बिहार / नीतीश कुमार 6 बार बने मुख्यमंत्री, फिर भी 16 साल से क्यों नहीं लड़ा चुनाव

AajTak : Sep 15, 2020, 07:45 AM
बिहार में चुनावी सरगर्मियां तेज हो गई हैं। एनडीए बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुका है। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के एनडीए में शामिल होने से समीकरण बदल गए हैं। ऐसे में अबतक 6 बार बिहार के मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार क्या इस बार भी जीत के साथ फिर से सीएम बनेंगे। अगर नीतीश 6 बार मुख्यमंत्री बन चुके हैं तो फिर खुद क्यों नहीं लड़ते विधान सभा चुनाव?

सुशासन बाबू के नाम से मशहूर नीतीश कुमार का क्या बिहार में कोई विकल्प है? यह अहम सवाल है, क्योंकि पिछले 15 साल से नीतीश सत्ता पर काबिज हैं। वह जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के एक कद्दावर नेता के रूप में जाने जाते हैं। इन 15 सालों में वो प्रदेश में विकास की झड़ी लगाने का दावा करते हैं और उन्होंने बिहार की छवि भी बदली है। 

यही कारण है कि अपनी पहली रैली 'निश्चय संवाद' में नीतीश ने अपने 15 साल के शासन में किए गए कामों को गिनाया। इतना ही नहीं इस वर्चुअल रैली में उन्होंने चुनाव का एजेंडा भी तय कर दिया। जिस तरह से उन्होंने लालू-राबड़ी के शासन काल की कमियां गिनाईं, उससे तो यही लगता है कि उनका मुख्य एजेंडा है- '15 साल नीतीश बनाम 15 साल लालू-राबड़ी'। हम जानते हैं कि नीतीश ने कैसे राजनीति की शुरुआत की और विकास पुरुष के रूप में अपनी पहचान बनाने के बाद भी क्यों नहीं लड़ रहे चुनाव।


नीतीश ने जेपी आंदोलन में निभाई सक्रिय भूमिका

नीतीश कुमार मूल रूप से नालंदा जिला के रहने वाले हैं और कुर्मी जाति से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता कविराज रामलखन सिंह एक वैद्य थे। नीतीश कुमार पढ़ाई में अच्छे थे और बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग (आज इसे एनआईटी पटना के नाम से जानते हैं) से इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में डिग्री ली। इसके बाद उन्होंने राजनीति में कदम रखा। 

जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया और कर्पूरी ठाकुर जैसे दिग्गज नेताओं के साथ उन्होंने शुरुआती राजनीति की। फिर 1977 के जेपी आंदोलन में नीतीश ने सक्रिय भूमिका निभाई। नीतीश के समकालीन रहे आरजेडी के लालू यादव और बीजेपी के सुशील कुमार मोदी भी उसी समय जेपी आंदोलन में कूदे थे। बाद में नीतीश 1977 में जनता पार्टी में शामिल हो गए।


1985 में पहली बार चुनाव जीतकर बने विधायक

1985 में हरनौत विधानसभा सीट से नीतीश चुनाव लड़े और उन्हें जीत मिली। इससे पहले दो बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इस जीत के बाद नीतीश राजनीती में तेजी से आगे बढ़े। 1989 में नीतीश कुमार को जनता दल का सचिव चुना गया। फिर 1989 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने बाढ़ सीट से हाथ अजमाया। इस चुनाव में नीतीश को जीत मिली। 

इस जीत के बाद नीतीश का रुख केंद्र की राजनीति की ओर हो गया। नीतीश कुमार को 1991, 1996, 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में भी जीत मिली। वह अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में कृषि मंत्री और फिर 1999 में कुछ समय के लिए रेल मंत्री भी रहे। पश्चिम बंगाल के घैसाल में 1999 में ट्रेन हादसे के दौरान 300 लोग मारे गए और नीतीश ने रेल मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। 


1994 में जनता दल से अलग हुए

नीतीश कुमार 1994 में समाजवादी आंदोलन के प्रमुख नेता जार्ज फर्नांडिस के साथ जनता दल से अलग हो गए और समता पार्टी का गठन किया। फिर 1996 के आम चुनाव में भाजपा के साथ उन्होंने हाथ मिला लिया। बाद में शरद यादव की अगुवाई वाली जनता दल, समता पार्टी और लोकशक्ति पार्टी का आपस में विलय हो गया और 2003 में जनता दल यूनाइटेड पार्टी बनी। 


2000 में पहली बार मुख्यमंत्री बने

2000 में नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने लेकिन सिर्फ 7 दिनों के लिए। हालांकि 2004 लोकसभा चुनाव में एनडीए की हार के बाद नीतीश ने अपना ध्यान फिर से राज्य की राजनीति की ओर कर लिया। उस समय बिहार में राबड़ी राज्य में उनकी लोकप्रियता तेजी से घट रही थी। राज्य में क्राइम, भ्रष्टाचार और गुंडागर्दी का बोलबाला था। ऐसे में बिहार की जनता एक अच्छे नेता की ओर नजर गड़ाए थी। इसका फायदा नीतीश कुमार ने उठाया।


