दुनिया / भारत-चीन के बीच तनाव का जमकर फायदा उठा रहा है पाकिस्तान

AajTak : Jul 09, 2020, 05:09 PM
लद्दाख में भारत-चीन के बीच मौजूदा तनाव का पाकिस्तान जमकर फायदा उठा रहा है। इस बात का सबसे बड़ा सबूत है पाकिस्तान और चीन के बीच पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में प्रस्तावित हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट को लेकर हुआ समझौता। इस परियोजना की लागत करीब 2.4 अरब डॉलर है।

चीन की बेल्ट ऐंड रोड के तहत चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) का निर्माण हो रहा है। इसकी कई परियोजनाएं अधूरी हैं या अटकी पड़ी हुई हैं लेकिन चीन भारत को घेरने के लिए पीओके में नई-नई परियोजनाओं को मंजूरी दे रहा है। जून महीने के अंत में चीन, पाकिस्तान और चीन की कोहला कंपनी ने हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट डील पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में 1124 मेगावाट का हाइड्रोपावर प्लांट बनाया जाना है।

पाकिस्तान की मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये पाकिस्तान में किसी चीनी कंपनी का पावर सेक्टर में अब तक का सबसे बड़ा निवेश है। पिछले दो महीनों के भीतर पीओके में यह दूसरा मेगाप्रोजेक्ट है जिसकी फंडिंग करने के लिए चीन ने सहमति दी है। मई महीने में ही चीन ने पावर कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन को दिआमेर भाषा बांध बनाने का कॉन्ट्रैक्ट दिया था। चीनी सीमा से 320 किमी दूर बनने वाले इस बांध की फंडिंग भी चीन ही कर रहा है।

विश्लेषकों का कहना है कि चीन भारत को घेरने की रणनीति के तहत कोहला हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट समेत पीओके की परियोजनाओं में निवेश बढ़ा रहा है। भारत चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) का विरोध करता रहा है। भारत का कहना है कि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में किसी भी तरह की परियोजना शुरू नहीं की जा सकती है। भारत के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा था, पूरा जम्मू-कश्मीर और लद्दाख भारत का अभिन्न हिस्सा है और हमेशा रहेगा। पाकिस्तान के कब्जे वाले इलाकों में इस तरह की किसी भी परियोजना को लेकर हम पाकिस्तान और चीन के सामने लगातार विरोध दर्ज कराते रहे हैं। हालांकि, पाकिस्तान के साथ डील करके चीन भारत के पक्ष को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है

लद्दाख में भारतीय-चीनी सीमा के बीच हुए हालिया संघर्ष से पहले भारत ने डारबूक-श्योक-डीबीओ सड़क का उद्घाटन किया था। 255 किमी लंबी ये सड़क लद्दाख से शुरू होती है और कराकोरम पास से 20 किमी की दूरी पर खत्म होती है। कराकोरम पास रणनीतिक रूप से काफी अहम है क्योंकि यह लद्दाख को चीन के शिनजियांग प्रांत से अलग करता है और चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर का भी अहम हिस्सा है। इस सड़क से चीन की चिंता बढ़ गई थी।

जर्मन मार्शल फंड ऑफ द यूएस में एशिया प्रोग्राम के रिसर्च फेलो एंड्रू स्मॉल ने एशियन रिव्यू को दिए इंटरव्यू में कहा, अतीत में चीन परियोजनाओं के चुनाव से पहले इस बात को लेकर सावधानी बरतता था कि कश्मीर में यथास्थिति में कोई बदलाव ना हो रहा हो। लेकिन कोहला हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट से यह ट्रेंड टूटता नजर आ रहा है। अब चीन इन मुद्दों पर आगे बढ़ने से पहले भारतीय पक्ष की चिंताओं को पूरी तरह से नजरअंदाज करने के मूड में दिख रहा है।

पाकिस्तान चीन की इन रणनीतिक मजबूरियों का फायदा उठाना अच्छे से जानता है। पिछले सप्ताह, जब बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने कराची स्थित पाकिस्तान स्टॉक एक्सजेंच पर हमला किया तो इमरान खान ने तुरंत भारत को जिम्मेदार ठहरा दिया। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने संसद में कहा कि इस बात को लेकर कोई शक नहीं है कि हमले के पीछे भारत का हाथ है। पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज में चीनी कंपनियों की 40 फीसदी हिस्सेदारी है।

सिंगापुर में एस। राजारत्नम स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज के सीनियर फेलो जेम्स डोर्सी ने एशियन रिव्यू से कहा, "हमले के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराकर पाकिस्तान ने चीन की सहानुभूति पाने की कोशिश की। डोर्सी ने कहा कि पाकिस्तान भारत-चीन के तनाव का दोहन करके आर्थिक लाभ उठाना चाहता है।"

कोहला हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट के ऐलान के बाद ही खबरें आईं कि गिलगित-बाल्टिस्तान में चीनी सेना की मौजूदगी है। कहा जा रहा था कि चीन पीओके के जरिए कश्मीर में हिंसा भड़काने की कोशिशें कर रहा है। विवाद बढ़ने पर पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता बाबर इफ्तिकार ने इन दावों का खंडन किया।

नेशनल डिफेंस कॉलेज यूएई में स्ट्रैटेजिक स्टडीज के प्रोफेसर मोहन मलिक कहते हैं, भारत की कमजोरियों का फायदा उठाना चीन की भारत को घेरने की रणनीति का अहम हिस्सा रहा है। बीजिंग दूसरी परियोजनाओं के बजाय पीओके में बांध और हाइड्रोपावर परियोजनाओं को प्राथमिकता देकर भारत पर दबाव बनाना चाहता है। मलिक ने कहा कि निश्चित तौर पर गलवान में चीन-भारत की सेना के बीच हुई हिंसक झड़प से सबसे ज्यादा फायदा पाकिस्तान को ही हो रहा है। चीन और पाकिस्तान के साथ दो मोर्चे पर युद्ध का खतरा भारत के लिए सबसे भयावह स्थिति होगी।

पिछले दिनों ही पाकिस्तान में सीपीईसी के तहत बिजली परियोजनाओं की लागत को लेकर काफी विवाद खड़ा हुआ था। पाकिस्तानी मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, बिजली विभाग की एक ऑडिट रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि दो चीनी कंपनियों ने बिजली परियोजनाओं की लागत करीब 3 अरब डॉलर तक बढ़ा दी। इस रिपोर्ट के आने के बाद पाकिस्तान के लिए कर्ज को चुकाने के लिए चीन से मोहलत मांगना और आसान हो गया।

हालांकि, डोर्सी ने कहा कि चीन कई बार राजनीतिक फायदे के लिए भ्रष्टाचार का जानबूझकर इस्तेमाल करता है। यानी घोटाले के मामले में ये बाद में ही पता चलेगा कि किसको ज्यादा फायदा हुआ। उन्होंने कहा कि चीन पाकिस्तान के कर्ज में राहत देने जैसे किसी अनुरोध को शायद ही स्वीकार करे क्योंकि ऐसा करने से बेल्ट ऐंड रोड में शामिल दूसरे देश भी उससे कर्ज चुकाने के लिए मोहलत मांगने लगेंगे।

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