Zoom News : Oct 01, 2019, 12:01 PM
जालोर | देशभर में आज बलि के विरोध में ट्रेंड चल रहा है परन्तु राजस्थान के जालोर जिले का इस मंदिर में नवरात्र में बलि की परम्परा को विशिष्ट रूप से कायम रखा गया है। परन्तु आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यहां किसी निरीह जानवर की बलि नहीं दी जाती है। यहां पर कोळे अर्थात पेठे की बलि दी जाती है। यह परम्परा प्रत्येक नवरात्र में निभाई जाती है।
जालोर जिले में एक छोटा सा गांव है मोदरां। यहां पर आशापुरी माता का मंदिर है। आशापुरी माता चौहान वंश और जैन भंडारी वंश की कुलदेवी है। इस मंदिर में दर्शनों के लिए भारत भर से लोग आते हैं। आशापुरी माता का एक मंदिर पाली जिले के नाडोल में भी है। यहां पर पहले बकरे और पाडे की बलि लगती थी। साथ ही सिंदूर और मालीपन्ने का चढ़ावा भी होता था। बाद में एक जैन संत के प्रवचन और उपदेश के आधार पर जानवरों की बलि की इस परम्परा को बंद कर दिया गया। यहां पर अब पेठे की बलि प्रतीक रूप में दी जाती है।
इन संत के उपदेश से बंद हुई बलि
जैन आचार्य श्रीमद् विजय तीर्थेन्द्रसूरीश्वरजी अपरनाम तीर्थविजय महाराज के उपदेश से विक्रमी संवत 1991 की माघ सुदी 13 शनिवार के दिन आशापुरी देवी पर बलि की परम्परा को बंद कर दिया गया। यहां सिंदूर मालीपन्ने की जगह चंदन और केसर का शृंगार किया जाने लगा। मोदरा के ठाकुर धौंकलसिंह और भीमसिंह, जैन महाजन पंच और ग्रामीणों के हस्ताक्षर लेकर सर्व सम्मति से इस परम्परा को बंद किया गया है। उसके बाद यहां कोळे की बलि दी जाती है।
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मोदरा मंदिर में भूतपूर्व अध्यक्ष मुकनसिंह चम्पावत कोळे की बलि देते हुए और मोदरा मंदिर में लगे शिलालेख का है। साथ ही मंदिर में स्थित माता की प्रतिमा के मोहक चित्र।