Nepal-Pakistan / नेपाल के बहाने पाकिस्तान की नई 'चाल'? अपना देश संभल नहीं रहा, दे रहा ऐसा बयान

Zee News : Jul 03, 2020, 08:45 AM
इस्लामाबाद: चीन (China)से मोहब्बत में अपनी कुर्सी दांव पर लगाने वाले नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (KP Sharma Oli) को पाकिस्तान (Pakistan) ने मदद की पेशकश की है। हालांकि, सवाल यह है कि खुद मुश्किलों में घिरा पाकिस्तान ओली की मुश्किलें कैसे कम कर सकता है? पाकिस्तान की इमरान खान (Imran Khan) सरकार खुद राजनीतिक संकट में घिरी है, उसके खिलाफ गुस्सा बढ़ता जा रहा है, लेकिन खान खुद को नेपाल का हमदर्द साबित करने में लगे हैं। 

पाकिस्तान में कोरोना की रफ्तार थामने में सरकार पूरी तरह नाकाम रही है। यहां करीब 5000 के आसपास लोगों को कोरोना के चलते अपनी जान गंवानी पड़ी है। इसके अलावा, हाल में हुए एक्सचेंज स्टॉक हमले से भी आवाम में इमरान सरकार के खिलाफ गुस्सा बढ़ा है। इतना ही नहीं सरकार के सहयोगी भी उससे खफा चल रहे हैं, लेकिन इमरान खान अपना घर संभालने के बजाये दूसरों का घर दुरुस्त करने के प्रयास में लगे हैं।

जब नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भारत पर अपनी सरकार को अस्थिर करने का आरोप लगाया, तो इमरान तुरंत हरकत में आ गए। उन्होंने अपने राजनयिकों को काठमांडू पहुंचकर ओली के साथ फोन कॉल की व्यवस्था कराने के निर्देश दिए। नेपाल में पाकिस्तानी दूतावास ने बाकायदा इस संबंध में ओली को एक पत्र भी भेजा, जिसमें फोन कॉल के लिए 2 जुलाई दोपहर 12 बजे का समय निर्धारित करने की बात भी कही गई। हालांकि, यह भी साफ नहीं है कि दोनों नेताओं के बीच बातचीत हुई या नहीं, क्योंकि इसी समय के आसपास अपनी कुर्सी बचाने की केपी शर्मा ओली राष्ट्रपति से मिलने पहुंचे थे। 

नेपाल में पिछले कुछ दिनों से राजनीतिक संकट घहरा गया है। इसकी वजह है चीन के प्रेम में ओली सरकार का सबकुछ भूल जाना। चीन ने नेपाल के भी कई हिस्सों को कब्ज़ा लिया है, लेकिन प्रधानमंत्री ओली खामोश हैं और इस मुद्दे से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए उन्होंने चीन के इशारे पर भारत से सीमा विवाद को हवा दी है। पाकिस्तान भी बीजिंग की शह पर भारत के लिए मुश्किलें खड़ी करता रहा है। 

केपी शर्मा ओली और चीन के बीच काफी अच्छे रिश्ते रहे हैं। 2016 में, जब ओली को सत्ता से हटा दिया गया, तो चीनी सरकार के मुखपत्र, ग्लोबल टाइम्स ने पुष्पा कमल दहल को दोषी ठहराया था। दहल जिन्हें प्रचंड के नाम से भी जाना जाता है, दो बार प्रधानमंत्री की कुर्सी संभाल चुके हैं और वह ओली के साथ गठबंधन सरकार में भी थे, लेकिन उन्होंने अपना समर्थन वापस ले लिया। सालों बाद आज फिर ओली और प्रचंड पहले वाली स्थिति में आ गए हैं, मगर इस बार चीन का हाथ प्रचंड के बजाये ओली के कंधे पर है।  

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