AMAR UJALA : Apr 23, 2020, 03:04 PM
दिल्ली: अगले हफ्ते सोमवार, 27 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार राज्यों के मुख्यमंत्रियों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए चर्चा करने जा रहे हैं। कोविड-19 का संक्रमण रोकने के लिए राज्यों के साथ विचारों को साझा करेंगे। हालांकि लगभग सभी राज्य लॉकडाउन जारी रखने के पक्षधर हैं, इस दौरान गैरभाजपा शासित राज्यों की ओर से प्रधानमंत्री के सामने कुछ ज्वलंत मुद्दे मुखरता से उठ सकते हैं।
महाराष्ट्र सरकार लगातार केंद्र सरकार से दूसरे राज्यों के गरीब मजदूरों, कामगारों को लेकर संपर्क कर रही है। उद्धव ठाकरे भी चाहते हैं कि जो अपने गृहराज्य जाना चाहते हों, उनके लिए कुछ व्यवस्था होनी चाहिए। इसी तरह से दूसरे राज्य में पर्यटन या किन्हीं अन्य कारण से गए तथा लॉकडाउन के कारण फंसे लोगों को लाने का दबाव है।दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात जैसे ऐसे राज्य भी है, जहां बिना राशनकार्ड धारी गरीबों, मजदूरों की तादाद काफी अधिक है। राज्य सरकारें बिना राशन कार्ड वाले मजदूरों को खाद्यान्न या भोजन उपलब्ध करा रही हैं, लेकिन उनके लिए यह व्यावहारिक रूप में कठिनाई भरा भी है।
दूसरे राज्यों में गए गरीब, मजदूरों को वापस लाने का दबाव उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों पर भी है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इसके लिए काफी संवेदनशील हैं। राजस्थान सरकार के एक मंत्री तो केंद्र सरकार की 24 मार्च को अचानक शुरू होने वाली लॉकडाउन पॉलिसी के ही खिलाफ हैं।
छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश को मजदूरों की चिंता है। दिल्ली सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भी फोन पर माना कि मजदूरों की अभी काफी बड़ी तादाद दिल्ली में है। इनके लिए कोई काम धंधा नहीं है। सूत्र का कहना है कि वे सभी अपने गांव जाना चाहते हैं, लेकिन लॉकडाउन में फंसे हैं।
उत्तर प्रदेश के एक भाजपा विधायक का भी कहना है कि मजदूर पैदल, रिक्शा, या रिक्शा गाड़ी, साइकिल चलाकर गांव पहुंचने में दम तोड़े दे रहा है। इस तरह की खबरें परेशान करती हैं। उनका कहना है कि इन सभी मजदूरों को लाकर स्कूल आदि में क्वारंटीन कर देना चाहिए।
जांच रिपोर्ट सही आने के बाद इन्हें घर भेज देना चाहिए। उनके पास आए दिन दूसरे राज्य में फंसे लोगों को लाने के लिए विशेष पास का फोन आ रहे हैं, लेकिन वह कोई खास मदद नहीं कर पा रहे हैं।
निगाहें ममता बनर्जी पर भी रहेंगीप्रधानमंत्री से मुख्यमंत्रियों की चर्चा में निगाहें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर भी रहेंगी। ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में बिना उन्हें विश्वास में लिए केंद्र की तरफ से भेजी गई टीम को लेकर खफा हैं। तृणमूल कांग्रेस ने भी इसे लेकर विरोध जताया है।केंद्र की टीम पश्चिम बंगाल में है, लेकिन राज्य सरकार के साथ अभी भी उसका तालमेल नहीं बन पा रहा है। राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने केंद्र के इस निर्णय की आलोचना की है। वहीं मुख्यमंत्री ने भी केंद्रीय गृह मंत्रालय के कदम की प्रधानमंत्री कार्यालय से भी शिकायत की थी।
पिछली बैठक में भी ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री के सामने राज्य के राज्यपाल की राजनीतिक भावना के साथ काम करने की शिकायत की थी। समझा जा रहा है कि राज्य सरकार की कुछ व्यावहारिक दिक्कतों पर चर्चा के साथ ममता बनर्जी इस ओर भी प्रधानमंत्री का ध्यान आकर्षित कर सकती हैं।
मजदूर आएंगे तो किसानी ठीक रहेगीचौधरी पुष्पेन्द्र सिंह किसान नेता हैं। कहते हैं, हरियाणा का बार्डर सील है। इस बार हारवेस्टर, मशीन, मजदूर की समस्या आ रही है। सुल्तानपुर से राम कुमार दूबे का कहना है कि इस बार हर साल से अच्छी पैदावार हुई है, लेकिन मजदूरों की कमी के कारण न तो गेहूं की कटाई हो पा रही है और न ही किसानी आगे बढ़ रही है।बनारस के विनोद कुमार सिंह, गाजीपुर के हरिशंकर की भी समस्या यही है। शामली की जिलाधिकारी का कहना है कि गेहूं आदि की कटाई, मड़ाई में किसानों के सामने मजदूरों की कमी आड़े आ रही है।
हालांकि जिलाधिकारी का कहना है कि इस बार पिछले साल से ज्यादा गेहूं की खरीद होगी, क्योंकि किसान बार्डर सील होने के कारण हरियाणा में जाकर गेहूं नहीं बेच पाएंगे।
