Dainik Bhaskar : May 23, 2019, 09:12 AM
जयपुर. लोकसभा चुनाव की मतगणना शुरू हो गई है। इनमें जयपुर ग्रामीण और जयपुर शहर सीट पर सबकी नजरें हैं। शुरुआती रुझानों में जयपुर शहर सीट पर भाजपा के उम्मीदवार रामचरण बोहरा आगे चल रहे हैं। जयपुर ग्रामीण से दो पूर्व ओलंपियन के बीच मुकाबला है। यहां भाजपा के टिकट पर राज्यवर्धन राठौड़ भाजपा और कांग्रेस के टिकट पर कृष्णा पूनिया के बीच मुकाबला है। इसके अलावा जयपुर शहर पर ज्योति खंडेलवाल और रामचरण बोहरा के बीच मुकाबला है।इन सीटों पर एक नजर-जयपुर ग्रामीण सीट-परिसीमन के बाद हुए दो चुनावों में भाजपा और कांग्रेस ने इस सीट पर एक-एक बार जीत दर्ज की। वर्ष 2009 में कांग्रेस के लालचंद कटारिया व 2014 में पैराशूट उम्मीदवार निशानेबाज कर्नल राज्यवर्द्धन सिंह राठौड़ ने भारी मतों से जीत दर्ज की थी। पिछले चुनाव में इस सीट पर 59% मतदान हुआ था, जिसमें भाजपा को 62.4% और कांग्रेस को 29.6% वोट मिले। दिलचस्प बात यह रही कि कांग्रेस और बीजेपी छोड़ यहां सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई।जयपुर शहर:इस सीट से भाजपा 7 बार चुनाव जीत चुकी है। कांग्रेस को सिर्फ 3 बार ही जीत हासिल हुई है। 1962 में राजपरिवार के चुनावों में उतरने के बाद से ये सीट राजपरिवार की ही मानी जाने लगी थी। 1984 में लंबे इंतजार के बाद कांग्रेस ने इस सीट पर जीत हासिल की। 1989 में जयपुर लोकसभा सीट से जयपुर के पूर्व महाराजा बिग्रेडियर भवानी सिंह और गिरधारी लाल भार्गव के बीच मुकाबला हुआ। पूर्व जयपुर महाराजा भवानी सिंह कांग्रेस के और गिरधारी लाल भाजपा के प्रत्याशी थे। इस चुनाव में पूर्व महाराजा भवानीसिंह करीब 84 हजार 497 वोटों से हार गए थे। जिसके बाद 1989 में गिरधारी लाल भार्गव के आने के बाद ये सीट भाजपा का गढ़ बन गया। दौसा सीट:दौसा लोकसभा क्षेत्र में 1957 से लेकर अब तक 15 बार हुए चुनाव और 2 उपचुनाव हुए। इसमें 9 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की। वहीं, दोनों उप चुनाव भी कांग्रेस के खाते में गई। इनमें राजेश पायलट सर्वाधिक 5 बार दौसा से सांसद चुने गए। उनकी पत्नी रमा पायलट (उप चुनाव) व पुत्र सचिन पायलट भी एक-एक बार दौसा से सांसद रहे हैं।अलवर सीट:इस सीट पर हुए चुनावों में जहां कांग्रेस 10 बार जीती है तो वहीं भाजपा सिर्फ तीन बार ही जीत दर्ज कर पाई है। इसके साथ एक-एक बार जनता दल, भारतीय लोक दल और निर्दलीय उम्मीदवार जीते हैं। इस सीट के आज तक के इतिहास को देखें तो कांग्रेस ने हर बार दो चुनाव जीतने के बाद हार का सामना किया है। 1952 और 1957 में जीत करने के बाद 1962 के चुनाव में कांग्रेस यहां से हार गई थी। 2004 और 2009 में फिर से कांग्रेस के उम्मीदवार इस सीट से संसद पहुंचे। जिसके बाद 2014 की मोदी लहर में ये सीट एक बार फिर भाजपा के खाते में चली गई।