Live Hindustan : Apr 19, 2020, 09:08 AM
नई दिल्ली | केंद्र सरकार ने नए दिशा-निर्देश के जरिये यह साबित कर दिया है कि चीन और उस जैसे दूसरे पड़ोसी देशों से अपने देश की कंपनियों में बिना मंजूरी के निवेश की इजाजत नहीं होगी। दरअसल, करोना संकट के दौर में भरतीय कंपनियों के शेयर की कीमत काफी घट गई है। ऐसे में आशंका जताई जा रही है कि चीन खुद या फिर दूसरे किसी पड़ोसी देश के जरिये भारत में अपना निवेश बढ़ा सकता है। साथ ही नई कंपनियां खरीद भारतीय अर्थव्यवस्था में सीधा दखल दे सकता है। इसी को रोकने के लिए एफडीआई कानून में बदलाव की जरूरत पड़ी।इंडस्ट्री चैंबर एसोचैम के सेक्रेटरी जनरल दीपक सूद ने ‘हिन्दुस्तान’ को बताया कि दुनिया की तमाम सरकारें कंपनियों की अवसरवादी खरीद से निपटने में जुटी हुई हैं। महामारी के दौरान दुनियाभर में कंपनियों की वैल्युएशन 50 से 60 फीसदी तक गिर गई है। हालांकि, शेयर बाजार में कंपनियों का यह भाव उनकी वास्तविक कीमत नहीं है, लेकिन इसे अवसरवादी खरीद-फरोख्त के जरिये मैनेजमेंट कंट्रोल हासिल करने के लिए मौके की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। सूद के मुताबिक यूं तो उद्योग जगत हमेशा आसान एफडीआई नीति के पक्ष में रहता है, लेकिन इस तरह की चालाकी से की जाने वाली खरीद-फरोख्त को रोकने के लिए वह सरकार के फैसले के साथ है।दरअसल, पिछले एक साल में चीन की तरफ से देश में करीब 15 हजार करोड़ रुपये का निवेश आया है। यही नहीं, चीन ने बड़े पैमाने पर स्टार्टअप में भी पैसा लगाया है। चीन के निवेश की रफ्तार बाकी देशों के मुताबिक ज्यादा ही तेज रहती है। विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि कोरोना संकट के दौर में चीन और उसके जैसे तमाम देश, जिनके पास खरीदने की ताकत मौजूद है, अपने से कमजोर देशों में तेजी से अधिग्रहण करने में जुटे हैं। इससे निपटने के लिए जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, स्पेन और इटली जैसे देशों ने भी इसी तरह के कदम उठाए हैं। आने वाले दिनों में तमाम और देश भी अपनी कंपनियों को बचाने के लिए ऐसे कदम उठाने को मजबूर होंगे। सरकार ने हालांकि जारी किए गए नोटिफिकेशन में साफ-साफ चीन का नाम नहीं लिया है, बल्कि यह कहा गया है कि वो देश जिनकी सीमा भारत से लगती है, सभी के लिए निवेश से पहले मंजूरी जरूरी होगी।