AMAR UJALA : Apr 24, 2020, 03:16 PM
दुनियाभर में तेजी से बढ़ते शहरीकरण की वजह से नई बीमारियां पैदा हो रही हैं। ब्रिटेन के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक शोध में यह खुलासा किया गया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि भविष्य में महामारी के खतरे को नियंत्रित करने के लिए इस मामले पर भी ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
ब्रिटेन के लिंकन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं और वैज्ञनिकों के मुताबिक, तेजी से हो रहे शहरीकरण से लाखों लोगों के रहने और प्रकृति के साथ उनके संबंधों पर असर पड़ता है। जर्नल अर्बन स्टडीज में प्रकाशित समीक्षा शोधपत्र में 1980 के बाद से शहरीकरण के बढ़ते चलन और हर दशक में फैलने वाली बीमारियों की कुल संख्या में इसकी भूमिका का आकलन किया गया है।एशिया और अफ्रीका में शहरों के बाहर बस रहे लोग
शोधकर्ताओं का कहना है कि खासतौर पर एशिया और अफ्रीका में तेजी से हो रहे शहरीकरण की वजह से लोग शहरों के बाहर उपनगरीय इलाकों में बस रहे हैं जिससे शहरी और ग्रामीण पर्यावरण के संबंध अस्थिर हो रहे हैं। अध्ययन में आगे कहा गया कि इस तरह शहरों के बाहर बसी आबादी नई संक्रामक या दोबारा उभरने वाली बीमारियों का कारण बन सकती है। जानवरों से फैलने वाली बीमारियों का अधिक खतरा
वैज्ञनिकों का मानना है कि उपनगरीय इलाकों इलाकों में रहने वाले लोगों को जानवरों से इंसानों में फैलने वाली बीमारियों का सबसे अधिक खतरा है। शोधकर्ताओं ने कहा कि इस तरह के इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी होती है और सरकारी एजेंसियों की नजर से भी ये इलाके दूर होते हैं। उपनगरीय क्षेत्रों से शुरू हुईं इबोला जैसी गंभीर बीमारियां
अध्ययन में इबोला जैसी गंभीर बीमारियों का उदाहरण दिया गया है जो उपनगरीय क्षेत्रों में शुरू हुईं और बाद में स्थापित शहरों तक संक्रमण फैल गया। लिंकन विश्वविद्यालय विशेषज्ञ की मानें तो विकास, श्रम बाजार में बदलाव और शहरी विस्तार में टकराव के अलावा विकासशील देशों में गांवों से शहरों की ओर अभूतपूर्व पलायन हो रहा है।यातायात साधनों में सुधार, स्वास्थ्य सेवाएं अभी भी कमजोर
शोधकर्ताओं का कहना है कि यातायात के साधन में सुधार से गांवों, उपनगरों और शहरों तक यात्रा के समय में अभूतपूर्व कमी आई है। हालांकि, बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए स्वास्थ्य केंद्र, स्वच्छ पेयजल का विकास उस गति से नहीं हुआ है। वैज्ञनिकों का मनाना है कि मुख्य शहरों के बाहरी इलाकों में बसे लोगों के लिए बीमारी फैलने पर त्वरित कार्रवाई करने की सरकारी मशीनरी भी कमजोर है।
ब्रिटेन के लिंकन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं और वैज्ञनिकों के मुताबिक, तेजी से हो रहे शहरीकरण से लाखों लोगों के रहने और प्रकृति के साथ उनके संबंधों पर असर पड़ता है। जर्नल अर्बन स्टडीज में प्रकाशित समीक्षा शोधपत्र में 1980 के बाद से शहरीकरण के बढ़ते चलन और हर दशक में फैलने वाली बीमारियों की कुल संख्या में इसकी भूमिका का आकलन किया गया है।एशिया और अफ्रीका में शहरों के बाहर बस रहे लोग
शोधकर्ताओं का कहना है कि खासतौर पर एशिया और अफ्रीका में तेजी से हो रहे शहरीकरण की वजह से लोग शहरों के बाहर उपनगरीय इलाकों में बस रहे हैं जिससे शहरी और ग्रामीण पर्यावरण के संबंध अस्थिर हो रहे हैं। अध्ययन में आगे कहा गया कि इस तरह शहरों के बाहर बसी आबादी नई संक्रामक या दोबारा उभरने वाली बीमारियों का कारण बन सकती है। जानवरों से फैलने वाली बीमारियों का अधिक खतरा
वैज्ञनिकों का मानना है कि उपनगरीय इलाकों इलाकों में रहने वाले लोगों को जानवरों से इंसानों में फैलने वाली बीमारियों का सबसे अधिक खतरा है। शोधकर्ताओं ने कहा कि इस तरह के इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी होती है और सरकारी एजेंसियों की नजर से भी ये इलाके दूर होते हैं। उपनगरीय क्षेत्रों से शुरू हुईं इबोला जैसी गंभीर बीमारियां
अध्ययन में इबोला जैसी गंभीर बीमारियों का उदाहरण दिया गया है जो उपनगरीय क्षेत्रों में शुरू हुईं और बाद में स्थापित शहरों तक संक्रमण फैल गया। लिंकन विश्वविद्यालय विशेषज्ञ की मानें तो विकास, श्रम बाजार में बदलाव और शहरी विस्तार में टकराव के अलावा विकासशील देशों में गांवों से शहरों की ओर अभूतपूर्व पलायन हो रहा है।यातायात साधनों में सुधार, स्वास्थ्य सेवाएं अभी भी कमजोर
शोधकर्ताओं का कहना है कि यातायात के साधन में सुधार से गांवों, उपनगरों और शहरों तक यात्रा के समय में अभूतपूर्व कमी आई है। हालांकि, बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए स्वास्थ्य केंद्र, स्वच्छ पेयजल का विकास उस गति से नहीं हुआ है। वैज्ञनिकों का मनाना है कि मुख्य शहरों के बाहरी इलाकों में बसे लोगों के लिए बीमारी फैलने पर त्वरित कार्रवाई करने की सरकारी मशीनरी भी कमजोर है।