Coronavirus / कोरोना वायरस से लड़ने में पाकिस्तान का मददगार बना इस्लामी क़ानून

पिछले दो हफ़्तों से पाकिस्तान के कराची शहर में किराने की दुकानों के बाहर एक चौंकाने वाला मंज़र देखने को मिल रहा है। दुकानों से सामान ख़रीदने के बाद ख़रीदार घर की ओर नहीं भागते। कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के बावजूद, उन्हें घर जाने की जल्दी नहीं होती। बल्कि, बहुत से पाकिस्तानी इन दुकानों के बाहर ठहरते हैं। और ऐसे लोगों की मदद करते हैं, जिनके पास न रहने का ठिकाना है और न खाने का कोई जुगाड़।

BBC : Apr 02, 2020, 02:32 PM
पाकिस्तान | पिछले दो हफ़्तों से पाकिस्तान के कराची शहर में किराने की दुकानों के बाहर एक चौंकाने वाला मंज़र देखने को मिल रहा है। दुकानों से सामान ख़रीदने के बाद ख़रीदार घर की ओर नहीं भागते। कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के बावजूद, उन्हें घर जाने की जल्दी नहीं होती। बल्कि, बहुत से पाकिस्तानी इन दुकानों के बाहर ठहरते हैं। और ऐसे लोगों की मदद करते हैं, जिनके पास न रहने का ठिकाना है और न खाने का कोई जुगाड़।

ये ख़रीदार, इन मज़लूमों, ग़ुरबत के मारों को खाना, पैसा और दूसरी चीज़ें ख़ैरात में देते हैं। इस दरियादिली के बाद, दान देने वाले अक्सर ग़रीबों से गुज़ारिश करते हैं कि, "दुआ करो कि ये अज़ाब जल्द ख़त्म हो जाए।" दुनिया के दूसरे मुल्कों की तरह, कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी का प्रकोप थामने के लिए पाकिस्तान में भी कई तरह की सख़्त पाबंदियां लगा दी गई हैं।

पाकिस्तान में स्कूल बंद कर दिए गए हैं। सार्वजनिक कार्यक्रमों में जुटने पर रोक लगा दी गई है। और किराने और दवा की दुकानों के सिवा बाक़ी हर तरह के कारोबार को भी बंद कर दिया गया है। लेकिन, अन्य देशों के मुक़ाबले, पाकिस्तान में ऐसी तालाबंदी बहुत से लोगों के लिए तबाही का पैग़ाम ले आई है। इसके बड़े घातक नतीजे सामने आ सकते हैं। हाल ही में कोरोना वायरस की महामारी को लेकर अपने मुल्क के लोगों से वाबस्ता, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने कहा कि, 'पाकिस्तान की एक चौथाई आबादी, को खाने के लिए दो जून की रोटी मयस्सर नहीं है।'

अब जबकि पाकिस्तान की हुकूमत लॉकडाउन के लिए और सख़्त नियम लागू कर रही है। ताकि, ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को घर में ही रोका जा सके। तो, पाकिस्तान में रोज़ कमाने-खाने वाले बहुत से लोगों ने पिछले कई हफ़्तों से एक पाई की भी कमाई नहीं की है। इनमें जूते पॉलिश करने वाले भी हैं और दिहाड़ी मज़दूर भी। सब्ज़ी का ठेला लगाने वाले भी हैं और खाने-पीने के सामान बेचने वाले भी। कमाई न होने की वजह से ये लोग और इनका परिवार, भूखे रहने को मजबूर हैं।

राष्ट्र के नाम अपने उसी संदेश में इमरान ख़ान ने पाकिस्तान के बेहद बुरे हाल को इस तरह बयां किया था, "अगर हम शहरों में तालाबंदी कर देंगे…तो हम एक तरफ़ तो उन लोगों को कोरोना वायरस से बचा लेंगे। मगर, दूसरी तरफ़ बहुत से लोग भूख से मर जाएंगे…पाकिस्तान के वो हालात नहीं हैं, जो अमरीका या यूरोप के हैं। हमारे देश में भयंकर ग़रीबी है।"

लेकिन, एक उम्मीद भी है

कोरोना वायरस की महामारी के दौरान, पाकिस्तान के लोग एक दूसरे से मिलकर, ऐसे बहुत से बदक़िस्मत लोगों की मदद कर रहे हैं, जिनकी रोज़ी इस लॉकडाउन के दौरान छिन गई है। और इस मदद का एक ख़ास तरीक़ा है, जो हौसला बढ़ाता है। बाक़ी पाकिस्तानियों का भी और दुनिया के दूसरे मुल्कों के शहरियों का भी।

