AMAR UJALA : Apr 09, 2020, 02:08 PM
पंजाब: कोरोना के भय से इंसान इतना असंवेदनशील हो गया है कि रिश्ते तार-तार होने लगे हैं। एक बेटा अपनी मां से रिश्ता ही भूल गया। उसकी 75 वर्षीय मां की स्वाभाविक मौत हुई, लेकिन उसने यह कहते हुए शव लेने से इनकार कर दिया कि कहीं मां की मौत कोरोना से तो नहीं हुई। यह मामला पंजाब के कपूरथला जिले में आरसीएफ के पास स्थित झोपड़ियों में सामने आया।
मामला जिला प्रशासन के ध्यान में आया तो तहसीलदार मनवीर सिंह ढिल्लो, पटवारी सरबजीत सिंह के साथ युवक को समझाने पहुंचे। सेहत विभाग की टीम ने मृतका के बेटे की काउंसलिंग की और मां का अंतिम संस्कार करने के लिए रजामंद किया। फिर किसी तरह शव को श्मशान घाट पहुंचाकर दाह संस्कार करवाया गया। इस प्रक्रिया में हुआ खर्चा मौजूद अफसरों ने ही किया।ये है पूरा मामलाबेबे नानकी रोड स्थित आरसीएफ के समीप झुग्गी-झोपड़ी में रामू नाम का युवक रहता है। कर्फ्यू से दो दिन पहले मुक्तसर के गांव वड़िंग से उसकी बुजुर्ग मां मंगली देवी आकर रहने लगी। यहां अचानक उसकी मौत हो गई, लेकिन बेटा अंतिम संस्कार करने की बजाय शव और अपने परिवार को छोड़कर इधर-उधर हो गया। रिश्तेदार ने भी इसलिए दूरी बना ली कि उन्हें कोरोना से मौत होने का भय हो गया था।मामले की सूचना मिलने पर तहसलीदार मनवीर सिंह ढिल्लो, पटवारी सरबजीत सिंह मृतका के घर पहुंचे। सेहत विभाग की टीम और दोनों अफसरों ने युवक की काउंसलिंग की और उसे मां का अंतिम संस्कार के लिए मनाया। फिर शव को श्मशान घाट तक ले जाने का कोई साधन नहीं मिला तो रिक्शा से लेकर गए। लकड़ी की दुकान खुलवाकर बालन इकट्ठा किया और फिर डीजल डालकर गांव हुसैनपुर में मृतका का अंतिम संस्कार करवाया गया।
तहसीलदार मनवीर सिंह ढिल्लों ने बताया कि बुजुर्ग की मौत स्वाभाविक तौर पर हुई थी। लेकिन मृतका के पारिवारिक सदस्य और रिश्तेदार शव के नजदीक तक नहीं आ रहे थे। जब सेहत अधिकारी डॉ. राजीव भगत को बुलाया, लेकिन उन्होंने भी एंबुलेंस मंगवाने से इंकार कर दिया। पुलिस वालों से कहा तो वह भी ना-नुकर करने लगे। यह सब देखकर उन्होंने किसी तरह मृतका का शव श्मशान घाट पहुंचाया और बेटे रामू के हाथों अपनी तरफ से सात हजार रुपये खर्च करके बुजुर्ग महिला का अंतिम संस्कार करवाया। लेकिन दुख हुआ यह देखकर कोरोना के डर से इंसानियत ही मर गई है।
मामला जिला प्रशासन के ध्यान में आया तो तहसीलदार मनवीर सिंह ढिल्लो, पटवारी सरबजीत सिंह के साथ युवक को समझाने पहुंचे। सेहत विभाग की टीम ने मृतका के बेटे की काउंसलिंग की और मां का अंतिम संस्कार करने के लिए रजामंद किया। फिर किसी तरह शव को श्मशान घाट पहुंचाकर दाह संस्कार करवाया गया। इस प्रक्रिया में हुआ खर्चा मौजूद अफसरों ने ही किया।ये है पूरा मामलाबेबे नानकी रोड स्थित आरसीएफ के समीप झुग्गी-झोपड़ी में रामू नाम का युवक रहता है। कर्फ्यू से दो दिन पहले मुक्तसर के गांव वड़िंग से उसकी बुजुर्ग मां मंगली देवी आकर रहने लगी। यहां अचानक उसकी मौत हो गई, लेकिन बेटा अंतिम संस्कार करने की बजाय शव और अपने परिवार को छोड़कर इधर-उधर हो गया। रिश्तेदार ने भी इसलिए दूरी बना ली कि उन्हें कोरोना से मौत होने का भय हो गया था।मामले की सूचना मिलने पर तहसलीदार मनवीर सिंह ढिल्लो, पटवारी सरबजीत सिंह मृतका के घर पहुंचे। सेहत विभाग की टीम और दोनों अफसरों ने युवक की काउंसलिंग की और उसे मां का अंतिम संस्कार के लिए मनाया। फिर शव को श्मशान घाट तक ले जाने का कोई साधन नहीं मिला तो रिक्शा से लेकर गए। लकड़ी की दुकान खुलवाकर बालन इकट्ठा किया और फिर डीजल डालकर गांव हुसैनपुर में मृतका का अंतिम संस्कार करवाया गया।
तहसीलदार मनवीर सिंह ढिल्लों ने बताया कि बुजुर्ग की मौत स्वाभाविक तौर पर हुई थी। लेकिन मृतका के पारिवारिक सदस्य और रिश्तेदार शव के नजदीक तक नहीं आ रहे थे। जब सेहत अधिकारी डॉ. राजीव भगत को बुलाया, लेकिन उन्होंने भी एंबुलेंस मंगवाने से इंकार कर दिया। पुलिस वालों से कहा तो वह भी ना-नुकर करने लगे। यह सब देखकर उन्होंने किसी तरह मृतका का शव श्मशान घाट पहुंचाया और बेटे रामू के हाथों अपनी तरफ से सात हजार रुपये खर्च करके बुजुर्ग महिला का अंतिम संस्कार करवाया। लेकिन दुख हुआ यह देखकर कोरोना के डर से इंसानियत ही मर गई है।