Dainik Bhaskar : Apr 07, 2020, 12:56 PM
नई दिल्ली. दीपक डिमरी इंडिगो एयरलाइंस में इंजीनियर हैं। सभी एयरलाइंस इन दिनों बंद पड़ी हैं, लेकिन उनके इंजीनियरिंग स्टाफ को इन दिनों भी काम पर जाना होता है। वह इसलिए कि दवाइयों जैसी महत्वपूर्ण चीजों की सप्लाई अब भी जारी है और इसके लिए कार्गो जहाज भी चल रहे हैं। काम के लिए एयरपोर्ट जाना दीपक जैसे तमाम लोगों के लिए कई मुश्किलें खड़ा कर रहा है। दीपक बताते हैं, ‘कोरोना के चलते जब तक लॉकडाउन की घोषणा नहीं हुई थी, तब से ही हमारे लिए मुश्किलें पैदा होने लगी थीं। मोहल्ले के लोग हमें शक की निगाहों से देखने लगे थे और हमारे कई साथियों को तो उनके मकान-मालिकों ने कह दिया था कि या तो एयरपोर्ट जाना बंद कर दो या कमरा खाली कर दो। उन्हें डर था कि हम मोहल्ले में कोरोना संक्रमण फैला सकते हैं, क्योंकि हम लगातार एयरपोर्ट जा रहे हैं, वहां कई विदेशी लोगों के संपर्क में आते हैं।’
दिल्ली के द्वारका इलाके में ऐसे कई लोग रहते हैं, जो अलग-अलग एयरलाइंस या एयरपोर्ट पर ग्राउंड स्टाफ की नौकरी करते हैं। इन दिनों ये सभी लोग इलाके के बाकी लोगों की आंखों में चुभने लगे हैं। दीपक बताते हैं, ‘मोहल्ले में राशन की जो दुकानें खुल रही हैं, उन्होंने भी हम लोगों को राशन देने से मना कर दिया है। वे हमें नजदीक भी नहीं आने दे रहे। एयर-होस्टेस और पायलट जैसे फ्लाइंग स्टाफ के लोगों के लिए तो और भी ज्यादा मुश्किलें हैं। उनके पहनावे के कारण ही आस-पड़ोस के सभी लोग जानते हैं कि ये एयरपोर्ट में काम करते हैं। लिहाजा उन लोगों पर तो मोहल्ला छोड़ देने का बहुत दबाव बनाया गया है।’
दिल्ली के कई इलाकों से यह खबरें भी लगातार आती रही हैं कि जो डॉक्टर कोरोना के मरीजों के इलाज में दिन-रात लगे हुए हैं, उन पर भी उनके मकान-मालिकों या सोसायटी वालों ने घर खाली करने का दबाव बनाया है। लेकिन जरूरी सेवाओं में तैनात तमाम लोगों को इन दिनों जिस तरह के दबाव झेलने पड़ रहे हैं, वह सिर्फ उनकी सोसाइटी तक ही सीमित नहीं हैं।
दीपक के रूममेट सुधीर विस्तारा एयरलाइंस में इंजीनियर हैं। बीते एक मार्च की रात उनकी तबीयत खराब हुई तो दीपक अपने एक अन्य साथी के साथ उन्हें लेकर भगत चंद्र अस्पताल पहुंचे। यहां अस्पताल प्रशासन को जैसे ही मालूम हुआ कि ये लोग एयरपोर्ट में काम करते तो उन्होंने सुधीर को देखने से ही मना कर दिया। दीपक कहते हैं, ‘उन्होंने हमें कहीं और चले जाने को कहा। हमने एम्बुलेंस मांगी तो उन्होंने वो भी देने से इनकार कर दिया। किसी तरह फिर हम लोग सुधीर को लेकर दीन दयाल अस्पताल गए। यहां कोरोना की स्क्रीनिंग के लिए एक टीम मौजूद थी। उन्होंने सुधीर के लक्षण देखे और बता दिया कि उसे कोरोना वाले लक्षण नहीं हैं। हम दवाइयां लेकर रात को लौट आए।’
