AajTak : Apr 11, 2020, 06:00 PM
बिहार के जहानाबाद में कोरोना संकट के बीच 3 साल का एक बच्चा एंबुलेंस का इंतजार करते-करते मां की गोद में ही इस दुनिया से चल बसा। ये बच्चा कुछ दिनों से बेहद बीमार था। इस बच्चे को लेकर इसकी मां भटकते-भटकते जहानाबाद के एक सरकारी अस्पताल पहुंची। जहां डॉक्टरों ने बच्चे की गंभीर स्थिति को देखते हुए उसे पटना रेफर कर दिया।
जहानाबाद से पटना की दूरी 50 किलोमीटर है। बच्चे को पटना ले जाने के लिए मरीज के परिजन एंबुलेंस के लिए लगभग दो घंटे तक इधर से उधर भटकते रहे लेकिन तबतक उस बच्चे की जान चली गई।
रेफर होता रहा बच्चा, नहीं मिल पाया इलाज
बिहार के अरवल जिले के सहोपुर गांव से ये परिवार यहां आया था। 3 साल के बच्चे की तबीयत खराब हुई तो इसकी मां सबसे पहले बच्चे को पास के स्वास्थ्य केंद्र कुर्था लेकर आई। कुर्था से डॉक्टरों ने जहानाबाद रेफर कर दिया। लॉकडाउन में किसी तरह ऑटो का इंतजाम करके मां-बाप बच्चे को जहानाबाद सदर अस्पताल ले लाए। यहां से डॉक्टरों ने बच्चे को पटना के लिए रेफर कर दिया।
हद तो ये है कि जिले का सरकारी अस्पताल होने के बावजूद ये हॉस्पिटल इमरजेंसी की हालत में भी एक गरीब परिवार को एंबुलेंस नहीं मुहैया करा सका। बच्चा मां की गोद में तड़पता रहा, पिता एंबुलेंस के लिए इधर से उधर भटकता रहा। एक घंटा गुजर गया। बच्चे की हालत खराब होती गई। मां बच्चे को लेकर मदद की भीख मांगती रही।
बच्चे की सांस उखड़ती जा रही थी, मां रोए जा रही थी
नीतीश कुमार के सुशासन मॉडल में जिले का सबसे बड़ा अस्पताल आपात स्थिति के लिए इस बच्चे को एक अदद एंबुलेंस नहीं दे सका। इधर बच्चे की सांस उखड़ती जा रही थी, मां जार-जार रोए जा रही थी। पिता छटपटा रहा था। आखिरकार सिस्टम का ये अभागा बच्चा मां की गोद में सदा-सदा के लिए सो गया।
गोद में लाल के शव को लेकर चल पड़ी मां
हद तो ये हो गई कि बच्चे की मौत के बाद भी शव को घर तक ले जाने के लिए इस परिवार को ये अस्पताल एक वाहन मुहैया नहीं करा सका। सब कुछ लुटा चुकी मां ने हाथों में अपने लाल के शव को उठाया और दहाड़े मारती जहानाबाद से पच्चीस किलोमीटर दूर अपने गांव लारी के लिए पैदल ही निकल पड़ी। लॉकडाउन के सन्नाटे में कोई इस परिवार की चीख सुनने वाला नहीं था।
सामाजिक कार्यकर्ता ने घर पहुंचाया
कुछ दूर जाने के बाद कुछ पत्रकारों की पहल पर अस्पताल से थोड़ी दूर जाने के बाद एक सामाजिक कार्यकर्ता ने अपनी गाड़ी से इस परिवार को गांव भेजा। बच्चे के पिता गिरिजेश ने बताया कि पिछले कई दिनों से बच्चे की तबीयत खराब थी और पूर्व में भी उसका इलाज चल रहा था।
