दुनिया / चीन में नेपाल के राजदूत ने भारत पर साधा निशाना, छिड़ा विवाद

Zoom News : Sep 29, 2020, 02:45 PM
चीन में नेपाल के राजदूत महेंद्र बहादुर पांडे के चीनी मीडिया ग्लोबल टाइम्स को दिए गए इंटरव्यू को लेकर विवाद छिड़ गया है। नेपाली राजदूत ने चीन की सरकार के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स को दिए इंटरव्यू में चीन और नेपाल के रिश्तों को लेकर खूब सकारात्मक बातें कीं जबकि भारत और भारतीय मीडिया पर निशाना साधा। नेपाली राजदूत ने आरोप लगाया कि भारतीय मीडिया नेपाल-चीन के रिश्तों को खराब करने की कोशिश कर रहा है।

नेपाली राजदूत के इंटरव्यू को लेकर हंगामा शुरू हो गया है। नेपाल के ही कई विश्लेषकों का कहना है कि राजदूत का बयान बेहद ही गैर-कूटनीतिक और प्रोटोकॉल के खिलाफ था। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली ने जुलाई महीने में चीन में नेपाल के राजदूत लीलामणि पौडियाल को अचानक से वापस बुलाने का फैसला लिया था जिसके बाद महेंद्र पांडे की नियुक्ति की गई।

नेपाली राजदूत ने चीन और नेपाल के रिश्तों को अटूट बताते हुए कहा था कि भारतीय मीडिया की फर्जी रिपोर्ट्स से उनके संबंधों पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। नेपाली राजदूत ने कहा, भारतीय मीडिया पूर्वाग्रहों से ग्रसित है या फिर गुमराह है इसीलिए वे इस तरह की फर्जी खबरें और प्रोपेगैंडा छाप रहे हैं लेकिन ये असलियत नहीं है। चीन और नेपाल का रिश्ता स्वाभाविक और दोस्ताना है। हमारे पास कोई वजह नहीं है कि हम चीन के साथ संबंध अच्छे ना रखें। ये क्षेत्र का सवाल नहीं है बल्कि समझ और एक-दूसरे की मदद का है।

विदेश मामलों के जानकार दिनेश भट्टराई ने नेपाल के प्रमुख अखबार काठमांडू पोस्ट से कहा, मुझे समझ नहीं आता है कि भारत, चीन या किसी भी देश में हमारे राजदूत उस देश के पक्ष में क्यों बोलने लगते हैं। पांडे ने जिस तरह के बयान दिए हैं, उससे निश्चित तौर पर हमारी मुश्किलें बढ़ेंगी।नेपाली राजदूत ने नेपाली जमीन पर भारत के अतिक्रमण और अन्य समस्याओं को लेकर भी कई गलत बातें कहीं।

नेपाली राजदूत महेंद्र बहादुर ने नेपाल और चीन के रिश्ते की अहमियत बताने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। विश्लेषकों का कहना है कि राजदूत का नेपाल-चीन के रिश्ते के बारे में आकलन सही ठहराया जा सकता है लेकिन उन्हें नेपाल और भारत के संबंधों की अहमियत को इस तरह से नजरअंदाज नहीं करना चाहिए था। नेपाल और भारत के बीच सांस्कृतिक, सामाजिक रिश्ते हैं, बल्कि इस रूप में अनोखे भी हैं कि दोनों देशों के नागरिकों को एक-दूसरे की सीमा में मूवमेंट करने की पूरी आजादी है। भट्टराई ने कहा, हमें ये बात समझनी चाहिए कि भारत और चीन के साथ हमारे रिश्ते पूरी तरह से स्वतंत्र हैं और कोई किसी एक की जगह नहीं ले सकता है, ये एक भौगोलिक सच्चाई भी है।

भारत और चीन से घिरे नेपाल के लिए संतुलित विदेश नीति बनाना हमेशा से एक बड़ी चुनौती रही है लेकिन ओली सरकार की भारत और चीन को लेकर नीति पर अब सवाल खड़े होने लगे हैं। विपक्षी दल भी कई बार सवाल खड़े कर चुके हैं कि नेपाल भारत से रिश्ते खराब करने की कीमत पर चीन की तरफ क्यों झुक रहा है।

