशासन को ज़रूरी कदम न उठाना महंगा पड़ा। ऐसे बयान के बाद ट्रंप ने फॉकी की बर्खास्तगी को लेकर भी मुहिम छेड़ दी।पिछले करीब डेढ़-दो साल से चीन और अमेरिका के बीच ट्रेड वॉर जारी था। ट्रेड वॉर के चरम पर होने के समय यह वायरस जनित आपदा का दौर आया। ऐसे में, अमेरिका के हाथ बड़ा हथियार लग गया है कि वह चीन पर लगातार हमले कर सकता है क्योंकि इस महामारी की शुरूआत ज़ाहिर तौर पर चीन से हुई। रही बात कि यह वायरस चीन में ही जन्मा या किसी और तरह से चीन पहुंचा, इसका जवाब उलझा हुआ है क्योंकि दोनों पक्षों के पास अपनी थ्योरीज़ और स्टडीज़ हैं। बहरहाल, जल्द ही अमेरिका का गुस्सा कोई बड़ी खबर ला सकता है।