अस्पताल प्रशासन की संवेदनहीनता के बारे में जब जिलाधिकारी नवीन कुमार से पूछा गया तो उन्होंने मामले की जांच कर कार्रवाई की बात कही है। ताजा जानकारी के मुताबिक इस मामले में अस्पताल के हेल्थ मैनेजर को जिला प्रशासन ने सस्पेंड कर दिया है। जबकि चार नर्सों और 2 डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई की गई है।
जहानाबाद से पटना की दूरी 50 किलोमीटर है। बच्चे को पटना ले जाने के लिए मरीज के परिजन एंबुलेंस के लिए लगभग दो घंटे तक इधर से उधर भटकते रहे लेकिन तबतक उस बच्चे की जान चली गई।
रेफर होता रहा बच्चा, नहीं मिल पाया इलाज
बिहार के अरवल जिले के सहोपुर गांव से ये परिवार यहां आया था। 3 साल के बच्चे की तबीयत खराब हुई तो इसकी मां सबसे पहले बच्चे को पास के स्वास्थ्य केंद्र कुर्था लेकर आई। कुर्था से डॉक्टरों ने जहानाबाद रेफर कर दिया। लॉकडाउन में किसी तरह ऑटो का इंतजाम करके मां-बाप बच्चे को जहानाबाद सदर अस्पताल ले लाए। यहां से डॉक्टरों ने बच्चे को पटना के लिए रेफर कर दिया।
हद तो ये है कि जिले का सरकारी अस्पताल होने के बावजूद ये हॉस्पिटल इमरजेंसी की हालत में भी एक गरीब परिवार को एंबुलेंस नहीं मुहैया करा सका। बच्चा मां की गोद में तड़पता रहा, पिता एंबुलेंस के लिए इधर से उधर भटकता रहा। एक घंटा गुजर गया। बच्चे की हालत खराब होती गई। मां बच्चे को लेकर मदद की भीख मांगती रही।
बच्चे की सांस उखड़ती जा रही थी, मां रोए जा रही थी
नीतीश कुमार के सुशासन मॉडल में जिले का सबसे बड़ा अस्पताल आपात स्थिति के लिए इस बच्चे को एक अदद एंबुलेंस नहीं दे सका। इधर बच्चे की सांस उखड़ती जा रही थी, मां जार-जार रोए जा रही थी। पिता छटपटा रहा था। आखिरकार सिस्टम का ये अभागा बच्चा मां की गोद में सदा-सदा के लिए सो गया।
गोद में लाल के शव को लेकर चल पड़ी मां
हद तो ये हो गई कि बच्चे की मौत के बाद भी शव को घर तक ले जाने के लिए इस परिवार को ये अस्पताल एक वाहन मुहैया नहीं करा सका। सब कुछ लुटा चुकी मां ने हाथों में अपने लाल के शव को उठाया और दहाड़े मारती जहानाबाद से पच्चीस किलोमीटर दूर अपने गांव लारी के लिए पैदल ही निकल पड़ी। लॉकडाउन के सन्नाटे में कोई इस परिवार की चीख सुनने वाला नहीं था।
सामाजिक कार्यकर्ता ने घर पहुंचाया
कुछ दूर जाने के बाद कुछ पत्रकारों की पहल पर अस्पताल से थोड़ी दूर जाने के बाद एक सामाजिक कार्यकर्ता ने अपनी गाड़ी से इस परिवार को गांव भेजा। बच्चे के पिता गिरिजेश ने बताया कि पिछले कई दिनों से बच्चे की तबीयत खराब थी और पूर्व में भी उसका इलाज चल रहा था।
अस्पताल प्रशासन की संवेदनहीनता के बारे में जब जिलाधिकारी नवीन कुमार से पूछा गया तो उन्होंने मामले की जांच कर कार्रवाई की बात कही है। ताजा जानकारी के मुताबिक इस मामले में अस्पताल के हेल्थ मैनेजर को जिला प्रशासन ने सस्पेंड कर दिया है। जबकि चार नर्सों और 2 डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई की गई है।