राजस्थान का संकट / यूं ही नहीं ध्वस्त हो रहे कांग्रेसी किले, सवा सौ साल पुरानी पार्टी में नहीं है कोई संकटमोचक

AMAR UJALA : Jul 13, 2020, 08:18 AM
Rajasthan: पहले कर्नाटक में सरकार गई, फिर मध्यप्रदेश में अब राजस्थान की कांग्रेस सरकार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। छत्तीसगढ़ का किला भी बहुत सुरक्षित नहीं है। आखिर क्या वजह है कि, सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस किसी भी राज्य में एक-दो वर्ष से ज्यादा सत्ता में बने रह पाने में विफल साबित हो रही है। हर जगह उसके अपने विधायकों की बगावत ही उसके लिए संकट का सबब बन रही है। इसकी एक बडी वजह यह है कि, कांग्रेस में अब कोई संकटमोचक नहीं बचा है। 

पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी अपने घर तक ही सीमित होकर रह गई हैं। राहुल गांधी सिर्फ ट्विटर पर सक्रिय हैं, कमोवेश यही स्थिति प्रियंका की भी है। इन तीन के अलावा पार्टी में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो हो संकट की घड़ी में राह निकाल सके। 

अशोक गहलोत, दिग्विजय सिंह और कमलनाथ जैसे नेताओं के मुकाबले संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल कहीं जूनियर हैं और उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती के समान है। अधिकतर वरिष्ठ नेताओं को पहले ही किनारे लगा दिया गया है। यही वजह है एक के बाद एक कांग्रेस के किले ध्वस्त होते जा रहे हैं और गांधी परिवार सिर्फ मूकदर्शक बनने पर विवश है।

समय कम, महत्त्वाकांक्षाएं ज्यादा

राजस्थान में हर पांच वर्ष के बाद सरकार बदलने की परंपरा सी है। ऐसे में अगली सरकार भाजपा की होगी। प्रदेश अध्यक्ष रहते सचिन पायलट ने सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। राहुल ने सीएम बनाने का वादा तो किया था, पर पूरा नहीं किया।  


भाजपा का क्राइसिस मैनेजमेंट 

अब जरा भाजपा पर नजर डालिए जिसकी मणिपुर में चल रही सरकार हाल ही में खतरे में आ गई थी, जब उसके कुछ विधायकों ने बागी होकर कांग्रेस को समर्थन देने का एलान कर दिया था। तीन-चार दिनों में ही असम के वित्तमंत्री हेमंता विश्वशर्मा बगावती विधायकों को मनाने में कामयाब हुए।

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