News18 : Sep 20, 2020, 03:32 PM
नई दिल्ली। दिल्ली के अजूबे के नाम से मशहूर बुराड़ी के संतनगर स्थित राजधानी का सबसे छोटा मकान तो आपको याद ही होगा। मात्र छह गज जमीन में बने इस तीन मंजिला मकान को देखकर अच्छे अच्छे आर्किटेक्ट और बिल्डरों ने दांतों तले उंगली दबा ली थी। काफी समय से इसमें पूरा का पूरा एक परिवार रह रहा है। देश में फैले कोरोना के बाद जहां लोग दिल्ली और अन्य शहरों के किराए के मकानों को छोड़-छोड़कर अपने गांव चले गए। वहीं इस सबसे छोटे घर में किराए पर रहने वाला परिवार कोरोना-लॉकडाउन से लेकर अभी तक वहीं रह रहा है। ऐसे में कोरोना के प्रकोप के बीच लॉकडाउन में घर में बंद रहने का कैसा अनुभव रहा और सोशल डिस्टेंसिंग के आदेशों के बीच इन लोगों ने कैसे छह गज के मकान में एक मीटर की दूरी का पालन किया यह जानना काफी दिलचस्प है।
इस सबसे छोटे घर में किराए पर रहने वाली पिंकी ने न्यूज 18 से बातचीत की। उन्होंने कोरोना के कहर के बीच हुए लॉकडाउन और फिर अनलॉक में दिन काटने को लेकर बेहद मजेदार बातें बताईं। पिंकी ने बताया कि वे लोग लखनऊ के एक गांव के रहने वाले हैं। दिल्ली के इस मकान में पिछले दो साल से रह रहे हैं। उनके पति संजय सिंह गुरुग्राम की एक कंपनी में ड्राइवर का काम करते थे लेकिन लॉकडाउन तो 24 मार्च को लगा था लेकिन कंपनी 21 को ही बंद हो गई और पति का काम छूट गया। जब तक वे कुछ समझ पाते, लॉकडाउन की घोषणा हो गई।पिंकी बताती हैं, ‘24 मार्च से मैं, दोनों बेटे और पति घर पर ही थे। लॉकडाउन लग चुका था।हमें बहुत अंदाजा भी नहीं था कि सब बंद हो जाएगा। एक-दो हफ्ते तक ऐसे रहे जैसे छुट्टियां चल रही हैं लेकिन फिर हालात खराब होने लगे तो गांव जाने के लिए सोचा। लेकिन तब पता चला कि सब ट्रेनें और बसें पूरी तरह बंद हो गई हैं। जाने का कोई साधन नहीं था। फिर इसी घर में रुकना ही था। बच्चों को बाहर जाने से मना कर दिया गया था।बड़ा बेटा 19 साल का है, छोटा 11 साल का। दोनों बेटे बाहर जाने के लिए परेशान होते थे लेकिन क्या करें बीमारी का डर था तो इसी छह गह के बैडरूम में रहना पड़ता था। मेरा ज्यादातर समय रसोई में गुजरने लगा। बच्चों के स्कूल भी बंद हो गए। अब घर के उस सिंगल बैड वाले कमरे में बैठकर ही बच्चों को ऑनलाइन क्लास लेनी होती थी, उसी के एक कोने में मैं और मेरे पति बैठे रहते थे। जब बच्चों की क्लास बंद होती तो टीवी चलाते।’घर बेहद छोटा, कूलर, एसी कुछ नहीं, ऐसे कटी गर्मियां
