देश / भारत के बच्चों में कोरोना के साथ दिख रही रेयर कावासाकी बीमारी

News18 : Jul 06, 2020, 12:42 PM
Delhi: भारत समेत दुनिया के कई देशों में कोरोना से प्रभावित बच्चों में कुछ अलग तरीके के लक्षण देखने में आए हैं। हाल ही में देखे जा रहे ये लक्षण एक दुर्लभ बीमारी कावासाकी से काफी मिलते-जुलते हैं। इसमें शरीर में चकत्ते पड़ जाते हैं और सूजन के साथ दर्द होता है। मरीज में गंभीर कावासाकी बीमारी के बाकी लक्षण नहीं दिखते हैं। कई बार ये भी देखा जा रहा है कि बच्चे में सिर्फ कावासाकी बीमारी के ही दो-तीन लक्षण होते हैं, जो कोरोना जैसे लगते हैं लेकिन असल में वो कोरोना निगेटिव होता है। जानिए, क्या है कावासाकी बीमारी और इसका कोरोना से क्या संबंध है।

सबसे पहले ऐसे मामले अप्रैल में यूके और यूरोप से आने शुरू हुए थे। अब भारत में भी अलग-अलग इलाकों में मिलते-जुलते मामले दिख रहे हैं। पिछले ही महीने World Health Organization (WHO) ने कोरोना और कावासाकी से मिलते-जुलते लक्षणों वाले मरीजों पर चिंता जताते हुए इस अवस्था को मल्टीसिस्टम इनफ्लेमेटरी डिसऑर्डर (multisystem inflammatory disorder) नाम दिया।

क्या है कावासाकी बीमारी

ये बच्चों को होने वाली दुर्लभ बीमारी है। इसके मरीज में कई लक्षण होते हैं, जैसे आंखों का लाल होना, जीभ और होठों में सूजन के साथ लालिमा। इसके मरीज की जीभ इतनी लाल हो जाती है कि इसे स्ट्रॉबरी टंग भी कहा जाता है। बीमारी की सबसे खतरनाक बात है शरीर की रक्त वाहिकाओं में सूजन आ जाना। बच्चे को लगभग पांच दिनों तक तेज बुखार होता है। सूजी हुई ब्लड वेसल्स के कारण ह्रदय पर खराब असर होता है क्योंकि उस तक खून की सही सप्लाई नहीं हो पाती। ऐसे में हार्ट में परमानेंट खराबी का डर रहता है।

बीमारी को एक जापानी डॉक्टर के नाम पर कावासाकी कहा गया। साल 1961 में सबसे पहले जापान के पीडियाट्रिशियन तोमिसाकू कावासाकी ने इस बीमारी को रिपोर्ट किया था। पहला मरीज 4 साल का था। इसके बाद से कई मामले उसी साल सामने आए।

कावासाकी अब तक रहस्यमयी बीमारी बनी हुई है। विशेषज्ञ ये पता नहीं लगा सके है कि बीमारी आखिर होती क्यों है। इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर में मुंबई के एक निजी अस्पताल में शिशु रोग विभाग के हेड डॉ मुकेश अग्रवाल कहते हैं कि हमें अब तक यही पता लग सका है कि ये बीमारी इम्युनोलॉजिकल रिएक्शन है, जो किसी वायरस के हमले पर होती है। यानी वायरस से लड़ाई के लिए हमारा इम्यून सिस्टम एक्टिव हो जाता है और धोखे में खुद हमारी स्वस्थ कोशिकाओं को मारने लगता है। ऐसे में ये सारे लक्षण सामने आते हैं।

कावासाकी सिंड्रोम 5 साल से कम के प्रति 1 लाख बच्चों में 150 को औसतन होता है। ग्लोबल कार्डियोलॉजी साइंस की एक स्टडी की मानें तो भारत में स्थिति खराब इसलिए है कि बड़े स्तर पर इस रोग की पहचान नहीं हो पाती। दूसरी तरफ, लड़के इस रोग की चपेट में ज़्यादा आते देखे गए हैं क्योंकि लड़कों और लड़कियों में यह रोग होने का अनुपात भारत में 1।5:1 है।


कोरोना से इसका क्या संबंध है?

बच्चों को कोरोना संक्रमण होने पर ये देखा जा रहा है कि उनमें या तो कोई भी लक्षण नहीं हैं या फिर माइल्ड लक्षण हैं। कोरोना होने के बाद कुछ मामलों में बच्चों में कावासाकी बीमारी के लक्षण भी दिखने लगते हैं। हालांकि ये कोरोना इंफेक्शन होने के 2 से 3 हफ्ते बाद दिखते हैं। भारत में भी बच्चों में कावासाकी और कोरोना के सम्मिलित लक्षण के केस आ रहे हैं लेकिन कोरोना टेस्ट होने पर उनकी रिपोर्ट निगेटिव आती है।

कावासाकी वैसे तो 5 साल से कम उम्र के बच्चों में दिखता है लेकिन कोरोना के मामले में ये किशोरों में भी दिख रहा है। अकेले कावासाकी बीमारी होने पर जहां बच्चे के हार्ट पर असर होता है, वहीं कोरोना से मिलने पर इसमें हार्ट पर असर का लक्षण नहीं दिख रहा है


तो क्या है ये बीमारी असल में?

खुद डॉक्टर इस पर असमंजस में है कि कावासाकी और कोरोना से बीच की ये अवस्था क्या है। यही वजह है कि फिलहाल लक्षणों के आधार पर इसे मल्टीसिस्टम इनफ्लेमेटरी डिसऑर्डर कहा जा रहा है। ये खतरनाक अवस्था है, जिसमें शरीर के लगभग सभी अंदरुनी अंगों में सूजन आ जाती है और वे ठीक से काम करना बंद कर देते हैं। अब अमेरिका में Centers for Disease Control and Prevention (CDC) ये भी कह रहा है कि ये सिंड्रोम बच्चों तक ही सीमित है, ऐसा नहीं माना जा सकता। हो सकता है कि ये एडल्ट्स में भी हो लेकिन फिलहाल तक बच्चों और ज्यादा से ज्यादा किशोरों में ये मामले दिख रहे हैं। यानी 19 साल से कम उम्र के लोग इसका शिकार हो रहे हैं। इसमें शरीर में सूजन, जीभ और होंठों का लाल होना, तेज बुखार, पेट दर्द और डायरिया जैसे लक्षण होते हैं। WHO के मुताबिक ऐसा उन्हीं बच्चों के साथ हो रहा है जो या तो खुद कोरोना पॉजिटिव हैं या फिर किसी कोरोना मरीज के संपर्क में आए हों।

फिलहाल तक इस अवस्था का कोई इलाज नहीं खोजा जा सका है। भारत में आ रहे इस तरह के केस में बच्चे को स्टेरॉयड दिया जाता है। ये डोज आम समय में दिए जाने वाले डोज से लगभग 10 गुना तक ज्यादा हो सकता है। कई बच्चों में ऑर्गन फेल होने के कारण उन्हें आईसीयू में रखने की नौबत आ सकती है। चूंकि इसके बारे में डॉक्टरों को खास जानकारी नहीं इसलिए फिलहाल कावासाकी और कोरोना से मिलते लक्षण वाले बच्चों को सपोर्टिव थैरेपी ही दी जा रही है, ताकि उनके अंग ठीक से काम शुरू कर सकें और वे आप-ही-आप बेहतर हो जाएं।

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