Cricket / कभी Sourav Ganguly के खिलाफ की थी गेंदबाजी, आज चाय बेचकर मुश्किल से होता है गुजारा

Zoom News : Jul 06, 2021, 09:39 PM
सिलचर (असम): युवा भारतीय क्रिकेटर्स की ख्वाहिश होती है कि वो एक दिन टीम इंडिया (Team India) के लिए खेले, लेकिन हर किसी का ख्वाब पूरा नहीं होता पाता। कई बार जिंदगी ऐसे मोड़ पर ला देती है जब प्लेयर इस 'जेंटलमेन गेम' को अलविदा कह देते हैं। ऐसा ही कुछ हुआ प्रकाश भगत (Prakash Bhagat) के साथ।

चाय बेचने पर मजबूर

बाएं हाथ के स्पिनर प्रकाश भगत (Prakash Bhagat) जो कभी नेशनल क्रिकेट एकेडमी (NCA) बेंगलुरु (Bengaluru) में टीम इंडिया (Team India) के बल्लेबाजों के खिलाफ नेट (Net) में बॉलिंग करते थे क्योंकि उनका एक्शन न्यूजीलैंड (New Zealand) के डेनियल वेटोरी (Daniel Vettori) से मिलता-जुलता था। आज प्रकाश अपना गुजारा करने के लिए चाय और फास्ट फूड बेचने को मजबूर हैं।

जब बेंगलुरू से आया कॉल

साल 2003 में प्रकाश भगत (Prakash Bhagat) के पास नेशनल क्रिकेट एकेडमी (NCA) से एक कॉल आया कि वो बेंगलुरु (Bengaluru) में तुरंत रिपोर्ट करें जहां सौरव गांगुली (Sourav Ganguly) और उनकी टीम न्यूजीलैंड दौरे की तैयारियां कर रहे हैं। गांगुली को बाएं हाथ के ऐसे स्पिनर की तलाश थी जो डेनियल वेटोरी (Daniel Vettori) की तरह गेंदबाजी कर सकता था।

गांगुली को फेंकी गेंद

34 साल के प्रकाश भगत (Prakash Bhagat) ने बाराकबुलेटिन डॉट कॉम से कहा, 'मैं उस तजुर्बे को कभी भूल नहीं सकता जब मैंने सौरव गांगुली (Sourav Ganguly) को गेंद फेंकी थी। वो मेरे द्वारा पेश की गई हर चुनौती का सामना करने के लिए तैयार थे। उन्होंने मुझे टिप्स भी दिया था।'

प्रकाश को मिला फायदा

प्रकाश भगत (Prakash Bhagat) को इस तजुर्बे का फायदा भी मिला। उन्होंने अंडर-17 विजय मर्चेंट ट्रॉफी में गहरी छाप छोड़ी। असम (Assam) की तरफ से खेलते हुए प्रकाश ने बिहार (Bihar) के खिलाफ 7 विकेट हासिल किए, जिसमें एक हैट्रिक (Hat-trick) भी शामिल था।

रणजी ट्रॉफी भी खेले प्रकाश

प्रकाश भगत (Prakash Bhagat) ने असम (Assam) की तरफ से हर आयु वर्ग में खेलना जारी रखा। आखिरकार वो 2009-10 और 2010-11 की रणजी ट्रॉफी (Ranji Trophy) में शामिल हुए। इसके साथ ही वो सैय्यद मुश्ताक अली ट्रॉफी (Syed Mushtaq Ali Trophy) के लिए भी चुने गए।

जब एकदम से बदल गए हालात

साल 2011 में प्रकाश भगत (Prakash Bhagat) की जिंदगी पूरी तरह बदल गई जब उनके पिता का निधन हो गया। अब परिवार की जिम्मेदारी प्रकाश और उनके बड़े भाई पर थी जो सिलचर में चाय की दुकान चलाते थे। लेकिन कोरोना वायरस महामारी के बाद उनकी मुश्किलें और बढ़ गईं क्योंकि लोग स्ट्रीट फूट से दूसरे बनाने लगे और प्रकाश के लिए गुजारा करना मुश्किल हो गया।

'मुश्किल से होता है गुजारा'

प्रकाश भगत (Prakash Bhagat) बोले, 'मैं क्या कहूं?' हमारा गुजारा हमेशा मुश्किल से होता था, लेकिन अब हालात और बिगड़ गए हैं। टी स्टॉल से जितना पैसा आता है वो दो वक्त की रोटी के खाने के लिए भी कम पड़ रहा है। मैंने जिन स्टेट टीम के साथियों के साथ ड्रेसिंग रूम शेयर किया था, उन सभी को सरकारी नौकरियां मिल गईं, जबकि हमारा हर दिन मुश्किलों से बीत रहा है। 

SUBSCRIBE TO OUR NEWSLETTER