पिंकी ने आगे बताया, ‘सबसे नीचे लैट्रिन और बाथरूम हैं, उससे ऊपर बैडरूम, उससे ऊपर रसोई और उससे ऊपर छत। बैडरूम और छत पर ही बच्चे रह सकते हैं। लेकिन छत पर भी हमने गमले लगा रखे हैं तो आधी जगह उन्होंने घेर रखी है, वहीं एक शौचालय भी है तो पूरी छत पर चारों लोगों के एक साथ बैठने की भी जगह नहीं है। कमरे में सिर्फ एक पंखा है। लॉकडाउन में खाने के लिए भी पैसे चाहिए थे तो एसी और कूलर की व्यवस्था कहां से हो पाती। मार्च तो कट गया लेकिन अप्रैल आते ही गर्मी बढ़ी और घर में 24 घंटे चार लोगों के एक छोटे से कमरे में बंद रहने पर परेशानी बढ़ गई। घर बहुत छोटा है तो मई जून में घुटन जैसी स्थिति हो गई। बाहर जा नहीं सकते थे, इसलिए बच्चे और भी परेशान होने लगे। हालांकि और कोई उपाय भी नहीं था तो ऐसे ही सारी गर्मियां काटीं। हम लोग घर का काम करते, टीवी देखते, लेटे रहते, बैठे रहते, बच्चे अपनी पढ़ाई में लगे रहते, वहीं बैठकर खेल लेते। परेशानी तो बहुत हुई।’
ऊपर से नीचे चक्कर काटने में होता था दिमाग खराबपिंकी बताती हैं, ‘लॉकडाउन में सभी के घर पर रहने के कारण मेरा समय रसोई में ही बीतता था। न खेलने की जगह, न कोई काम ऐसे में बच्चों और पति की ओर से बस कुछ न कुछ खाने के लिए सिफारिश आती रहती थी। किसी को एक गिलास पानी देना होता था तो सीढ़ी उतर कर आना होता था। बच्चे ऊपर हैं तो ऊपर चढ़कर जाओ। सामान लेना है तो दो मंजिल नीचे उतरो। बच्चे भी इससे काफी परेशान हुए। पिछले साल भी जब लोग इसे देखने आते थे तो कहते थे, दिक्कत है तो मकान बदल लो।’
मकान बदलने पर भी हैं कई संकट, इसलिए नहीं बदलापिंकी बताती हैं कि इसमें किसी और किराएदार या मकान मालिक का झंझट नहीं है। कोई लड़ने-झगड़ने वाला नहीं है। जबकि कई किराएदारों के रहने पर ऐसे झगड़े अक्सर होते हैं। वे कहती हैं कि गाड़ी चलाकर उनके पति देर रात घर आते हैं। कभी कभी तो 12 बजते हैं। वहीं बच्चे भी स्कूल जाते हैं और वह घर में पूरे दिन अकेली होती हैं। अगर कहीं और घर लेती तो वहां और भी किराएदार रहते तो उनके साथ लड़ाई झगड़े जैसी चीजें सामने आतीं। देर सबेर आने पर लड़ाई होती। उससे तो अच्छा है यहां अकेले रहो। इसलिए मकान बदलने का फैसला नहीं किया।
किराया माफ करने की मांग की थी लेकिन।।।पिंकी कहती हैं, इस मकान का किराया 3500 रुपये जाता है। लॉकडाउन शुरू होने से पहले ही पति की नौकरी छूट गई थी। घर का खर्च ही जैसे तैसे चल रहा था। इस दौरान खबर आई कि किराए माफ हो रहे हैं तो हमने भी किराया माफ करने के लिए मकान मालिक से मांग की लेकिन उन्होंने नहीं किया। हमें हर महीने का पूरा किराया देना पड़ा।
