चंडीगढ़ / दिल्ली तक कहीं नहीं है ऐसे पारे के शिवलिंग, सावन में विशेष पूजा के लिए महीना पहले हो जाती है बुकिंग

Dainik Bhaskar : Jul 29, 2019, 06:02 PM
चंडीगढ़. यूं तो भोले शिव बहुत ही भोले-भाले हैं। थोड़ी सी ही पूर्जा अर्चना से प्रसन्न हो जाते हैं। लेकिन सावन का महीना इन्हें प्रसन्न करने के लिए विशेष महत्व रखता है। शास्त्रों के मुताबिक अगर कोई भी व्यक्ति सावन के महीने में एक दिन शिवालय पर जलाभिषेक करे, तो उसका जलाभिषेक पूरे साल जलाभिषेक करने जैसा माना जाता है।

चंडीगढ़ के सेक्टर-30 में स्थित शिव शक्ति मंदिर में पारे का शिवलिंग स्थापित है जिसे द्ववादेष ज्योर्तिलिंग कहा जाता है। मंदिर के प्रधान राकेश पाल मोदगिल ने बताया कि ऐसा शिवलिंग चंडीगढ़ से लेकर दिल्ली तक नहीं है। पारे का शिवलिंग स्थापित करने के लिए उसके साथ 11 छोटे शिवलिंग स्थापित करने होते हैं। जिसे द्ववादेष ज्योर्तिलिंग कहा जाता है। कहा जाता है कि सावन में इस पारे के शिवलिंग का जलाभिषेक करने से द्ववादेष के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं।

पूजा के लिए एक महीना पहले से होती है बुकिंग: इस मंदिर में विशेष पूजा के लिए हर बार की तरह इस बार भी लोगों ने एक महीना पहले से ही बुकिंग करवाई। एक परिवार को इस विशेष पूजा करवाने के लिए दो से ढाई घंटे लगते हैं। दो फुट के इस पारे के शिवलिंग के दर्शनों के लिए ट्राइसिटी से भक्त बड़ी तादाद में आते हैं। पांच से छह पुजारी इस पूजा को ही संपन्न करवाने में व्यस्त रहते हैं। चूंकी सोमवार को भगवान शिव का विशेष दिन माना गया है। इसलिए बाकी दिनों की तुलना में इस मंदिर में सोमवार को चार गुणा अधिक भीड़ रहती है । इसी वजह से सोमवार को विशेष पूजा के लिए बहुत कम लोगों को बुकिंग मिलती है। यहां शाम को शिवलिंग का फूलों से श्रृंगार होता है।

भगवान शिव का दूसरा रूप यहां पीता है दूध: चंडीगढ़ के नजदीक गांव सकेतड़ी में 500 साल पुराना भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर में दो शिवलिंग हैं। खासियत ये है कि एक शिवलिंग पंचकूला तो दूसरा चंडीगढ़ में पड़ता है। इस पुरातन मंदिर में शिवलिंग के नीचे एक गुफा बनी है। डोने में यहां दूध डाल कर रख दिया जाता है। इस दूध को भगवान शिव का दूसरा रूप माने जाने वाला सांप दूध पीता है। मंदिर के पुजारियों के मुताबिक 50 से 60 वर्ष पूर्व यहां दर्शन करने आने वाले लोगों ने शिवजी को सांप के रूप में दूध पीते देखा है। कुछ लोग भगवान शिव के इस रूप को दूध पीता देखकर डर जाते थे। इसलिए मंदिर प्रशासन ने उस समय पर इसके दरवाजे को बंद करना शुरू कर दिया।

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