इसके अगले दिन भी जब सुधीर का बुखार कम नहीं हुआ तो उनके दोस्त उसे महाराजा अग्रसेन अस्पताल लेकर गए। यहां भी इन लोगों के साथ वही हुआ जो भगत चंद्र अस्पताल में हुआ था। एयरपोर्ट में नौकरी का पता लगते ही अस्पताल प्रशासन ने इन लोगों को देखने से ही मना कर दिया। काफी कहा-सुनी के बाद जब पुलिस आई, तब जाकर अस्पताल प्रशासन सुधीर को देखने को तैयार हुआ। जांच में मालूम हुआ कि सुधीर को टाइफाइड हुआ है। अब यहीं उनका इलाज चल रहा है और उनके दोस्त ही उनकी तीमारदारी कर रहे हैं। इसके लिए वे रात-रात भर सुधीर के साथ अस्पताल में रुकते हैं। लेकिन सुबह जब वे वापस अपने मोहल्ले लौटते हैं तो बालकनी से झांकती निगाहों में रत्ती भर भी वह सम्मान नहीं होता, जिसका प्रदर्शन करने के लिए पिछले दिनों देशभर के लोगों ने ताली-थाली बजाई थी। बल्कि, अब ये निगाहें इन लोगों को गुनाहगार समझकर घूर रही होती हैं।
दीपक कहते हैं, ‘मेरी बिल्डिंग में जो लोग ऊपर रहते हैं, उन्होंने सीढ़ियों पर ही रस्सियां बांध दी हैं। इस कारण हम लोग छत पर भी नहीं जा सकते। सोशल डिस्टेंसिंग की समझ हमें भी है। हम इसका सबसे ज्यादा ध्यान रख रहे हैं, क्योंकि हमें अब भी बाहर निकलना पड़ रहा है। लेकिन जो हमारे साथ हो रहा है, वो सोशल डिस्टेंसिंग नहीं, सोशल एलियनेशन है। दूरी हम खुद ही लोगों से बनाए हुए हैं, लेकिन लोग हमें समाज से ही काट देना चाहते हैं।’
दीपक और उनके साथियों के साथ हो रहा यह व्यवहार उन्हें मानसिक रूप से बेहद प्रताड़ना देने वाला साबित हो रहा है। ये लोग पहले ही इस संकट से जूझ रहे हैं कि कहीं इस लॉकडाउन के चलते उन्हें उनकी नौकरियों से हाथ न धोना पड़ जाए। एविएशन सेक्टर के लिए लॉकडाउन सबसे भारी साबित हो रहा है। केंद्र सरकार ने निर्देश तो दिए हैं कि लॉकडाउन के दौरान किसी की नौकरी न छीनी जाए, लेकिन इसके बावजूद भी एयरलाइंस में काम करने वाले लोग घबराए हुए हैं। उनके वेतन में कटौती की जा चुकी है और इन सभी लोगों को इस महीने अपने मासिक वेतन में 10 से लेकर 25 प्रतिशत तक का खामियाजा उठाना पड़ रहा है। दीपक कहते हैं, ‘अगर सरकार कोई पैकेज नहीं निकालती तो एयरलाइंस को मजबूरन कॉस्ट कटिंग करनी होगी और न जाने कितने लोगों की इसके चलते नौकरिया चली जाएंगी।’
दिल्ली के द्वारका इलाके में ऐसे कई लोग रहते हैं, जो अलग-अलग एयरलाइंस या एयरपोर्ट पर ग्राउंड स्टाफ की नौकरी करते हैं। इन दिनों ये सभी लोग इलाके के बाकी लोगों की आंखों में चुभने लगे हैं। दीपक बताते हैं, ‘मोहल्ले में राशन की जो दुकानें खुल रही हैं, उन्होंने भी हम लोगों को राशन देने से मना कर दिया है। वे हमें नजदीक भी नहीं आने दे रहे। एयर-होस्टेस और पायलट जैसे फ्लाइंग स्टाफ के लोगों के लिए तो और भी ज्यादा मुश्किलें हैं। उनके पहनावे के कारण ही आस-पड़ोस के सभी लोग जानते हैं कि ये एयरपोर्ट में काम करते हैं। लिहाजा उन लोगों पर तो मोहल्ला छोड़ देने का बहुत दबाव बनाया गया है।’
दिल्ली के कई इलाकों से यह खबरें भी लगातार आती रही हैं कि जो डॉक्टर कोरोना के मरीजों के इलाज में दिन-रात लगे हुए हैं, उन पर भी उनके मकान-मालिकों या सोसायटी वालों ने घर खाली करने का दबाव बनाया है। लेकिन जरूरी सेवाओं में तैनात तमाम लोगों को इन दिनों जिस तरह के दबाव झेलने पड़ रहे हैं, वह सिर्फ उनकी सोसाइटी तक ही सीमित नहीं हैं।
