वैक्सीन / कोवैक्सीन का तीसरे चरण के ट्रायल का डेटा जारी, डेल्टा वैरिएंट के खिलाफ 65% प्रभावी

Zoom News : Jul 03, 2021, 12:39 PM
नई दिल्ली: भारत की देसी वैक्सीन बनाने वाली कंपनी भारत बायोटेक ने कोवैक्सीन के तीसरे और अंतिम चरण का ट्रायल पूरा कर लिया है और इसके नतीजे भी जारी कर दिए हैं। हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक ने कहा कि उसने कोवैक्सीन के लिए फाइनल फेज- 3 के डेटा का विश्लेषण कर लिया है और उसकी कोवैक्सीन कोरोना के गंभीर मरीजों और डेल्टा वेरिएंट के मरीजों पर असरदार पाई गई है। भारत बायोटेक द्वारा जारी ट्रायल के डेटा के मुताबिक, फाइनल चरण के ट्रायल में देसी वैक्सीन कोवैक्सीन कोरोना के खिलाफ 77.8 फीसदी प्रभावी पाई गई है। वहीं, दुनिया भर में नया टेंशन देने वाले खतरनाक डेल्‍टा वेरिएंट के खिलाफ यह टीका 65.2% असरदार पाया गया है। 

प्री-प्रिंट डेटा का हवाला देते हुए भारत बायोटेक ने कहा कि उसकी कोवैक्सीन सिम्पटोमैटिक कोरोना मरीजों के खिलाफ 77.8 फीसदी कारगर है। वहीं, कोवैक्सिन कोरोना के गंभीर मरीजों के खिलाफ 93.4 फीसदी प्रभावी है। वहीं, कोरोना के डेल्ट वेरिएंट्स के खिलाफ यह 65.2 फीसदी कारगर है।  भारत बायोटेक ने 130 कोरोना के पुष्ट मामलों पर ये ट्रायल किया है।

अपने अंतिम चरण के डेटा के विश्वेषण के मुताबिकत, कंपनी ने कहा कि असिम्पटोमैटिक कोरोना मरीजों के खिलाफ कोवैक्सिन 63.6% असरदार है। भारत बायोटेक के मुताबिक, कोवैक्सीन का ट्रायल देश के 25 अलग-अलग अस्पतालों में किया गया था। इसमें करीब 25800 वॉलंटियर्स शामिल हुए थे, जो 18 से 98 साल के आयु वर्ग के थे। तीसरे चरण के ट्रायल में भाग लेने वाले लोगों को वैक्सीन की दोनों डोज दी गई यानी प्लास्बो दी गई।

जानें किस मामले में कितनी असरदार है कोवैक्सीन।

असिम्पटोमेटिक केस:  63% असरदार 

हल्के, मध्यम और गंभीर मामले: 78% असरदार

डेल्टा वेरिएंट: 65% असरदार

गंभीर कोरोना केस: 93% असरदार

इससे पहले भारत बायोटेक की बनाए स्वेदशी कोरोना रोधी टीके कोवैक्सीन के असर को अमेरिका ने भी असरदार माना था। अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (एनआईएच) ने पाया था कि कोवैक्सीन से शरीर में बनी एंटीबॉडीज कोरोना वायरस के अल्फा और डेल्टा वेरिएंट्स से लड़ने में कारगर है। बता दें कि कोवैक्सीन को इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के साथ मिलकर भारत बायोटेक ने बनाया है।  एनआईएच ने बताया कि कोवैक्सीन लेने वाले लोगों के ब्लड सीरम के अध्ययन से यह पता चलता है कि टीके से जो एंटीबॉडीज बनती हैं, वह ब्रिटेन और भारत में सबसे पहले मिले कोरोना के B.1.1.7 (अल्फा) और B.1.617 (डेल्टा) वेरिएंट्स पर असरदार है।

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