छह गज के मकान में कैसे किया सोशल डिस्टेंसिंग का पालन सोशल डिस्टेंसिंग के नाम पर पिंकी हंसते हुए बताती हैं कि यह पूछना चुटकुले से कम नहीं है। सब घर के सदस्यों के बीच भी एक मीटर दूरी की बात कह रहे थे, हमारे तो पूरे घर में ही कुल एक मीटर की जगह थी। मुझे आसपास मुहल्ले और बाजार में भी लोग जानते हैं। जब मैं सामान लेने जाती थी और वहां सोशल डिस्टेंसिंग के गोले और रस्सियां लगी देखती थी तो कहती थी कि यहीं करवा लो पूरी सोशल डिस्टेंसिंग। इस पर दुकानदार भी हंसते थे और पूछते थे कि भाभीजी आपके छह गज के घर में सब एक मीटर की दूरी बरत रहे हैं या नहीं। उस वक्त यह सुनकर बस हंसी आती थी। पिंकी कहती हैं कि कोई इसे अजूबा कहे या कुछ भी कहे पर इस घर में रहना उन्हें अच्छा लगता है और अब तो उन्हें इसकी आदत भी हो गई है।
इस सबसे छोटे घर में किराए पर रहने वाली पिंकी ने न्यूज 18 से बातचीत की। उन्होंने कोरोना के कहर के बीच हुए लॉकडाउन और फिर अनलॉक में दिन काटने को लेकर बेहद मजेदार बातें बताईं। पिंकी ने बताया कि वे लोग लखनऊ के एक गांव के रहने वाले हैं। दिल्ली के इस मकान में पिछले दो साल से रह रहे हैं। उनके पति संजय सिंह गुरुग्राम की एक कंपनी में ड्राइवर का काम करते थे लेकिन लॉकडाउन तो 24 मार्च को लगा था लेकिन कंपनी 21 को ही बंद हो गई और पति का काम छूट गया। जब तक वे कुछ समझ पाते, लॉकडाउन की घोषणा हो गई।पिंकी बताती हैं, ‘24 मार्च से मैं, दोनों बेटे और पति घर पर ही थे। लॉकडाउन लग चुका था।हमें बहुत अंदाजा भी नहीं था कि सब बंद हो जाएगा। एक-दो हफ्ते तक ऐसे रहे जैसे छुट्टियां चल रही हैं लेकिन फिर हालात खराब होने लगे तो गांव जाने के लिए सोचा। लेकिन तब पता चला कि सब ट्रेनें और बसें पूरी तरह बंद हो गई हैं। जाने का कोई साधन नहीं था। फिर इसी घर में रुकना ही था। बच्चों को बाहर जाने से मना कर दिया गया था।बड़ा बेटा 19 साल का है, छोटा 11 साल का। दोनों बेटे बाहर जाने के लिए परेशान होते थे लेकिन क्या करें बीमारी का डर था तो इसी छह गह के बैडरूम में रहना पड़ता था। मेरा ज्यादातर समय रसोई में गुजरने लगा। बच्चों के स्कूल भी बंद हो गए। अब घर के उस सिंगल बैड वाले कमरे में बैठकर ही बच्चों को ऑनलाइन क्लास लेनी होती थी, उसी के एक कोने में मैं और मेरे पति बैठे रहते थे। जब बच्चों की क्लास बंद होती तो टीवी चलाते।’घर बेहद छोटा, कूलर, एसी कुछ नहीं, ऐसे कटी गर्मियां
पिंकी ने आगे बताया, ‘सबसे नीचे लैट्रिन और बाथरूम हैं, उससे ऊपर बैडरूम, उससे ऊपर रसोई और उससे ऊपर छत। बैडरूम और छत पर ही बच्चे रह सकते हैं। लेकिन छत पर भी हमने गमले लगा रखे हैं तो आधी जगह उन्होंने घेर रखी है, वहीं एक शौचालय भी है तो पूरी छत पर चारों लोगों के एक साथ बैठने की भी जगह नहीं है। कमरे में सिर्फ एक पंखा है। लॉकडाउन में खाने के लिए भी पैसे चाहिए थे तो एसी और कूलर की व्यवस्था कहां से हो पाती। मार्च तो कट गया लेकिन अप्रैल आते ही गर्मी बढ़ी और घर में 24 घंटे चार लोगों के एक छोटे से कमरे में बंद रहने पर परेशानी बढ़ गई। घर बहुत छोटा है तो मई जून में घुटन जैसी स्थिति हो गई। बाहर जा नहीं सकते थे, इसलिए बच्चे और भी परेशान होने लगे। हालांकि और कोई उपाय भी नहीं था तो ऐसे ही सारी गर्मियां काटीं। हम लोग घर का काम करते, टीवी देखते, लेटे रहते, बैठे रहते, बच्चे अपनी पढ़ाई में लगे रहते, वहीं बैठकर खेल लेते। परेशानी तो बहुत हुई।’