चीन में नेपाल के एक पूर्व राजदूत ने नाम ना बताने की शर्त पर काठमांडू पोस्ट से कहा, भारत और चीन हमारी तुलना में ज्यादा संवाद करते हैं और एक-दूसरे को हमारी तुलना में बेहतर समझते हैं। भारत और चीन के बीच नेपाल और चीन की तुलना में कहीं ज्यादा कूटनीतिक और आर्थिक सहयोग है। इस बात को कहने का कोई मतलब ही नहीं है कि भारतीय या भारतीय मीडिया नेपाल और चीन के रिश्ते खराब करने की कोशिश कर रहे हैं। चीनी भी इस बात को अच्छी तरह से समझते हैं।

नेपाल में कई लोगों का कहना है कि अगर पार्टी नेताओं को राजदूत बनाया गया तो इसी तरह हंसी का पात्र बनते रहेंगे। महेंद्र पांडे नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के नेता रहे हैं और सुशीला कोइराला की सरकार में विदेश मंत्री रह चुके हैं। महेंद्र पांडे बिना लाग-लपेट और सोचे बिना बोलने वाले पार्टी नेता रहे हैं लेकिन कूटनीति में ये नहीं चल सकता है। इससे नेपाल के अन्य देशों के साथ भी रिश्ते खराब हो जाएंगे।

ग्लोबल टाइम्स के इंटरव्यू में नेपाली राजदूत ने खुशी-खुशी कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा को लेकर सीमा विवाद पर ब्योरा दिया और ये भी बताया कि भारतीय आर्मी ने कैसे नेपाल की जमीन पर कब्जा कर लिया।

नेपाली राजदूत ने ग्लोबल टाइम्स से कहा था, भारत ने हमारी कुछ जमीन पर कब्जा कर रखा है। 1962 में जब चीन और भारत के बीच युद्ध हुआ तो भारत की हार हुई और भारतीय सेना अस्थायी रूप से हमारी जमीन पर रह गई। हालांकि, बाद में भारत दावा करने लगा कि जमीन उनकी ही है। यही हमारी समस्या है। हम बातचीत करके सीमा विवाद सुलझाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। नेपाली राजदूत ने ये भी कहा था कि चाहे सीमा विवाद चीन और भारत के बीच हो या फिर नेपाल और भारत के बीच, इसे प्रोपेगैंडा में नहीं बदला जाना चाहिए।

नेपाली राजदूत ने नेपाल-चीन के मजबूत रिश्तों का गुणगान किया जबकि भारत को लेकर नकारात्मक टिप्पणियां कीं। इस इंटरव्यू के बाद अब ये भी सवाल उठने लगा है कि क्या नेपाल अब भी अपनी गुट-निरपेक्ष की नीति पर कायम है?

विदेश नीति के एक अन्य विश्लेषक चंद्र देव भट्ट ने कहा, नेपाली राजदूत का बयान तो कूटनीतिक रूप से तो गैर-जिम्मेदाराना है ही लेकिन अगर हम ध्यान से देखें तो ये नेपाल की गुट-निरपेक्ष नीति का भी उल्लंघन है। ऐसा लग रहा है कि नेपाल अपने राष्ट्रीय हितों के बजाय दूसरों (चीन) के हितों की पूर्ति में लगा हुआ है।

नेपाली राजदूत ने इंटरव्यू पर हो रहे विवाद को लेकर कहा कि उन्हें जो महसूस होता है, वही बातें इंटरव्यू में कहीं। "उन्होंने कहा, "मैंने बस कुछ भारतीय मीडिया में नेपाल-चीन के रिश्तों को लेकर आईं रिपोर्ट्स को खारिज करने की कोशिश की। मैं इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहता हूं कि मेरा इंटरव्यू कूटनीतिक था या गैर-कूटनीतिक। मैं स्पष्ट बोलने वाला शख्स हूं। अब इस मामले को यहीं खत्म कीजिए।"

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