पाकिस्तान में बहुत से लोग इस मुश्किल वक़्त में ग़रीबों को ज़कात दे रहे हैं। ज़कात, मुस्लिम संस्कृति का एक धार्मिक कर है। जिसे आज पाकिस्तान में उन दिहाड़ी मज़दूरों और छोटे-मोटे काम करके ज़िंदगी बसर करने वालों को दिया जा रहा है। इससे उन ग़रीबों की काफ़ी मदद हो रही है, जिनके पास छुट्टियों के दौरान आमदनी का ज़रिया नहीं है। सेहत का बीमा नहीं और सामाजिक सुरक्षा का घेरा नहीं है।

ज़कात, अरबी ज़बान का शब्द है। जिसका मतलब है- वो जो शुद्ध करता है। और, इस्लाम के मानने वालों पर जो पांच फ़र्ज़ हैं, उनमें से मुसलमानों पर ये सबसे अहम मज़हबी फ़र्ज़ माना जाता है।

ख़ैरात बांटने का इसका फॉर्मूला ये है कि किसी मुस्लिम की सालाना ज़रूरत से अधिक आमदनी का ढाई फ़ीसद उसे ज़कात में देना होता है। इस फ़र्ज़ की पाबंदियां या निसाब तय करने के नियम बहुत सख़्त हैं। साथ ही साथ ज़कात किसे दी जाए। उसका वाजिब हक़दार कौन है, इसके भी दायरे तय हैं।

ज़कात की अवधारणा, इस्लाम की उस सोच से उपजती है जिसमें ये माना जाता है कि दुनिया की हर नेमत अस्थायी है। और ये इसे बनाने वाले यानी अल्लाह की नेमत है। ऐसे में इस्लाम में माना ये जाता है कि जिन लोगों की क़िस्मत बहुत अच्छी नहीं है। और जो अल्लाह की बहुत सी नेमतों से महरूम हैं, उनका भी हक़ इन चीज़ों पर बनता है। तो जिसके पास ये नेमते हैं, वो ग़रीबों से भी अपनी संपत्ति साझा करे।

कोरोना वायरस के इस प्रकोप के दौरान, दुनिया में तमाम लोग निजी तौर पर शारीरिक साफ़-सफ़ाई पर ज़्यादा ध्यान दे रहे हैं। लेकिन, पाकिस्तान के जीव वैज्ञानिक डॉक्टर इम्तियाज़ अहमद ख़ान, ज़कात को आत्मा के शुद्धिकरण का तरीक़ा मानते हैं।

कराची की हमदर्द यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले, डॉक्टर इम्तियाज़ कहते हैं कि, 'पैसा तो हाथ का मैल है।' यानी अगर आप दान देते हैं, तो असल में आप अपनी संपत्ति की गंदगी दूर करते हैं। डॉक्टर इम्तियाज़ कहते हैं कि, "ज़कात आपकी दौलत की ख़राबी को ख़त्म कर देती है। अब अगर मेरा कोई पड़ोसी भूखे पेट सोता है, तो इसके लिए मैं ही ज़िम्मेदार हूं। जब मेरे पड़ोसी को इसकी ज़रूरत है, तो मैं अपने घर में ज़रूरत से ज़्यादा सामान की जमाख़ोरी कैसे कर सकता हूं?"

ये दरियादिली, पाकिस्तान के लोगों के डीएनए में गहरे पैबस्त है। सच तो ये है कि दुनिया के 47 मुस्लिम बहुल देशों में ज़कात आमतौर पर स्वैच्छिक है। यानी आपकी मर्ज़ी है, आप दें न दें। लेकिन, पाकिस्तान दुनिया के उन छह देशों में से एक है जहां ज़कात देना क़ानूनन ज़रूरी है और ये टैक्स यहां सरकार वसूलती है।

इसके अलावा, ऑक्सफोर्ड एनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ द इस्लामिक वर्ल्ड के लेखक, रिज़वान हुसैन कहते हैं कि, "पाकिस्तान दुनिया का इकलौता ऐसा मुल्क है, जिसे इस्लाम के नाम पर तामीर किया गया था। और इसका ये मज़हबी अक़ीदा, पाकिस्तान के क़ानूनों में भी झलकता है।"

भारत इस मामले में पाकिस्तान से पीछे?