ऊपर से नीचे चक्कर काटने में होता था दिमाग खराबपिंकी बताती हैं, ‘लॉकडाउन में सभी के घर पर रहने के कारण मेरा समय रसोई में ही बीतता था। न खेलने की जगह, न कोई काम ऐसे में बच्चों और पति की ओर से बस कुछ न कुछ खाने के लिए सिफारिश आती रहती थी। किसी को एक गिलास पानी देना होता था तो सीढ़ी उतर कर आना होता था। बच्चे ऊपर हैं तो ऊपर चढ़कर जाओ। सामान लेना है तो दो मंजिल नीचे उतरो। बच्चे भी इससे काफी परेशान हुए। पिछले साल भी जब लोग इसे देखने आते थे तो कहते थे, दिक्कत है तो मकान बदल लो।’
मकान बदलने पर भी हैं कई संकट, इसलिए नहीं बदलापिंकी बताती हैं कि इसमें किसी और किराएदार या मकान मालिक का झंझट नहीं है। कोई लड़ने-झगड़ने वाला नहीं है। जबकि कई किराएदारों के रहने पर ऐसे झगड़े अक्सर होते हैं। वे कहती हैं कि गाड़ी चलाकर उनके पति देर रात घर आते हैं। कभी कभी तो 12 बजते हैं। वहीं बच्चे भी स्कूल जाते हैं और वह घर में पूरे दिन अकेली होती हैं। अगर कहीं और घर लेती तो वहां और भी किराएदार रहते तो उनके साथ लड़ाई झगड़े जैसी चीजें सामने आतीं। देर सबेर आने पर लड़ाई होती। उससे तो अच्छा है यहां अकेले रहो। इसलिए मकान बदलने का फैसला नहीं किया।
किराया माफ करने की मांग की थी लेकिन।।।पिंकी कहती हैं, इस मकान का किराया 3500 रुपये जाता है। लॉकडाउन शुरू होने से पहले ही पति की नौकरी छूट गई थी। घर का खर्च ही जैसे तैसे चल रहा था। इस दौरान खबर आई कि किराए माफ हो रहे हैं तो हमने भी किराया माफ करने के लिए मकान मालिक से मांग की लेकिन उन्होंने नहीं किया। हमें हर महीने का पूरा किराया देना पड़ा।
छह गज के मकान में कैसे किया सोशल डिस्टेंसिंग का पालन सोशल डिस्टेंसिंग के नाम पर पिंकी हंसते हुए बताती हैं कि यह पूछना चुटकुले से कम नहीं है। सब घर के सदस्यों के बीच भी एक मीटर दूरी की बात कह रहे थे, हमारे तो पूरे घर में ही कुल एक मीटर की जगह थी। मुझे आसपास मुहल्ले और बाजार में भी लोग जानते हैं। जब मैं सामान लेने जाती थी और वहां सोशल डिस्टेंसिंग के गोले और रस्सियां लगी देखती थी तो कहती थी कि यहीं करवा लो पूरी सोशल डिस्टेंसिंग। इस पर दुकानदार भी हंसते थे और पूछते थे कि भाभीजी आपके छह गज के घर में सब एक मीटर की दूरी बरत रहे हैं या नहीं। उस वक्त यह सुनकर बस हंसी आती थी। पिंकी कहती हैं कि कोई इसे अजूबा कहे या कुछ भी कहे पर इस घर में रहना उन्हें अच्छा लगता है और अब तो उन्हें इसकी आदत भी हो गई है।