प्रधानमंत्री के लिए भी किसानी, गरीब, मजदूर है गंभीर मुद्दाप्रधानमंत्री किसान का दर्द भी समझते हैं और उनकी चिंता गरीब को लेकर है। इसलिए उम्मीद की जा रही है कि प्रधानमंत्री भी गरीबों, मजदूरों को भोजन, अनाज, सब्सिडी, सहायता उपलब्ध कराने पर चर्चा कर सकते हैं।वह किसानों की कुशलक्षेम को लेकर राज्यों के मुख्यमंत्रियों के सुझावों पर गंभीरता से विचार करने का आश्वासन देते हुए उनसे अपनी ओर से अपील भी कर सकते हैं।
महाराष्ट्र सरकार लगातार केंद्र सरकार से दूसरे राज्यों के गरीब मजदूरों, कामगारों को लेकर संपर्क कर रही है। उद्धव ठाकरे भी चाहते हैं कि जो अपने गृहराज्य जाना चाहते हों, उनके लिए कुछ व्यवस्था होनी चाहिए। इसी तरह से दूसरे राज्य में पर्यटन या किन्हीं अन्य कारण से गए तथा लॉकडाउन के कारण फंसे लोगों को लाने का दबाव है।दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात जैसे ऐसे राज्य भी है, जहां बिना राशनकार्ड धारी गरीबों, मजदूरों की तादाद काफी अधिक है। राज्य सरकारें बिना राशन कार्ड वाले मजदूरों को खाद्यान्न या भोजन उपलब्ध करा रही हैं, लेकिन उनके लिए यह व्यावहारिक रूप में कठिनाई भरा भी है।
दूसरे राज्यों में गए गरीब, मजदूरों को वापस लाने का दबाव उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों पर भी है। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इसके लिए काफी संवेदनशील हैं। राजस्थान सरकार के एक मंत्री तो केंद्र सरकार की 24 मार्च को अचानक शुरू होने वाली लॉकडाउन पॉलिसी के ही खिलाफ हैं।
छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश को मजदूरों की चिंता है। दिल्ली सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भी फोन पर माना कि मजदूरों की अभी काफी बड़ी तादाद दिल्ली में है। इनके लिए कोई काम धंधा नहीं है। सूत्र का कहना है कि वे सभी अपने गांव जाना चाहते हैं, लेकिन लॉकडाउन में फंसे हैं।
उत्तर प्रदेश के एक भाजपा विधायक का भी कहना है कि मजदूर पैदल, रिक्शा, या रिक्शा गाड़ी, साइकिल चलाकर गांव पहुंचने में दम तोड़े दे रहा है। इस तरह की खबरें परेशान करती हैं। उनका कहना है कि इन सभी मजदूरों को लाकर स्कूल आदि में क्वारंटीन कर देना चाहिए।
जांच रिपोर्ट सही आने के बाद इन्हें घर भेज देना चाहिए। उनके पास आए दिन दूसरे राज्य में फंसे लोगों को लाने के लिए विशेष पास का फोन आ रहे हैं, लेकिन वह कोई खास मदद नहीं कर पा रहे हैं।
निगाहें ममता बनर्जी पर भी रहेंगीप्रधानमंत्री से मुख्यमंत्रियों की चर्चा में निगाहें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर भी रहेंगी। ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल में बिना उन्हें विश्वास में लिए केंद्र की तरफ से भेजी गई टीम को लेकर खफा हैं। तृणमूल कांग्रेस ने भी इसे लेकर विरोध जताया है।केंद्र की टीम पश्चिम बंगाल में है, लेकिन राज्य सरकार के साथ अभी भी उसका तालमेल नहीं बन पा रहा है। राज्यसभा सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने केंद्र के इस निर्णय की आलोचना की है। वहीं मुख्यमंत्री ने भी केंद्रीय गृह मंत्रालय के कदम की प्रधानमंत्री कार्यालय से भी शिकायत की थी।
पिछली बैठक में भी ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री के सामने राज्य के राज्यपाल की राजनीतिक भावना के साथ काम करने की शिकायत की थी। समझा जा रहा है कि राज्य सरकार की कुछ व्यावहारिक दिक्कतों पर चर्चा के साथ ममता बनर्जी इस ओर भी प्रधानमंत्री का ध्यान आकर्षित कर सकती हैं।
मजदूर आएंगे तो किसानी ठीक रहेगीचौधरी पुष्पेन्द्र सिंह किसान नेता हैं। कहते हैं, हरियाणा का बार्डर सील है। इस बार हारवेस्टर, मशीन, मजदूर की समस्या आ रही है। सुल्तानपुर से राम कुमार दूबे का कहना है कि इस बार हर साल से अच्छी पैदावार हुई है, लेकिन मजदूरों की कमी के कारण न तो गेहूं की कटाई हो पा रही है और न ही किसानी आगे बढ़ रही है।बनारस के विनोद कुमार सिंह, गाजीपुर के हरिशंकर की भी समस्या यही है। शामली की जिलाधिकारी का कहना है कि गेहूं आदि की कटाई, मड़ाई में किसानों के सामने मजदूरों की कमी आड़े आ रही है।
हालांकि जिलाधिकारी का कहना है कि इस बार पिछले साल से ज्यादा गेहूं की खरीद होगी, क्योंकि किसान बार्डर सील होने के कारण हरियाणा में जाकर गेहूं नहीं बेच पाएंगे।
प्रधानमंत्री के लिए भी किसानी, गरीब, मजदूर है गंभीर मुद्दाप्रधानमंत्री किसान का दर्द भी समझते हैं और उनकी चिंता गरीब को लेकर है। इसलिए उम्मीद की जा रही है कि प्रधानमंत्री भी गरीबों, मजदूरों को भोजन, अनाज, सब्सिडी, सहायता उपलब्ध कराने पर चर्चा कर सकते हैं।वह किसानों की कुशलक्षेम को लेकर राज्यों के मुख्यमंत्रियों के सुझावों पर गंभीरता से विचार करने का आश्वासन देते हुए उनसे अपनी ओर से अपील भी कर सकते हैं।