नॉलेज / 910 साल पहले महीनों तक गायब हो गया था चांद, वैज्ञानिकों को पता लगी वजह

News18 : May 10, 2020, 08:51 AM
नई दिल्ली:  क्या आपने सोचा है कि क्या हो अगर चंद्रमा (Moon) अचानक गायब हो जाए। वह भी कुछ समय के लिए नहीं बल्कि कुछ दिनों के लिए। ऐसा हुआ था। करीब एक सहस्राब्दी (Millennium) पहले चांद हमारे आकाश से गायब हो गया था। वह पृथ्वी से आसमान में महीनों तक नहीं दिखाई दिया था। अब ऐसा लगता है कि वैज्ञानिकों को इसका कारण मिल गया है।

900 सालों तक नहीं मिला था जवाब

बात 910 साल पुरानी है। वैज्ञानिकों को तब से आज तक इसका कारण नहीं मिला था, लेकिन चंद्रमा एक महीने तक लोगों को आसमान में नहीं दिखा था। अब ऐसा लगता है कि वैज्ञानिकों को इसका कारण पता चल गया है। इसके लिए पृथ्वी की ही एक घटना जिम्मेदार है।

कहां हुआ है शोध

इस सवाल का जवाब  वैज्ञानिकों को एक हालिया शोध में मिला जो स्विट्जरलैंड की जिनेवा यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने किया। यह शोध ‘क्लाइमेटिक एंड सोसाइटल इम्पैक्ट्स ऑफ अ फोरगॉटन क्लस्टर ऑफ वॉलकेनिक इरप्शन्स इन 1109-1110 सीई” शीर्षक से नेचर जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

क्या मिली चांद के छिपने की वजह

शोधकर्ताओं को लगता है कि ज्वालामुखी की राख, सल्फर और ठंडे मौसम की वजह चांद दिखना बंद हो गया था । लेकिन शोधकर्ताओं का इस शोध में ध्यान यह स्थापित करने में था कि ऐसे ज्वालामुखी प्रस्फुटन हुआ करते थे। शोध के अनुसार साल 1108 के मध्य में पृथ्वी के वायुमंडल में अचानक ही सल्फर की मात्रा में तेजी वृद्धि हुई। ऐसा उसके अगले दो साल तक हर साल के अंत में होता था जो अगले साल के कुछ शुरुआती महीनों तक होता रहता था।

सल्फर का कैसे पता चला वैज्ञानिकों को

सल्फर की यह मात्रा बढ़ी और सल्फर स्ट्रैटोस्फियर तक पहुंच गया, लेकिन बाद में यह सल्फर नीचे आ गया और बर्फों में जम गया। ऐसा ग्रीनलैंड से लेकर अंटार्कटिका तक हुआ। वैज्ञानिकों को इसी बात का प्रमाण मिला है। उन्होंने जगह जगह बर्फों में सल्फर की मात्रा जमी पाई है जो 1108 से 1110 के बीच की है। यह पुरानी धारणा बदली

पहले वैज्ञानिकों को ग्रीनलैंड के बड़े इलाके में ऐसा जमे हुए सल्फर के मिलने के प्रमाण मिले। अब तक इससे पहले के अध्ययन मानते थे कि सल्फर की मात्रा बढ़ने का कारण 1104 में आईसलैंड के हेक्ला ज्वालामुखी का फूटना था, लेकिन वैज्ञानिकों को प्रमाण मिले कि बड़े पैमाने पर उस समय जमा हुए सल्फर का कारण हेक्ला नहीं था। और उस इलाके में सल्फर जमा होने का समय 1108 का था 1104 का नहीं। इसके अलावा वैज्ञानिकों को अंटार्कटिका में भी इस तरह से सल्फर जमा होने के प्रमाण मिले हैं जो इसी दौरान जमा हुए पाए गए हैं।

इस घटना का भी रहा बहुत बड़ा योगदान

 ताजा शोध के मुताबिक सल्फर के तेजी से बढ़ने का कारण 1108 और 1110 के बीच बहुत से ज्वालामुखी के प्रस्फुटन था जो काफी आसपास थे। माना जा रहा है कि ये ज्वालामुखी जापान के माऊंट आसामा के ज्वालामुखी थे जो साल 1108 में फूटे थे।

क्या कहती हैं सभी कड़ियां

शोधकर्ताओं का मानना है कि इस ज्वालामुखी की चांद को छिपाने में इकलौती नहीं तो अहम भूमिका तो रही ही होगी। इसके अलावा यूरोप की अन्य घटनाएं भी इशारा करती हैं कि उस दौरान वहां बहुत बड़ा असामान्य मौसमी परिवर्तन दिखाई दिया था। कई लोगों का मानना है कि अभी इस अनुमान की पुष्टि हो गई है कहना ठीक नहीं होगा। लेकिन फिलहाल इन सारी कड़ियां जुड़ने पर शोधकर्ताओं के अनुमान को ही पुष्ट करती दिख रही है।


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