दीपक के रूममेट सुधीर विस्तारा एयरलाइंस में इंजीनियर हैं। बीते एक मार्च की रात उनकी तबीयत खराब हुई तो दीपक अपने एक अन्य साथी के साथ उन्हें लेकर भगत चंद्र अस्पताल पहुंचे। यहां अस्पताल प्रशासन को जैसे ही मालूम हुआ कि ये लोग एयरपोर्ट में काम करते तो उन्होंने सुधीर को देखने से ही मना कर दिया। दीपक कहते हैं, ‘उन्होंने हमें कहीं और चले जाने को कहा। हमने एम्बुलेंस मांगी तो उन्होंने वो भी देने से इनकार कर दिया। किसी तरह फिर हम लोग सुधीर को लेकर दीन दयाल अस्पताल गए। यहां कोरोना की स्क्रीनिंग के लिए एक टीम मौजूद थी। उन्होंने सुधीर के लक्षण देखे और बता दिया कि उसे कोरोना वाले लक्षण नहीं हैं। हम दवाइयां लेकर रात को लौट आए।’
इसके अगले दिन भी जब सुधीर का बुखार कम नहीं हुआ तो उनके दोस्त उसे महाराजा अग्रसेन अस्पताल लेकर गए। यहां भी इन लोगों के साथ वही हुआ जो भगत चंद्र अस्पताल में हुआ था। एयरपोर्ट में नौकरी का पता लगते ही अस्पताल प्रशासन ने इन लोगों को देखने से ही मना कर दिया। काफी कहा-सुनी के बाद जब पुलिस आई, तब जाकर अस्पताल प्रशासन सुधीर को देखने को तैयार हुआ। जांच में मालूम हुआ कि सुधीर को टाइफाइड हुआ है। अब यहीं उनका इलाज चल रहा है और उनके दोस्त ही उनकी तीमारदारी कर रहे हैं। इसके लिए वे रात-रात भर सुधीर के साथ अस्पताल में रुकते हैं। लेकिन सुबह जब वे वापस अपने मोहल्ले लौटते हैं तो बालकनी से झांकती निगाहों में रत्ती भर भी वह सम्मान नहीं होता, जिसका प्रदर्शन करने के लिए पिछले दिनों देशभर के लोगों ने ताली-थाली बजाई थी। बल्कि, अब ये निगाहें इन लोगों को गुनाहगार समझकर घूर रही होती हैं।
दीपक कहते हैं, ‘मेरी बिल्डिंग में जो लोग ऊपर रहते हैं, उन्होंने सीढ़ियों पर ही रस्सियां बांध दी हैं। इस कारण हम लोग छत पर भी नहीं जा सकते। सोशल डिस्टेंसिंग की समझ हमें भी है। हम इसका सबसे ज्यादा ध्यान रख रहे हैं, क्योंकि हमें अब भी बाहर निकलना पड़ रहा है। लेकिन जो हमारे साथ हो रहा है, वो सोशल डिस्टेंसिंग नहीं, सोशल एलियनेशन है। दूरी हम खुद ही लोगों से बनाए हुए हैं, लेकिन लोग हमें समाज से ही काट देना चाहते हैं।’
दीपक और उनके साथियों के साथ हो रहा यह व्यवहार उन्हें मानसिक रूप से बेहद प्रताड़ना देने वाला साबित हो रहा है। ये लोग पहले ही इस संकट से जूझ रहे हैं कि कहीं इस लॉकडाउन के चलते उन्हें उनकी नौकरियों से हाथ न धोना पड़ जाए। एविएशन सेक्टर के लिए लॉकडाउन सबसे भारी साबित हो रहा है। केंद्र सरकार ने निर्देश तो दिए हैं कि लॉकडाउन के दौरान किसी की नौकरी न छीनी जाए, लेकिन इसके बावजूद भी एयरलाइंस में काम करने वाले लोग घबराए हुए हैं। उनके वेतन में कटौती की जा चुकी है और इन सभी लोगों को इस महीने अपने मासिक वेतन में 10 से लेकर 25 प्रतिशत तक का खामियाजा उठाना पड़ रहा है। दीपक कहते हैं, ‘अगर सरकार कोई पैकेज नहीं निकालती तो एयरलाइंस को मजबूरन कॉस्ट कटिंग करनी होगी और न जाने कितने लोगों की इसके चलते नौकरिया चली जाएंगी।’