नीतीश ने बिहार की राजनीति पर अपना ध्यान केंद्रित किया। बिहार में राबड़ी राज के खिलाफ अभियान छेड़ दिया। उनकी मेहनत रंग लाई और 2005 के विधान सभा चुनाव में जेडीयू-भाजपा गठबंधन की जीत हुई। राज्य में इस गठबंधन की सरकार बनी और नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने। फिर नीतीश ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 


नीतीश अबतक कब-कब बने बिहार के मुख्यमंत्री


3 मार्च 2000 से 10 मार्च 2000 तक    बिहार के 29वें मुख्यमंत्री


24 नवंबर 2005 से 24 नवंबर 2010    बिहार के 31वें मुख्यमंत्री


25 नवंबर 2010 से 19 मई 2014        बिहार के 32वें मुख्यमंत्री


22 फरवरी 2015 से 19 नवंबर 2015  बिहार के 34वें मुख्यमंत्री


20 नवंबर 2015 से 26 जुलाई 2017   बिहार के 35वें मुख्यमंत्री


27 जुलाई 2017 से अबतक               बिहार के 36वें मुख्यमंत्री


16 साल से क्यों नहीं लड़ रहे चुनाव?

विकास पुरुष के रूप में नीतीश जाने जाते हैं। कहा जाता है कि उन्होंने बिहार की छवि बदल डाली। इतने जनाधार वाले नेता होने के बावजूद नीतीश क्यों नहीं लड़ते चुनाव? नीतीश कुमार ने आखिरी चुनाव 2004 में लड़ा था। 2004 के लोकसभा चुनाव में नीतीश ने दो जगह नालंदा और बाढ़ से चुनाव लड़ा था। वह लगातार बाढ़ से जीतते रहे थे लेकिन 2004 के चुनाव में उन्हें बाढ़ से कुछ स्थिति डांवाडोल नजर आ रही थी। इसलिए उन्हें गृह जिला नालंदा की याद आई और उन्होंने जार्ज फर्नांडिस को मुज्जफरपुर से चुनाव लड़वाया और खुद नालंदा से लड़े। 

नीतीश की आशंका सच साबित हुई और बाढ़ से नीतीश को राजद के विजय कृष्ण से बड़ी हार का सामना करना पड़ा। हालांकि नालंदा से वे जीत गए। लेकिन कहा जाता है कि इस हार से नीतीश को गहरा सदमा लगा। बाढ़ लोकसभा के बख्तियारपुर से उनका गहरा नाता रहा है। वो वहीं पढ़े-बढ़े लेकिन इस हार के बाद फिर वे चुनाव नहीं लड़े। 2005 में जब जेडीयू और भाजपा गठबंधन की जीत हुई तो वे सांसद थे। 2005 में बिहार का मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने सांसदी से इस्तीफा दे दिया और विधान परिषद का सदस्य बने। 2006 में नीतीश बिहार विधान परिषद के सदस्य बने और तब से अबतक विधान परिषद के ही सदस्य हैं। 

वहीं इस मुद्दे पर बिहार के वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडे से इस बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि यह अनैतिक है। राज्य के मुख्यमंत्री को हमेशा विधान सभा चुनाव लड़ना चाहिए और जीतकर मुख्यमंत्री बनना चाहिए। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि चुनाव क्या है। यह एक नेता के काम का जनता के द्वारा दिया गया रिफलेक्शन है। अगर नीतीश अच्छा काम कर रहे हैं तो उन्हें चुनाव जरूर लड़ना चाहिए। लेकिन ये अजीब बात है कि बिहार के दो बड़े दल के बड़े नेता, जेडीयू के नीतीश कुमार और बीजेपी के सुशील कुमार मोदी, दोनों विधान परिषद के सदस्य हैं लेकिन चुनाव नहीं लड़ते। एक मुख्यमंत्री हैं तो दूसरा उपमुख्यमंत्री। 

अरुण पांडे का कहना है कि ये नेता सेफ जोन में रहना चाहते हैं। अगर चुनाव लड़ेंगे तो इसके लिए अतिरिक्त समय देना पड़ेगा और चुनाव के दौरान अन्य सीटों पर फोकस करने के लिए कम समय मिलेगा। जिससे उनका नुकसान हो सकता है। शायद इसलिए नीतीश जैसे नेता चुनाव नहीं लड़ना चाहते लेकिन मैं इसे अनैतिक मानता हूं। हालांकि उन्होंने कहा कि मैं यह नहीं मानता कि नीतीश 2004 में बाढ़ से लोकसभा चुनाव हारने के बाद रिस्क नहीं लेना चाहते। तो क्या इस बार नीतीश विधानसभा चुनाव लड़ेंगे, क्या फिर से सातवीं बार बिहार के सीएम बनेंगे। चुनाव लड़ने की संभावना तो कम ही है लेकिन फिर सीएम बन पाएंगे, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।



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