स्टैनफ़ोर्ड सोशल इनोवेशन रिव्यू की एक रिपोर्ट कहती है कि, पाकिस्तान की कुल जीडीपी का एक फ़ीसद से ज़्यादा हिस्सा दान धर्म से ही आता है। इतनी रक़म दान करके पाकिस्तान, ख़ुद को ब्रिटेन (1।3 फ़ीसद) और कनाडा (1।2 फ़ीसद) जैसे देशों में शुमार करा लेता है। जबकि, पाकिस्तान के पड़ोसी देश, भारत की कुल जीडीपी में दान से आमदनी का हिस्सा इसका आधा ही है।

यही नहीं, पाकिस्तान में हुए एक सर्वे के मुताबिक़ 98 फ़ीसद पाकिस्तानी नागरिक या तो ख़ैरात देते हैं या मुफ़्त में किसी के लिए काम करते हैं। ये ऐसा आंकड़ा है, जो क़ानूनी तौर पर ज़कात देने के लायक़ लोगों की असल संख्या से बहुत ज़्यादा है।

ब्रिटेन के लोबोरो में रहने वाले, पाकिस्तानी मूल के एम। सोहैल ख़ान कहते हैं, "एक मुल्क के तौर पर हमारे पास भले ही बहुत कुछ न हो, पर हमारे पास बड़ा दिल है। आप पाकिस्तान के किसी भी गांव में चले जाएं। और लोग अपने घरों के दरवाज़े आपके स्वागत में खोल देंगे। अपने ऊपर दूसरों को तरज़ीह देना हमारी तहज़ीब का अटूट हिस्सा है। हमने बड़े अज़ाब झेले हैं। हम संवेदनशील हैं, हमदर्दी रखते हैं। बल्कि मैं तो ये कहूंगा कि हमारे अंदर ये जज़्बात कुछ ज़्यादा ही हैं। और अगर लोगों को ये समझाना है कि सोशल डिस्टेंसिंग का मतलब अपने पड़ोसी को उसके हाल पर छोड़ना है, तो साहब इसके लिए पूरे मुल्क में बाक़ायदा एक बड़ा जागरूकता अभियान छेड़ना पड़ जाएगा।"

जैसे-जैसे पाकिस्तान में कोरोना वायरस का प्रकोप फैल रहा है, लॉकडाउन सख़्त हो रहा है। वैसे-वैसे पाकिस्तान के लोग ढाई फ़ीसद फ़र्ज़ से कहीं ज़्यादा ज़कात दे रहे हैं। वहीं, जो लोग कम पैसे कमाते हैं और जिन पर ज़कात क़ानूनन फ़र्ज़ नहीं है, वो भी अपनी हैसियत के हिसाब से जो कुछ बन पड़ता है, दान कर रहे हैं। और कम से कम अब तक तो इस दान की पाई-पाई ज़रूरतमंदों को बिल्कुल सधे तरीक़े से पहुंचाई जा रही है।

दान में मिलने वाली ऐसी ज़्यादातर रक़म, लोगों को राशन मुहैया कराने में ख़र्च की जा रही है। दिहाड़ी मज़दूरों और अन्य ग़रीबों को उनका महीने का खाना-ख़र्चा उपलब्ध कराया जा रहा है। उन्हें ज़िंदगी की बुनियादी ज़रूरतें, जैसे कि-दाल, घी, आटा, तेल, चीनी और चाय दी जा रही है। आम तौर पर ये सब ख़ैरात, रमज़ान के महीने में बांटी जाती है। लेकिन, चूंकि अभी रोज़ कमाने खाने वालों पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा है, तो लोग इसी समय ज़कात समझ कर लोगों की मदद कर रहे हैं। आज कल दान दिए जाने वाले सामान में कीटनाशक साबुन भी शामिल होता है।

फैसल बुख़ारी, शहर की ग़रीब बस्तियों में काफ़ी दिनों से राशन पहुंचाने जा रहे हैं। क्योंकि वहां रहने वाले मज़दूरों को मदद की सख़्त ज़रूरत है फ़ैसल कहते हैं कि, "इस हफ़्ते बड़ी तादाद में लोगों ने दान दिया। मुझे हर रोज़ दान देने के तरीक़े का पता लगाने के 20 से 25 फ़ोन रोज़ आ रहे हैं। कई रोज़ तो इससे भी ज़्यादा फ़ोन आते हैं।"